विधि
हत्या की सजा काट रहे 104 साल के बुजुर्ग ने मांगी जमानत, सुप्रीम कोर्ट ने दे दी बेल
हत्या की सजा काट रहे 104 साल के बुजुर्ग ने मांगी जमानत, सुप्रीम कोर्ट ने दे दी बेल
सीएन, नई दिल्ली। रसिक चंद्र मंडल का जन्म 1920 में मालदा जिले के एक गुमनाम गांव में हुआ था। इसी साल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अंग्रेजों के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया था। मंडल एक सदी से भी अधिक समय बाद वह अपनी आजादी के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। वह फिलहाल आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। 1988 में एक हत्या के मामले में 1994 में दोषी ठहराए जाने के बाद जब वह 68 साल के थे और आजीवन कारावास की सजा काट रहे थे। उन्हें उम्र संबंधी बीमारियों के कारण जेल से पश्चिम बंगाल के बालुरघाट के सुधार गृह में ट्रांसफर कर दिया गया था। सजा के खिलाफ उनकी अपील को 2018 में कलकत्ता हाईकोर्ट और बाद में सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था। साल 2020 में दायर की थी याचिका मंडल ने 2020 में सुप्रीम कोर्ट में एक रिट याचिका दायर की थी जब वह सौ साल पूरे करने से एक साल दूर थे। उन्होंने बुढ़ापे और संबंधित बीमारियों का हवाला देते हुए समय से पहले रिहाई की मांग की थी। साथ ही पैरोल या सजा में छूट के लिए पात्र होने के लिए 14 साल सलाखों के पीछे बिताने के मानदंड से छूट मांगी थी। अब रिटायर्ड जस्टिस ए अब्दुल नजीर और जस्टिस संजीव खन्ना की पीठ ने 7 मई, 2021 को पश्चिम बंगाल सरकार को नोटिस जारी किया था। नोटिस में सुधार गृह के सुपरिटेंडेंट को मंडल की शारीरिक स्थिति और स्वास्थ्य के बारे में एक स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने के लिए कहा था, जो 14 जनवरी 2019 से जेल में हैं। यह मामला चीफ जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ के समक्ष सुनवाई के लिए आया। इन्होंने पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता आस्था शर्मा से मंडल की स्थिति के बारे में पूछा। शर्मा ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मंडल को उम्र संबंधी स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं हैं, लेकिन अन्यथा उनकी हालत स्थिर है। वह जल्द ही अपना 104 वां जन्मदिन मनाएंगे। पीठ ने मंडल की याचिका स्वीकार कर ली। साथ ही मालदा जिले के मानिक चौक पुलिस थाने में 9 नवंबर 1988 को दर्ज मामले में मंडल को अंतरिम जमानत, पैरोल पर रिहा करने का अंतरिम आदेश पारित किया। मंडल को 12 दिसंबर 1994 को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके तुरंत बाद उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपनी सजा के खिलाफ अपील की थी। हालांकि 5 जनवरी 2018 को उनकी सजा और सजा को बरकरार रखने में हाईकोर्ट ने करीब 25 साल लग गए। 11 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी। उन्होंने अपने 48 वर्षीय बेटे के माध्यम से रिट याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने अनुरोध किया था कि उन्हें जेल से रिहा किया जाए ताकि वे अपने जीवन के आखिरी दिन परिवार के सदस्यों के साथ बिता सकें। मंडल को 12 दिसंबर 1994 को ट्रायल कोर्ट ने दोषी ठहराया और आजीवन कारावास की सजा सुनाई। इसके तुरंत बाद उन्होंने कलकत्ता हाईकोर्ट में अपनी सजा के खिलाफ अपील की थी। हालांकि 5 जनवरी 2018 को उनकी सजा और सजा को बरकरार रखने में हाईकोर्ट ने करीब 25 साल लग गए। 11 मार्च 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ उनकी अपील खारिज कर दी। उन्होंने अपने 48 वर्षीय बेटे के माध्यम से रिट याचिका दायर की थी। इसमें उन्होंने अनुरोध किया था कि उन्हें जेल से रिहा किया जाए ताकि वे अपने जीवन के आखिरी दिन परिवार के सदस्यों के साथ बिता सकें।