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शपथग्रहण में द्रौपदी मूर्मू ने क्यों पहनी हरे-लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी

शपथग्रहण में द्रौपदी मूर्मू ने क्यों पहनी हरे-लाल बॉर्डर वाली सफेद साड़ी
सीएन, नईदिल्ली।
देश की नई राष्ट्रपति के तौर पर द्रौपदी मुर्मू ने शपथ ग्रहण कर लिया है। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने उन्हें राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई। शपथ ग्रहण के दौरान द्रौपदी मुर्मू ने जो साड़ी पहनी वो हरे-लाल बॉर्डर वाली सफेद रंग की थी, इसे संथाली साड़ी कहा जाता है। ये संथाली साड़ी हैंडलूम यानी हाथ से बनी होती है। बुनकर रंगीन धागों से साड़ी बनाते है। यह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सपने के अनुरूप है। गांधी जी चाहते थे कि लोग स्वदेशी कपड़े पहने ,ताकि क्षेत्र के स्थानीय लोगों की आजीविका चल सके। जानकार बताते है कि संथाली साड़ियों के एक छोर में कुछ धारियों का काम होता है और संथाली समुदाय की महिलाएं इसे खास मौकों पर पहनती हैं। संथाली साड़ियों में लम्बाकार में एक समान धारियां होती हैं और दोनों छोरों पर एक जैसी डिजाइन होती है। संथाली साड़ी सिर्फ झारखंड ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्य ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम समेत अन्य राज्यों में भी प्रचलित है। पहले के समय में इन साड़ियों पर तीन-धनुष के डिजाइन बने होते थे, इस प्रतीक का मतलब महिलाओं की आजादी की चाहत था, लेकिन नये युग में परिवर्त्तन के साथ ही अब संथाली साड़ियों पर मोर, फूल और बतख के डिजाइन भी बनाये जाने लगते है। संथाली साड़ी में अब ट्रेडिशनल और मॉडर्न फैशन का फ्यूजन नजर आने लगा है, यही कारण है कि ट्रेडिशन के करीब इन साड़ियों के कलर्स अब आंखों को ज्यादा भने लगे है और इनकी मांग भी बढ़ने लगी है। ट्रेडिशनल फैशन के तौर पर पहले यह साड़ी झारखंड के संताल परगना इलाके तक ही सीमित थी, लेकिन अब पूरे राज्य में इसे बेहद पसंद किया जाने लगा है। यहां तक कि ओडिशा, बंगाल और बिहार के साथ-साथ असम में भी इसकी डिमांड बढ़ी है। संथाली समाज की महिलाएं बाहा, सोहराय, सरहुल और करमा समेत अन्य जनजातीय पर्व-त्योहार के मौके पर संथाली साड़ी पहनती है। यह पहनावा ना सिर्फ उन्हें अपने ट्रेडिशन से जड़ से जुड़ेे रहने का अहसास दिलाता है, बल्कि अब यह आधुनिकत फैशन के रूप में भी बनकर उभरा है।हालांकि संथाली आदिवासी समाज में शादी-विवाह में इन साड़ियों की जगह पीली और लाल साड़ी पहनी जाती है और भेंट की जाती हैं। संथाली साड़ी को बुनकर अपने हाथों से सफेद कॉटर के कपड़े पर कई रंगीन धागों के चेक्स से बनाते है। जिस कारण यह साड़ी थोड़ी महंगी होती है और इसकी कीमत सामान्य तौर पर एक हजार रुपये पांच हजार रुपये के बीच की होती हैं। हालांकि अब मांग बढ़ने के कारण इन संथाली साड़ियों को बनाने में मशीन का भी प्रयोग होने लगा हैं।

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