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मैं राजपथ…सॉरी कर्तव्य पथ बोल रहा हूं। मुझे नया नाम मिल गया
मैं राजपथ…सॉरी कर्तव्य पथ बोल रहा हूं। मुझे नया नाम मिल गया
चन्द्र प्रकाश पांडेय, नईदिल्ली। हिंदुस्तान के दिल दिल्ली की धड़कन हूं मैं। गणतंत्र दिवस पर जब मैं सज-संवरकर तैयार होता हूं तो भारत का वैभव दिखता है। झांकियों में दिखती है हिंदुस्तान की झलक, महकती है मिट्टी की सुगंध, झांकती है सदियों पुरानी संस्कृति। देश के जांबाजों की लयबद्ध कदमताल, बूटों की धमक से निकलता संगीत और सैल्युट की सिंह गर्जना…दुश्मन का कलेजा कांप जाए। मिसाइलें, टैंक, तोप, हाथी, घोड़े, सेना की गाड़ियां…आसमान में कलाबाजियां दिखाते लड़ाकू विमानों की गर्जना, बुलेट पर हैरतअंगेज करतब दिखाते जांबाज महिला-पुरुष जवान। सब कुछ बहुत ही भव्य। दशकों तक जसदेव सिंह 26 जनवरी को मेरे वैभव का बखान किया करते थे। उस शब्दों के जादूगर की खनकती आवाज में मैं और मेरा वैभव उनके लिए भी जीवंत हो जाता था जो हजारों मील दूर रेडियो पर कॉमेंट्री सुना करते थे। ‘राजपथ से मैं जसदेव सिंह बोल रहा हूं…’ दूरदर्शन और आकाशवाणी पर दशकों तक ये शब्द 26 जनवरी के परेड का पर्याय रहे थे। मैं राजपथ…सॉरी कर्तव्य पथ बोल रहा हूं। मुझे नया नाम मिल गया है। जिस तरह कर्तव्य पथ से पहले मैं राजपथ हुआ करता था, उसी तरह राजपथ से पहले मैं किंग्सवे हुआ करता था। उससे भी पहले मैं बिना किसी आकार के जमीन का विस्तार था। मामूली भू-भाग था। अब आपको सौ-सवा सौ साल पहले लिए चलता हूं। देश गुलाम था। अंग्रेजों का राज था। मैं तब उजाड़ जमीन का टुकड़ा भर था। मेरे पास में ही ऐसे कई बादशाहों के मकबरे थे जो कभी हिंदुस्तान पर राज किया करते थे। 1911 में अंग्रेजों ने जब कलकत्ता की जगह नई दिल्ली को राजधानी बनाने का फैसला किया तब मुझे आकार मिला। नई राजधानी का ऐलान किंग जॉर्ज पंचम ने ‘दिल्ली दरबार’ में किया। करीब 20 हजार सैनिकों का भव्य परेड हुआ था। जॉर्ज पंचम के सम्मान में मुझे ‘किंग्सवे’ नाम दिया गया यानी राजा का मार्ग, राजा का पथ। ये नाम सेंट स्टीफेंस कॉलेज में हिस्ट्री के प्रोफेसर पर्सिवल स्पियर ने सुझाया था। जॉर्ज पंचम के पिता किंग एडवर्ड सप्तम के सम्मान में 1905 में लंदन में भी किंग्सवे बना था।
आजादी से पहले राजपथ का नाम किंग्सवे हुआ करता था
नई दिल्ली को बसाने, बनाने की जिम्मेदारी मशहूर वास्तुकार सर एडविन लुटियंस और सर हरबर्ट बेकर को मिली थी। ‘किंग्सवे’ नाम मिलने के अगले साल यानी 1913 में मेरे एक सिरे रायसीना हिल छोर पर एक भव्य इमारत का निर्माण शुरू हुआ। लुटियंस की उस भव्य इमारत की कल्पना 1930 में साकार हुई। उस इमारत को वायसराय हाउस का नाम मिला। ब्रिटिश भारत के दौरान वह वायसराय का आवास हुआ करता था। तब मैं आम लोगों के पदधूल चूमने को तरसता था क्योंकि मेरे दरवाजे सिर्फ अंग्रेज अधिकारियों के लिए खुले थे। 1933 में मेरे एक हिस्से पर इंडिया गेट का निर्माण हुआ। मैं वायसराय हाउस से लेकर पुराना किला तक करीब साढ़े तीन किलोमीटर लंबा हूं। बीच में विजय चौक है। इंडिया गेट है। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ तब वायसराय हाउस को गवर्नमेंट हाउस नाम मिला। वह पहले भारतीय गवर्नर जनरल सी. राजगोपालाचारी का आवास बन गया 1950 में डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद भारत के पहले राष्ट्रपति बने और गवर्नमेंट हाउस उनका आवास बना। उनके कार्यकाल में ही गवर्नमेंट हाउस का नाम बदलकर राष्ट्रपति भवन कर दिया गया। यानी अंग्रेजों के दौर का वायसराय हाउस राष्ट्रपति भवन के नाम से जाना जाने लगा। 1961 में मेरा भी नाम किंग्सवे से बदलकर राजपथ कर दिया गया। मुझमें एक और सड़क मिलती है जिसे पहले क्वीन्सवे कहा जाता था। लेकिन बाद में उसका नाम जनपथ हो गया।1955 में पहली बार मैं गणतंत्र दिवस परेड का गवाह बना। 1950 में पहला गणतंत्र दिवस परेड इर्विन एम्फीथिएटर जो अब मेजर ध्यानचंद स्टेडियम है, में हुआ था। तब सशस्त्र बलों के 3000 से ज्यादा अफसर और जवानों और 100 से ज्यादा विमानों ने हिस्सा लिया था। 1955 में पांचवें गणतंत्र दिवस के लिए मुझे सजाया गया। तब पाकिस्तान के गवर्नर जनरल मलिक गुलाम मुहम्मद चीफ गेस्ट के तौर पर बुलाए गए। उसके बाद से हर साल 26 जनवरी को मैं यानी राजपथ…सॉरी कर्तव्य पथ गणतंत्र दिवस परेड का साक्षी बनता हूं। मुझे अब भी याद है 26 जनवरी 1963 की सुबह जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू खुद करीब 30 से 40 सांसदों के साथ गणतंत्र दिवस पर परेड किया था। एक साल पहले चीन ने धोखा देकर पीठ में खंजर भोंका था। देश 1962 की जंग में चीन के हाथों हार की पीड़ा महसूस कर रहा था। तब खुद प्रधानमंत्री का इस तरह सांसदों के साथ परेड करते देख देश चौंक गया था। वह एक नए और समर्थ भारत की मुनादी थी जो कड़वे अनुभवों को पीछे छोड़, उससे सबक ले आगे बढ़ने को कसमसा रहा था। आज भारत दुनिया की बड़ी सैन्य ताकतों में शुमार है। जिस ब्रिटेन ने हमें गुलाम बनाकर रखा, हम उसे पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। अगले साल गणतंत्र दिवस पर मैं फिर संजूगा। उम्मीद करता हूं कि अब मेरा नया नाम कर्तव्य पथ हर भारतीय को अपने कर्तव्य की राह पर चलने की प्रेरणा देगा। एनबीटी से साभार