उत्तराखण्ड
10 दिसंबर मानवाधिकार दिवस पर विशेष : इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान ही मानवाधिकार
10 दिसंबर मानवाधिकार दिवस पर विशेष : इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान ही मानवाधिकार
प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। विश्व में मानव ही सबसे श्रेष्ठ जीवधारियों में है जिसमें समझ के साथ इंसानियत भी है यह इंसानियत ही 10 दिसंबर को मानवाधिकार दिवस के रूप में मनाई जाती है। वर्ष 2023 में इसकी थीम सभी के लिए स्वतंत्रता, समानता और न्याय रखी गई है। इंसान की जिंदगी, आजादी, बराबरी और सम्मान ही मानवाधिकार है। भारत सहित अन्य देश के संविधान इस अधिकार की रक्षा करते है। मानवाधिकार वह नैतिक सिद्धान्त हैं जो मानव व्यवहार के मानक स्थापित करता है तथा इन्हें स्थानीय तथा अन्तराष्ट्रीय कानूनों द्वारा संरक्षित किया जाता है ये वो आधारभूत अधिकार’ हैं जो जन्मजात अधिकार हैं। व्यक्ति के आयु, प्रजातीय मूल, निवास-स्थान, भाषा, धर्म, आदि का इन अधिकारों पर कोई प्रभाव नहीं होता बल्कि ये सर्वत्र तथा सबके लिए समान हैं।1993 का मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के साथ राज्य मानवाधिकार आयोग भी बनाता है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा को 10 दिसंबर 1948 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में अंगीकृत किया गया। मानवाधिकार दिवस की स्थापना 4 दिसंबर 1950 को महासभा की 317 वीं पूर्ण बैठक में हुई, जब महासभा ने संकल्प 423 (वी) की घोषणा की। मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा में नागरिक और राजनीतिक अधिकार, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकार जैसे 30 अधिकारों, स्वतंत्रताओं की सूची में जीने का अधिकार, स्वतंत्रता, शिक्षा, समानता, धर्म की स्वतंत्रता संघ बनाने, सूचना पाने तथा राष्ट्रीयता का अधिकार प्रमुख रूप से शामिल है तथा इनको सुरक्षित रखने के लिए गठित आयोग में एक अध्यक्ष, पांच पूर्णकालिक सदस्य और सात मानद सदस्य का प्रावधान हैं । ये अधिकार इंसान के रूप में जाति, रंग, धर्म, लिंग, भाषा, राजनीतिक ,राष्ट्रीय या सामाजिक मूल, संपत्ति, जन्म को ध्यान में रखते है। सर्वप्रथम मानवाधिकार की घोषणा 10 दिसंबर 1948 को पेरिस में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा किया गयाऔर इसमें मौलिक मानवाधिकारों को सार्वभौमिक रूप से संरक्षित करने का नियम किया गया जिससे 500 से अधिक भाषाओं में अनुवादित किया गया है। मानव अधिकारों की सार्वभौम घोषणा (यूडीएचआर) मानव अधिकारों के इतिहास में एक मील का पत्थर दस्तावेज़ है। जिससे मानव अधिकारों को दुनिया भर में अधिक मान्यता प्राप्त मिली जो आज विकलांग व्यक्तियों, स्वदेशी लोगों और प्रवासियों जैसे कमजोर समूहों पर भी ध्यान केंद्रित करता है।कई चुनौतियों जैसे महामारी, संघर्ष, बढ़ती असमानताएँ, नैतिक रूप से दिवालिया वैश्विक वित्तीय प्रणाली, नस्लवाद, जलवायु परिवर्तन मानवीय निहित मूल्य और अधिकार के सामूहिक कार्यों के लिए दिशा निर्देश तय करते है।सार्वभौमिकता ज्ञान की समझ के साथ उसपर कार्य कराने का प्रयास करती है जिससे इंसान में मानवता बनी रहे ।