Connect with us

उत्तराखण्ड

आखिर उत्तराखंड के गांवों की दुर्दशा के लिए जिम्मेदार कौन?

चन्दन घुघत्याल, अल्मोड़ा। स्कूल के स्थापना दिवस के बाद पहली बार दीवाली की पाँच दिन की छुट्टियाँ मिलीं। मन में एक ही ललक थी कि इस बार माँ के साथ गाँव में दीवाली मनाऊँगा। वह बचपन की सोंधी यादें, माँ के हाथों के बने पकवान, घर के आँगन और धुरी में दीयों, और छिलकों की लौ आदि सब आँखों के सामने तैर रहे थे। हम परिवार सहित अपने गाँव डुंगरी (स्यालदे ब्लॉक) की ओर निकले। रास्ते में भिक्यासैन में राजू स्वीट और रोहन भंडार से मिठाई, कपड़े और पूजा की कुछ चीजें खरीदीं, वक्त का पता ही नहीं चला। गाँव पहुँचते-पहुँचते घुप्प अंधेरा छा गया था। बड़ी मुश्किल से कच्ची सड़क पर, जो लगभग 50–60 डिग्री की चढ़ाई लिए है, ईष्टदेव का नाम लेकर डरते डरते गाड़ी चढ़ाई। गाँव पहुँचा तो ईजा को देखकर मन भर आया। गले लगा, पैर छुए, उनके चेहरे पर जो चमक थी, वही मेरी दीवाली की असली रोशनी थी। मैं शहर से बिजली की लाइटों की लड़ियाँ लेकर गया था — सोचा था इस बार अपने पुराने घर को भी जगमग कर दूँगा। लेकिन वह सपना सपना ही रह गया — क्योंकि गाँव में दो दिन से बिजली गुल थी। कई जगह फोन घुमाने के बाद अगले दिन बिजली आई, कुछ देर के लिए लड़ियाँ टिमटिमाईं और फिर वही अंधकार। मैंने भी हार मान ली। सोचा इस निष्ठुर तंत्र से आखिर कौन लड़े? कौन अपनी ऊर्जा ख़त्म करे। सोलर लाइट का लालटेन और यहां एक एनजीओ से दिए खरीद कर ले गया था, उनसे भरपूर रोशनी की। त्योहारों पर असली मजा तो गांव में ही आता है। वहां जो असली प्यार और स्नेह मिलता है वह किसी भी सोसाइटी या कम्युनिटी में कहाँ ? घर घर जाकर सभी लोगों को दिवाली की बधाई दी। रात को सोचने को मजबूर हुवा कि हमने कैसे उत्तराखण्ड की कल्पना की थी ? किसे फ़िक्र है गाँव की भलाई की? सरकारी तंत्र के निष्ठुरता और अकर्मण्यता की वजह से गांव में रुक गए गिने चुने लोगों में उत्साह की कमी दिखी। विधायक निधि का पैसा जाता कहाँ होगा ? गांव के सड़क की झाड़ियों को सपचेट करने के लिए मैंने लोग लगाए। बिजली के फॉल्ट के लिए SDO को कॉल किया लेकिन यह एक परमानेंट हल नहीं था। बस यही यक्ष प्रश्न है कि उत्तराखंड राज्य का भविष्य क्या होगा ? क्या लोगों को अपनी रोजी रोटी छोडकर पुनः आंदोलन करना पड़ेगा ? लेकिन फिर वही निराशा होती है कि आंदोलनकारियों के बदले हमारी जनता उन लोगों को ही सत्ता सौपंती है जिनका राज्य निर्माण में कोई योगदान नहीं है। हमरे नीति निर्माताओं के लिए तो गांव की चिंता ही कहाँ है। सभी को तो सिर्फ़ रामनगर, हल्द्वानी, टनकपुर, हरिद्वार, कोटद्वार और देहरादून के विकास की चिंता है। उनके लिए वहीं “उत्तराखंड” है। गाँवों का क्या? गाँव अब सिर्फ़ आँकड़ों में जिंदा हैं — न सड़कों का रखरखाव, न बिजली का भरोसा, न पानी का इंतज़ाम, न स्वास्थ्य सुविधाएँ। सांसद और विधायक निधि से जेसीबी चलवाकर सड़कें तो बन जाती हैं, लेकिन कुछ महीनों में ही वे फिर मिट्टी में मिल जाती हैं। ग्रामीणों के पास कोई विकल्प नहीं बचता — पलायन ही उनकी नियति बन गया है। हम जैसे लोग 2-3 दिन के लिए दीवाली या किसी पर्व पर गाँव चले भी जाएँ, पर कब तक? जब तक ईजा-बौज्यू (बुज़ुर्ग) हैं, तब तक ही शायद हम लौटते रहेंगे। क्योंकि ये बुज़ुर्ग अपनी जड़ों को छोड़ना नहीं चाहते। इन्ही के वजह से मेरा गांव भी आबाद है। लेकिन आने वाली पीढ़ियाँ गांव किसके लिए आएंगे ? वे तो शायद केवल ईष्टदेव के मंदिर के दर्शन के लिए ही कभी कभार आएंगे। और तब गाँव सिर्फ़ स्मृतियों में रह जाएगा —जहाँ अब भी ईजा के हाथों की मिट्टी में अपनापन महकता है, पर सिस्टम की बेरुख़ी से वह मिट्टी दिन-ब-दिन बंजर होती जा रही है। क्या यही है हमारे सपनों का उत्तराखंड? क्या गाँवों का अंधकार किसी को नहीं दिखता? अगर आज हमने ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले वर्षों में गाँव सिर्फ़ कहानियों में होंगे — और ईजा की आँखों की वो चमक, हमेशा के लिए बुझ जाएगी। उत्तराखंड का भला तभी होगा जब गाँवों की ओर ध्यान दिया जाएगा। जब पानी, स्वास्थ्य, सड़क और बिजली पर गंभीरता से काम किया जाएगा। यदि सड़कों के रखरखाव के लिए स्थानीय युवाओं को रोजगार दिया जाए, तो वे गाँवों में ही रहेंगे, और तब गाँव बसेंगे — उजड़ेंगे नहीं। अस्पतालों, स्कूलों, जल संस्थान और बिजली विभाग में चतुर्थ श्रेणी की नियुक्तियों में यदि स्थानीय युवाओं को अवसर मिले, तो उनमें भी अपने गाँव और प्रदेश के प्रति लगाव व जिम्मेदारी बनी रहेगी। काश, यह बात सरकारी तंत्र समझ पाता — राज्य की रजत जयंती का सच्चा अर्थ तभी होगा, जब शासन का तंत्र धरातल से जुड़ेगा, गाँव की धड़कन को महसूस करेगा।

More in उत्तराखण्ड

Trending News

Follow Facebook Page

About

आज के दौर में प्रौद्योगिकी का समाज और राष्ट्र के हित सदुपयोग सुनिश्चित करना भी चुनौती बन रहा है। ‘फेक न्यूज’ को हथियार बनाकर विरोधियों की इज्ज़त, सामाजिक प्रतिष्ठा को धूमिल करने के प्रयास भी हो रहे हैं। कंटेंट और फोटो-वीडियो को दुराग्रह से एडिट कर बल्क में प्रसारित कर दिए जाते हैं। हैकर्स बैंक एकाउंट और सोशल एकाउंट में सेंध लगा रहे हैं। चंद्रेक न्यूज़ इस संकल्प के साथ सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर दो वर्ष पूर्व उतरा है कि बिना किसी दुराग्रह के लोगों तक सटीक जानकारी और समाचार आदि संप्रेषित किए जाएं।समाज और राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारी को समझते हुए हम उद्देश्य की ओर आगे बढ़ सकें, इसके लिए आपका प्रोत्साहन हमें और शक्ति प्रदान करेगा।

संपादक

Chandrek Bisht (Editor - Chandrek News)

संपादक: चन्द्रेक बिष्ट
बिष्ट कालोनी भूमियाधार, नैनीताल
फोन: +91 98378 06750
फोन: +91 97600 84374
ईमेल: [email protected]

BREAKING