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हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं

हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा, काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं गीत नया गाता हूं
सीएन, नैनीताल।
आज पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी भले हमारे बीच नहीं है. लेकिन, उनका जीवन हमारे लिए प्रेरणा है। उनके काम और उनके तरीके आज भी भारत की राजनीति में जीवंत हैं। हर नेता उनके नाम को नहीं भूलता और उनकी तरह राजनीति का सपना देखता है। हम ही भारत रत्न अटल विहारी वाजपेयी को नमन करते हैं. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी एक बेहतरीन राजनेता ही नहीं, शानदार कवि भी थे। उनकी कविताएं आज भी लोगों के लिए प्रेरणास्रोत हैं। वह शब्‍दों से खेलना जानते थे। अटल जी अपनी बातों और भावनाओं को शब्‍दों में पिरोकर पेश करने की कला में माहिर थे। राजनीति के अजातशत्रु के नाम से विख्‍यात अटल जी ने कई ऐसी कविताएं भी लिखीं जिन्‍होंने देश के युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया। अटल जी की लोक प्रिय कविताओं में-
हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,

बेनकाब चेहरे हैं, दाग बड़े गहरे हैं
टूटता तिलिस्म आज सच से भय खाता हूं
गीत नहीं गाता हूं।
लगी कुछ ऐसी नजर
बिखरा शीशे सा शहर
अपनों के मेले में मीत नहीं पाता हूं
गीत नहीं गाता हूं।
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए तारों से फूटे बासंती स्वर
पत्थर की छाती मे उग आया नव अंकुर
झरे सब पीले पात कोयल की कुहुक रात
प्राची मे अरुणिम की रेख देख पता हूं
गीत नया गाता हूं
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नई ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं…आज भी रोमांचित कर देता है।
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं
भारत जमीन का टुकड़ा नहीं,
अटल जी एक ऐसे देशभक्त थे जो अपनी आन बान के लिए हमेशा याद किये जायेंगे। निम्न कविता उसी की एक बानगी है-
जीता जागता राष्ट्रपुरुष है।
हिमालय मस्तक है, कश्मीर किरीट है,
पंजाब और बंगाल दो विशाल कंधे हैं।
पूर्वी और पश्चिमी घाट दो विशाल जंघायें हैं।
कन्याकुमारी इसके चरण हैं, सागर इसके पग पखारता है।
यह चन्दन की भूमि है, अभिनन्दन की भूमि है,
यह तर्पण की भूमि है, यह अर्पण की भूमि है।
इसका कंकर-कंकर शंकर है, इसका बिन्दु-बिन्दु गंगाजल है।
हम जियेंगे तो इसके लिये, मरेंगे तो इसके लिये।
मौत से ठन गई
ठन गई!
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा जिन्दगी से बड़ी हो गई।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
एक बरस बीत गया
एक बरस बीत गया
झुलासाता जेठ मास
शरद चाादनी उदास
सिसकी भरते सावन का
अंतर्घट रीत गया
एक बरस बीत गया
पथ निहारते नयन
गिनते दिन पल छिन
लौट कभी आएगा
मन का जो मीत गया
एक बरस बीत गया
जब अटल ब‍िहारी की क‍िडनी में आ गई थी समस्‍या
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी दलगत राजनीति से परे थे। उन्हें जितना अपनी पार्टी के नेता मानते थे उतना ही स्नेह और प्रेम उन्हें विपक्षी नेताओं से मिलता था। देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने तो उनके पीएम बनने की भविष्यवाणी बहुत पहले ही कर दी थी। इसके अलावा राजीव गांधी भी उन्हें काफी चाहते थे। अटल जी ने खुद एक बार कहा था, “अगर आज जिंदा हूं तो राजीव गांधी की वजह से हूं”, बात 1988 की है। अटल बिहारी वाजपेयी को किडनी की समस्‍या हो गई थी। 1985 में पहले ही उनकी एक किडनी निकाली जा चुकी थी। दूसरी किडनी में समस्‍या होने से उनकी जान पर बन आई थी। डॉक्‍टरो ने उन्‍हें जांच और इलाज के लिए अमेरिका जाने की सलाह दी थी। इलाज के लिए पैसों की व्‍यवस्‍था न होने के कारण यह संभव नहीं था। खुद अटल बिहारी वाजपेयी ने बताया था कि राजीव को न जाने कैसे उनकी किडनी की समस्‍या के बारे में पता चला। उन्‍होंने सुनिश्चित किया कि अटल जी का अमेरिका में इलाज हो सके। इसके लिए राजीव ने तरीका निकाला। उन्‍होंने अटल को अपने कार्यालय में बुलाया। अटल को तत्‍कालीन प्रधानमंत्री ने बताया कि वह उन्‍हें संयुक्‍त राष्‍ट्र जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर रहे हैं। यह फैसला लिया जा चुका है। अटल सदस्‍य के रूप में वहां जाएंगे। साथ ही उम्‍मीद भी जाहिर की कि अटल इस मौके का इस्‍तेमाल अपना इलाज कराने के लिए करेंगे। फिर अटल न्‍यूयॉर्क गए। इंटरव्‍यू में अटल ने कहा था कि वह राजीव की बदौलत जीवित हैं।
राजीव गांधी ने हमेशा डालकर रखा पर्दा
राजीव गांधी ने अपने जिंदा रहते इस बात का कभी असल कारण नहीं बताया कि संयुक्‍त राष्‍ट्र जाने वाले प्रतिनिधिमंडल में अटल को क्‍यों शामिल किया गया था। हालांकि, राजीव को श्रद्धांजलि देते हुए वाजपेयी ने इस राज से पर्दा उठा दिया। 1988 में राजीव गांधी का अमेरिकी दौरा संयुक्‍त राष्‍ट्र में उनकी करुणाभरी स्‍पीच के लिए हमेशा जाना जाता रहेगा। इसमें उन्‍होंने पूरी तरह से परमाणु हथियारों को खत्‍म करने का आह्वान किया था।

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