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उत्तराखण्ड

निर्मल पांडे की जयंती पर विशेष : नानू ने नैनीताल का नाम रोशन किया

‘बैंडिट क्वीन’, ‘दायरा’, ‘गॉडमदर’, ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ जैसी यादगार फिल्में दी
निर्मल पांडे स्मृति फिल्म फेस्टिवल में प्रतिभाग करने को नैनीताल पहुंचे

नैनीताल के बहुत छोटे से मॉल रोड स्थित नगर पालिका द्वारा संचालित नर्सरी स्कूल से हिन्दी में ककहरा सीखने वाला बालक 47 वर्ष की अल्पायु में ही न केवल डेढ़ दर्जन से अधिक हिन्दी फिल्में और दर्जनों नाटक कर आया। वर्ष 1996 में ‘दायरा’ फिल्म में एक हिजड़े की भूमिका में अभिनय के लिए उन्हें फ्रांस में फिल्म महोत्सव पुरस्कार हासिल हुआ था। उन्होंने ‘बैंडिट क्वीन’, ‘दायरा’, ‘गॉडमदर’, ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ और ‘इस रात की सुबह नहीं’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से पहचान बनाई थी अभिनय की प्रतिभा उन्हें विरासत में मिली। उनके नाना जय दत्त पाण्डे मशहूर कथावाचक थे, जबकि योजना विभाग में बड़े बाबू पिता हरीश चन्द्र पाण्डे एवं माता रेवा पाण्डे की भी संगीत में गहरी रुचि थी। नर्सरी स्कूल से निकलकर नगर के सीआरएसटी इंटर कालेज में पहुंचते निर्मल के भीतर का कलाकार बाहर आ गया। सीआरएसटी से ही निर्मल ने 1978 में तारा दत्त सती के निर्देशन में स्कूल के रामलीला वैले से बड़े भाई मिथिलेश के साथ राम-लक्ष्मण की भूमिका अदा कर अभिनय की शुरूआत की थी। इसे देख स्कूल के सांस्कृतिक क्लब के अध्यक्ष मरहूम जाकिर हुसैन साहब निर्मल से इतने प्रभावित हुऐ कि इस नन्हे बालक को क्लब का सचिव बना दिया। इस दौरान उन्होंने सीआरएसटी के ‘गोल्डन जुबली’ समारोह में भष्मासुर व पंचवटी वैले नृत्य नाटिकाएं कीं।1980 में डीएसबी कॉलेज में पढ़ने के दौरान ही निर्मल नगर की ‘युगमंच’ संस्था से जुड़े और डीएसबी से एमकॉम करने लगे। इस दौरान उन्होंने ‘राजा का बाजा’ और’ हैमलेट’ व कुमाऊँ की सुप्रसिद्ध लोक गाथा पर आधारित ‘अजुवा बफौल’ तथा ‘युद्धमन’ सहित कई नाटकों के जरिये अपने अभिनय के साथ निर्देशन को भी नऐ आयाम दिऐ। 19 मार्च को रीलीज होने वाली फिल्म लाहौर प्रतिभावान अभिनेता की आखिरी फिल्म थी।10 अगस्त 1961 को उन्होंने जन्म लिया और 18 फरवरी 2010 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। नैनीताल रामसेवक सभा की रामलीला में अभिनय करने वाले नानू के बावत विस्तार से जानकारी दे रहे है वरिष्ठ पत्रकार चन्द्रेक बिष्ट।

चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल। नैनीताल के बहुत छोटे से मॉल रोड स्थित नगर पालिका द्वारा संचालित नर्सरी स्कूल से हिन्दी में ककहरा सीखने वाला बालक 47 वर्ष की अल्पायु में ही न केवल डेढ़ दर्जन से अधिक हिन्दी फिल्में और दर्जनों नाटक कर आया। 10 अगस्त 1961 को बड़ा बाजार मल्लीताल में पिता हरीश पांडे और माता रेवा देवी के घर जन्मे और अपने अभिनय से अंतरराष्ट्रीय पटल पर नैनीताल ही नही बल्कि पूरे प्रदेश का नाम रोशन करने वाले अभिनेता निर्मल पांडे का आज स्मृति दिवस है। निर्मल पांडे ने साल 2002 में जज्बा नामक एलबम भी लॉन्च की। इसके साथ ही उन्होंने लेखक धर्मवीर भारती के नाटक अंधायुग को भी निर्देशित किया। फिल्म वन टू का फोर में भी यादगार भूमिका निभाई थी। वर्ष 1996 में ‘दायरा’ फिल्म में एक हिजड़े की भूमिका में अभिनय के लिए उन्हें फ्रांस में फिल्म महोत्सव पुरस्कार हासिल हुआ था। उन्होंने ‘बैंडिट क्वीन’, ‘दायरा’, ‘गॉडमदर’, ‘ट्रेन टू पाकिस्तान’ और ‘इस रात की सुबह नहीं’ जैसी फिल्मों में अपने अभिनय से पहचान बनाई थी। शुरुआत में कुछ फिल्मों में छोटी भूमिकाएं करने के बाद निर्मल पांडे को शेखर कपूर की फिल्म बैडिंट क्वीन (1994) में बड़ा ब्रेक मिला और इसी साल वे अमोल पालेकर की दायरा और सुधीर मिश्रा की इस रात की सुबह नहीं में नजर आए। इस रात की सुबह नहीं, औजार, प्यार किया तो डरना क्या, शिकारी, ट्रेन टू पाकिस्तान आदि कई फिल्में, 40 से अधिक देशों में 125 से अधिक नाटक, थियेटर किए। निर्मल पांडे ने 22 फरवरी को मशहूर कार्टूनिस्ट आरके लक्ष्मण के साथ अपनी आने वाली फिल्म लाहौर की स्पेशल स्क्रीनिंग देखने की योजना बनाई थी। 19 मार्च को रीलीज होने वाली फिल्म लाहौर प्रतिभावान अभिनेता की आखिरी फिल्म थी। 18 फरवरी 2010 को मुंबई में दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया था। निर्मल ने दो विवाह किये थे में हुआ था। पहली पत्नी से उनका विवाह कौसर मुनीर 1997–2000 में हुआ था। दूसरी पत्नी से विवाह अर्चना शर्मा 2005–2010 में हुआ था। 47 वर्षों की इस छोटी सी कहानी को उसके नगर, प्रान्त और देशवासी और अधिक लंबा देखना-सुनना चाहते थे, लेकिन दुनियां के निर्मल और नैनीताल के नानू इस कहानी को आधा-अधूरा छोड़ कर हमेशा के लिए विदा हो गया।
रामलीला से राम-लक्ष्मण की भूमिका अदा कर अभिनय की शुरूआत की
नैनीताल।
नानू की 47 वर्षों की छोटी जीवन यात्रा में उनके स्टार बनने के बाद की कहानी तो शायद सबको पता हो। अभिनय की प्रतिभा उन्हें विरासत में मिली। उनके नाना जय दत्त पाण्डे मशहूर कथावाचक थे, जबकि योजना विभाग में बड़े बाबू पिता हरीश चन्द्र पाण्डे एवं माता रेवा पाण्डे की भी संगीत में गहरी रुचि थी। नर्सरी स्कूल से निकलकर नगर के सीआरएसटी इंटर कालेज में पहुंचते निर्मल के भीतर का कलाकार बाहर आ गया। सीआरएसटी से ही निर्मल ने 1978 में तारा दत्त सती के निर्देशन में स्कूल के रामलीला वैले से बड़े भाई मिथिलेश के साथ राम-लक्ष्मण की भूमिका अदा कर अभिनय की शुरूआत की थी। इसे देख स्कूल के सांस्कृतिक क्लब के अध्यक्ष मरहूम जाकिर हुसैन साहब निर्मल से इतने प्रभावित हुऐ कि इस नन्हे बालक को क्लब का सचिव बना दिया। इस दौरान उन्होंने सीआरएसटी के ‘गोल्डन जुबली’ समारोह में भष्मासुर व पंचवटी वैले नृत्य नाटिकाएं कीं।1980 में डीएसबी कॉलेज में पढ़ने के दौरान ही निर्मल नगर की ‘युगमंच’ संस्था से जुड़े और डीएसबी से एमकॉम करने लगे। इस दौरान उन्होंने ‘राजा का बाजा’ और’ हैमलेट’ व कुमाऊँ की सुप्रसिद्ध लोक गाथा पर आधारित ‘अजुवा बफौल’ तथा ‘युद्धमन’ सहित कई नाटकों के जरिये अपने अभिनय के साथ निर्देशन को भी नऐ आयाम दिऐ। सबसे बड़ी बात यह कि छोटे से शहर में अभिनय का ककहरा सीखने वाले नानू ने जागते हुए महानगरी मुम्बई में स्टार बनने का सपना पाला था। वहीं इन सपनों की उड़ान से वह मायानगरी पहुंच गया। लेकिन वह अपनी जड़ों को क्भी नही भुला। सबसे बड़ी बात यह कि छोटे से शहर में अभिनय का ककहरा सीखने वाले नानू ने जागते हुए महानगरी मुम्बई में स्टार बनने का सपना पाला था। वहीं इन सपनों की उड़ान से वह मायानगरी पहुंच गया। लेकिन वह अपनी जड़ों को क्भी नही भुला। वह 1986 में राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (एनएसडी) दिल्ली चले गऐ, और एनएसडी के लिए भी उन्होंने ‘अजुवा बफौल’ सहित कई नाटक किऐ। 89 में एनएसडी ग्रेजुऐट होते ही वह लन्दन की ‘तारा आर्ट्स’ संस्था से जुडे़ और संस्था के लिए सैक्सपियर के कई अंग्रेजी नाटक किऐ। इस दौरान उन्होंने विश्व भ्रमण भी किया, और इसी दौरान के प्रदर्शन पर शेखर कपूर ने उन्हें `बैण्डिट क्वीन´ फिल्म में ब्रेक दिया। ‘दायरा’ फिल्म में महिला के रोल के लिए उन्हें केन्स फिल्म समारोह में फ्रांस का सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। सात समुन्दर पार फ्रांस के केन्स फिल्मोत्सव में एक अभिनेता होते हुए भी ‘सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री’ का पुरस्कार प्राप्त करने वाला देश का एकमात्र अभिनेता बन गया।
अभिनेता निर्मल पांडे को भूली उत्तराखंड की सरकार
नैनीताल।
संस्कृति व रंगमंच को प्रोत्साहन देने के सरकारी दावों की कलई खुलने लगी है। प्रदेश सरकार ने नैनीताल निवासी दिवंगत सिने अभिनेता निर्मल पांडे की याद में नगर में ऑडिटोरियम बनाने की घोषणा की थी मगर आज तक ऑडिटोरियम अस्तित्व में नहीं आ सका। जिससे शहर के नाटक व कला प्रेमी निराश हैं। एक बार फिर रंगकर्मियों ने सरकार से ऑडिटोरियम बनाने की मांग उठाई है।
मशहूर कलाकार लड्डू के भैया पहली बार पहुंचे नैनीताल
नैनीताल।
टीवी सीरियल के मशहूर कलाकार लड्डू के भैया पहली बार नैनीताल पहुंचे। भाभी जी घर पर हैं के मनमोहन तिवारी की अहम भूमिका निभाने वाले रोहिताश गौड़ निर्मल पांडे स्मृति फिल्म फेस्टिवल में प्रतिभाग करने के लिए मंगलवार को नैनीताल पहुंचे। जहां उन्होंने पत्रकार वार्ता के दौरान बताया कि वह पहली बार नैनीताल पहुंचे हैं। उन्होंने बताया कि निर्मल पांडे उनको कई बार नैनीताल चलने की जिद करते थे लेकिन किसी कारणवश वह यहां नहीं आ सके और आज उनकी स्मृति में आयोजित फेस्टिवल में आना जरूरी समझा। उन्हें नैनीताल की खूबसूरती काफी पसंद आई। मनमोहन तिवारी ने बताया कि निर्मल पांडे काफी मशहूर कलाकार थे उनसे कई सारी चीजें सीखने को मिलती थी और आज भी हम उनसे कई सारी चीजें सीख सकते हैं उनकी पुरानी यादों में कई सारी बातें छुपी हुई है।
अभिनेता निर्मल पांडे की स्मृति में फिल्म फेस्टिवल आज
नैनीताल।
सिने अभिनेता निर्मल पांडे की स्मृति में तृतीय फिल्म फेस्टिवल और ऑफलाइन पहले फेस्टिवल के लिए कुमाऊं विवि के हर्मिटेज में तैयारियां पूरी की जा चुकी हैं। हर्मिटेज स्थित सभागार को फेस्टिवल के लिए तैयार गया है जबकि परिसर को विशेष रूप से तैयार किया गया है। आयोजक प्रमुख अनिल दुबे और मिथिलेश पांडे ने बताया कि सुबह 8:30 बजे से फेस्टिवल की शुरुआत होगी। निर्मल पांडे के रंगकर्म और भारतीय सिनेमा पर चर्चा के बाद 11 बजे से शाम तक फिल्मों का प्रदर्शन होगा। चार बजे से संगीत संध्या के बाद समापन समारोह व पुरस्कार वितरण होगा। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ. कुमार विमलेंदु, रोहिताश्व गौड़, आशित चटर्जी, मनोज जोशी समेत निर्णायक मंडल में शामिल आरिफ शहडोली, शोभा अक्षर, रोहित हितेश्वर, अशोक मेहरा, ओम प्रकाश सिंह, रवींद्र चौहान आदि पहुंच चुके हैं।
नैनीताल के परुवा डॉन से बालीवुड की बुलन्दियों तक पहुंचा नानू
नैनीताल।
अल्मोड़ा के छोटे से गांव के लड़के निर्मल पांडे की मेहनत का कमाल था कि उसने अपनी अदाकारी के दम पर फ्रांस तक में सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का अवार्ड जीता था। अमोल पालेकर द्वारा निर्देशित दायरा फिल्म में निर्मल पांडे ने एक अभिनेत्री का किरदार निभाया। 1997 में उसके लिये उन्हें फ्रांस का प्रसिद्ध वालेंतिये पुरस्कार दिया गया। सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री के लिये यह पुरस्कार पाने वाले निर्मल विश्व के पहले अभिनेता थे। तारा ग्रुप्स के साथ उन्होंने लंदन में 125 नाटकों की लम्बी सीरीज की थी। बैंडेट क्वीन, दायरा, औजार, ट्रेन टू पाकिस्तान और न जाने कितनी फिल्मों में गिनाया जाय जिनमें निर्मल पांडे की सशक्त उपस्थिति नज़र आती है। हिन्दी सिनेमा का बड़ा स्टार बनने के बाद भी नैनीताल के लोगों के लिये निर्मल हमेशा उनके परवा डॉन या नानू दा ही रहे। रंगमंच से निर्मल का लगाव ही था कि उन्होंने सरकारी नौकरी तक छोड़ दी। नैनीताल के युगमंच से जुड़कर उन्होंने लाहौर नी देख्या, हैमलेट, अजुवा बफौल जैसे शानदार नाटकों अभिनय किया. निर्मल युगमंच से न केवल एक अभिनेता के रूप में जुड़े थे बल्कि उन्होंने अपने निर्देशन से रंगमंच में अपनी अमिट छाप छोड़ी। इसी बीच उन्होंने एनएसडी से स्नातक की परीक्षा भी उत्तीर्ण की। एक बार जब निर्मल ने मुम्बई का रुख किया तो हिन्दी फिल्म जगत में अपनी कभी न भुलाये जाने वाली छाप छोड़ दी। आज भी निर्मल पांडे का नाम हिंदी सिनेमा के बड़े-बड़े स्टार पूरे सम्मान से लेते हैं।

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