उत्तराखण्ड
श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर विशेष : 28 वर्ष की अल्पायु में देश के लिए शहीद होने वाले अमर शहीद
श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर विशेष : 28 वर्ष की अल्पायु में देश के लिए शहीद होने वाले अमर शहीद
सीएन, नैनीताल। श्रीदेव सुमन उत्तराखंड की धरती के एक ऐसे महान अमर बलिदानी, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी सपूत का नाम है, जो एक लेखक, पत्रकार और जननायक ही नहीं बल्कि टिहरी की ऐतिहासिक जनक्रांति के भी महानायक थे। मात्र 28 वर्ष 2 महीने की अल्पायु में ही अपने देश के लिए शहीद होने वाले अमर शहीद श्रीदेव सुमन। आज 25 जुलाई को अमर सेनानी जननायक श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि है। आज ही के दिन यानी 25 जुलाई 1944 को इस महान वीर सपूत ने टिहरी रियासत की कुनीतियों के खिलाफ लड़ते हुए अपने प्राणों की आहित दे दी थी। श्रीदेव सुमन के बलिदान दिवस पुण्यतिथि को टिहरी में सुमन दिवस के रूप में मनाया जाता है। आज उनका 80 वां बलिदान दिवस है। इस दिव्य विभूति का अवतरण 25 मई 1916 में टिहरी जनपद के जौल नामक ग्राम में हुआ था। पिता का नाम हरिराम बडोनी तथा माता का नाम तारा देवी था। इनके दो भाई थे। जिनका नाम परशुराम व कमल नयन था। पिताजी बहुत बड़े समाजसेवी थे। उनके जीवन का एकमात्र ध्येय बहुजन हिताय तथा बहुजन सुखाय था। उस समय वे प्रसिद्ध वैद्य के रूप में जाने जाते थे। अचानक उस क्षेत्र में हैजा फैल गई। हरिराम बडौनी पैदल चल कर रोगियों के हाल.चाल पूछते। समय अनुसार उनका चिकित्सकीय उपचार करते। लेकिन नियति की ऐसी विडम्बना रही कि वे खुद भी इस रोग से ग्रसित होकर पंचतत्व में विलीन हो गये। उनकी माता तारा देवी पर सम्पूर्ण परिवार के दायित्व का भार आ पडा। माता जी ने बडे धैर्य व संयम पूर्वक अपने पारिवारिक दायित्वों का निर्वहन बड़े ही समुचित रूप से किया। ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की लोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आंदोलन कर रहे श्रीदेव सुमन को दिसंबर, 1943 को टिहरी की जेल में नारकीय जीवन भोगने के लिए डाल दिया गया था। झूठे गवाहों के जरिए उन पर मुकदमा चलाया गया। इसी दौरान मुक़दमे की पैरवी करते हुए श्रीदेव सुमन ने कहा था. हाँ मैंने प्रजा के खिलाफ लागू काले कानूनों और नीतियों का हमेशा विरोध किया है। मैं इसे प्रजा का जन्मसिद्ध अधिकार मानता हूँ। जनता के लिए प्रजामण्डल की स्थापना की माँग करने के कारण अपनी ही रियासत के राजाओं द्वारा प्रताड़ना और क्रूरतापूर्ण शोषण के बाद प्राण त्यागने वाले श्रीदेव सुमन की कहानी सरदार भगत सिंह के बलिदान से कम नहीं है। अनशन ख़त्म करने की शर्त पर यह प्रस्ताव सुमन जी को भी दिया गया। लेकिन श्रीदेव सुमन का जवाब था। क्या मैंने अपनी रिहाई के लिए यह कदम उठाया है ऐसा मायाजाल डालकर आप मुझे विचलित नहीं कर सकते। अगर प्रजामण्डल को रजिस्टर्ड किए बिना मुझे रिहा कर दिया गया तो मैं फिर भी अपना अनशन जारी रखूँगा। यह प्रस्ताव ठुकराने के बाद सुमन को जेल के अधिकारियों द्वारा कांच मिली रोटियां खाने को दी गईं। प्रताड़ना और अनशन से उनकी हालत बिगड़ती गई। जेलकर्मियों ने लोगों के बीच यह खबर फैला दी कि सुमन को निमोनिया हो गया है, जबकि उन्हें जेल में कुनैन के इंट्रावेनस इंजेक्शन लगाए गए। इन इंजेक्शन के कारण वो डिहाइड्रेशन से जूझने पर पानी के लिए चिल्लाते, लेकिन उन्हें पानी नहीं दिया जाता था। 20 जुलाई की रात से ही उन्हें बेहोशी आने लगी और 25 जुलाई 1944 को शाम करीब चार बजे इस अमर सेनानी ने अपने देश और अपने सिद्धांतों की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। इसी अन्धेरी रात में सुमन की लाश उन्हीं के नीचे बिछे कम्बल में लपेट कर एक बोरी के अन्दर सिल दी गई। फिर एक वार्डन और एक कैदी उस बोझे को लेकर चुपके से जेल के फाटक से बाहर निकले और मृत शरीर को भागीरथी और भिलंगना के संगम से नीचे तेज प्रवाह में फेंक दिया। यह काम जनता से छुपकर किया गया क्योंकि उन्हें सुमन पर किए गए अत्याचारों से हुई इस मृत्यु से जनता द्वारा बगावत किए जाने का भय था। श्रीदेव सुमन का जन्म उत्तराखंड के टिहरी राज्य में हुआ था। ये वही टिहरी है, जहां पर आज एशिया का सबसे ऊंचा बांध स्थित है। इस विशाल जलाशय को इन्हीं श्रीदेव सुमन के नाम पर श्रीदेव सुमन सागर के नाम से भी जाना जाता है।