उत्तराखण्ड
आज विश्व विरासत दिवस : विरासत को सुरक्षित और सम्भाल कर रखने के उद्देश्य
आज विश्व विरासत दिवस : विरासत को सुरक्षित और सम्भाल कर रखने के उद्देश्य
सीएन, नईदिल्ली। विश्व विरासत दिवस प्रत्येक वर्ष 18 अप्रैल को मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र’ की संस्था यूनेस्को ने हमारे पूर्वजों की दी हुई विरासत को अनमोल मानते हुए और लोगों में इन्हें सुरक्षित और सम्भाल कर रखने के उद्देश्य से ही इस दिवस को मनाने का निर्णय लिया था। किसी भी राष्ट्र का इतिहास, उसके वर्तमान और भविष्य की नींव होता है। जिस देश का इतिहास जितना गौरवमयी होगा, वैश्विक स्तर पर उसका स्थान उतना ही ऊँचा माना जाएगा। वैसे तो बीता हुआ कल कभी वापस नहीं आता, लेकिन उस काल में बनीं इमारतें और लिखे गए साहित्य उन्हें हमेशा सजीव बनाए रखते हैं। विश्व विरासत के स्थल किसी भी राष्ट्र की सभ्यता और उसकी प्राचीन संस्कृति के महत्त्वपूर्ण परिचायक माने जाते हैं। पहला ‘विश्व विरासत दिवस’ 18 अप्रैल, 1982 को ट्यूनीशिया में ‘इंटरनेशनल काउंसिल ऑफ मोनुमेंट्स एंड साइट्स’ द्वारा मनाया गया था। एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन ने 1968 ई. में विश्व प्रसिद्ध इमारतों और प्राकृतिक स्थलों की रक्षा के लिए एक प्रस्ताव रखा था। इस प्रस्ताव को संयुक्त राष्ट्र के सामने 1972 ई. में स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान रखा गया, जहाँ ये प्रस्ताव पारित हुआ। इस तरह विश्व के लगभग सभी देशों ने मिलकर ऐतिहासिक और प्राकृतिक धरोहरों को बचाने की शपथ ली। इस तरह “यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज सेंटर” अस्तित्व में आया। 18 अप्रैल, 1978 ई. में पहले विश्व के कुल 12 स्थलों को विश्व विरासत स्थलों की सूची में शामिल किया गया। इस दिन को तब “विश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवस” के रूप में मनाया जाता था। लेकिन यूनेस्को ने वर्ष 1983 ई. से इसे मान्यता प्रदान की और इस दिवस को विश्व विरासत दिवस के रूप में बदल दिया। वर्ष 2011 तक सम्पूर्ण विश्व में कुल 911 विश्व विरासत स्थल थे, जिनमे 704 ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक, 180 प्राकृतिक और 27 मिश्रित स्थल हैं।विश्व विरासत दिवस’ का प्रत्येक व्यक्ति के लिए बड़ा ही महत्त्व है। हमारे पूर्वजों और पुराने समय की यादों को संजोकर रखने वाली अनमोल वस्तुओं की कीमत को ध्यान में रखकर ही संयुक्त राष्ट्र की संस्था ‘युनेस्को’ ने वर्ष 1983 से हर साल ’18 अप्रैल’ को “विश्व विरासत दिवस” मनाने की शुरुआत की थी। बीता हुआ कल काफ़ी महत्त्वपूर्ण होता है। यूँ तो बीता हुआ समय वापस नहीं आता, किंतु अतीत के पन्नों को हमारी विरासत के तौर पर कहीं पुस्तकों तो कहीं इमारतों के रूप में संजो कर रखा गया है। हमारे पूर्वजों ने हमारे लिए निशानी के तौर पर तमाम तरह के मक़बरे, मस्जिदें, मंदिर और अन्य चीज़ों का सहारा लिया, जिनसे हम उन्हें आने वाले समय में याद रख सकें। लेकिन वक्त की मार के आगे कई बार उनकी यादों को बहुत नुकसान पहुँचा। किताबों, इमारतों और अन्य किसी रूप में सहेज कर रखी गई यादों को पहले स्वयं हमने भी नजरअंदाज़किया, जिसका परिणाम यह हुआ कि हमारी अनमोल विरासत हमसे दूर होती गईं और उनका अस्तित्व भी संकट में पड़ गया। इन सब बातों को ध्यान में रखकर और लोगों में ऐतिहासिक इमारतों आदि के प्रति जागरुकता के उद्देश्य से ही ‘विश्व विरासत दिवस’ की शुरुआत की गई। पहले प्रत्येक वर्ष ’18 अप्रैल’ को ‘विश्व स्मारक और पुरातत्व स्थल दिवस’ के रूप में मनाया जाता था, लेकिन यूनेस्को ने हमारे पूर्वजों की दी हुई विरासत को अनमोल मानते हुए इस दिवस को “विश्व विरासत दिवस” में बदल दिया। वक्त रहते ही हमने पूर्वजों द्वारा दी गई अपनी विरासत को संभालने की दिशा में कार्य करना शुरू कर दिया था। पुरानी हो चुकी जर्जर इमारतों की मरम्मत की जाने लगी, उजाड़ भवनों और महलों को पर्यटन स्थल बनाकर उनकी चमक को बिखेरा गया। किताबों और स्मृति चिह्नों को संग्रहालय में जगह दी गई, किंतु किसी भी विरासत को संभालकर रखना इतना आसान नहीं है। हम एक तरफ तो इन पुरानी इमारतों को बचाने की बात करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ उन्हीं इमारतों के ऊपर अपने नाम और कई प्रकार के सन्देश आदि लिखकर उन्हें गंदा भी करते हैं। अपने पूर्वजों की दी हुई अनमोल वस्तु को संजोकर रखने की बजाय उसे खराब कर देते हैं। प्रत्येक व्यक्ति को इन धरोहर में मिली इन विरासतों का विशेष ध्यान रखना चाहिए। अपने घर के आस-पास के किसी पुरातत्व स्थल या भवन पर जाएँ, जहाँ एंट्री फीस ना हो और अगर हो भी, तब भी वहाँ अवश्य घूमें। अपने बच्चों को इतिहास के बारे में बताएँ और किसी स्थल, क़िले, मक़बरे या जगह पर ले जाकर वहाँ के बारे में रोचक तथ्य बताएँ, जिससे आने वाली पीढ़ी भी हमारी संस्कृति और इतिहास से परिचित हो सके। सरकार को इस दिन किसी विशेष स्थान या व्यक्तित्व का जो भी ऐतिहासिक विरासत के तौर पर देखा जा सके, उसके संदर्भ में ‘डाक टिकट’ जारी करने चाहिए। पुरातत्व स्थलों पर गंदगी फैलाने वालों में जागरुकता फैलानी चाहिए ताकि वह ऐसा ना करें। वर्ष 1983 ई. में पहली बार भारत के चार ऐतिहासिक स्थलों को यूनेस्को ने “विश्व विरासत स्थल” माना था। ये चार स्थल थे- ताजमहल, आगरा का क़िला, अजंता और एलोरा की गुफाएँ। आज पूरे भारत में कई विश्व विरासत के स्थल हैं, जो अलग-अलग राज्यों में स्थित हैं। यूनेस्को ने भारत के कई ऐतिहासिक स्थलों को विश्व विरासत सूची में शामिल किया है।
यूनेस्को द्वारा घोषित यह विश्व विरासत स्थल
विश्व विरासत स्थल
लाल क़िला, आगरा
लाल क़िला, आगरा
अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
अजंता की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
एलोरा की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
एलोरा की गुफ़ाएं, औरंगाबाद
ताजमहल, आगरा
ताजमहल, आगरा
पंचरथ, महाबलीपुरम
पंचरथ, महाबलीपुरम
क्रम विश्व विरासत स्थल सन
1 आगरा का लालक़िला 1983
2 अजन्ता की गुफाएं 1983
3 एलोरा गुफाएं 1983
4 ताजमहल 1983
5 महाबलीपुरम के स्मारक 1984
6 कोणार्क का सूर्य मंदिर 1984
6 काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान 1985
7 केवलादेव नेशनल पार्क 1985
8 मानस अभयारण्य 1985
9 गोवा के चर्च 1986
10 फ़तेहपुर सीकरी 1986
11 हम्पी के अवशेष 1986
12 खजुराहो मंदिर 1986
13 एलिफेंटा की गुफाएँ 1987
14 चोल मंदिर 1987-2004
15 पट्टाडकल के स्मारक 1987
16 सुन्दरवन नेशनल पार्क 1987
17 नंदा देवी राष्ट्रीय उद्यान और फूलों की घाटी राष्ट्रीय उद्यान 1988-2005
18 सांची का स्तूप 1989
19 हुमायूं का मक़बरा 1993
20 क़ुतुब मीनार 1993
21 माउन्टेन रेलवे 1999-2005
22 बोधगया का महाबोधि मंदिर 2002
23 भीमबेटका की गुफाएं 2003
24 चम्पानेर-पावरगढ़ पार्क 2004
25 छत्रपति शिवाजी टर्मिनस 2004
26. दिल्ली का लाल क़िला 2007
27 ऋग्वेद की पाण्डुलिपियाँ 2007