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ब्रेकिंग : पोप फ्रांसिस का निधन, 88 साल की उम्र में वेटिकन में ली अंतिम सांसें, ईसाई समुदाय में शोक

पोप फ्रांसिस का निधन, 88 साल की उम्र में वेटिकन में ली अंतिम सांसें, ईसाई समुदाय में शोक
सीएन, वेटिकन सिटी।
88 वर्षीय पोप फ्रांसिस का सोमवार 21 अप्रैल 2025 को वेटिकन सिटी में निधन हो गया। वे लंबे समय से बीमार थे और हाल ही में अस्पताल से इलाज के बाद लौटे थे। ईस्टर के दिन वे आखिरी बार सार्वजनिक रूप से नजर आए थे। उनके निधन से दुनियाभर में ईसाई समुदाय में शोक की लहर है। पोप फ्रांसिस को उनके करुणामय स्वभाव और शांति के संदेशों के लिए हमेशा याद किया जाएगा। कार्डिनल केविन फेरेल ने इसकी आधिकारिक सूचना दी। फैरेल ने कहा रोम के पोप फ्रांसिस, फादर यानी ईश्वर के घर लौट गए। उन्होंने कहा कि पोप फ्रांसिस का पूरा जीवन प्रभु और उनके चर्च की सेवा के लिए समर्पित था। पोप फ़्रांसिस पिछले काफी दिनों से अस्पताल में भर्ती थे। 14 फरवरी को उन्हें रोम के जेमेली अस्पताल में भर्ती कराया गया था। शुरुआती जांच में पता चला कि उनके ब्रोंकाइटिस के लक्षण बढ़ गए थे। डीटेल्स जांच में पता चला कि उनके दोनों फेफड़ों में निमोनिया था। इस कंडीशन को डबल निमोनिया कहा जाता है। सर्दी के मौसम में पोप को ब्रॉन्काइटिस होने का ख़तरा बना रहता था। इससे पहले भी मार्च 2023 में भी उन्हें ब्रॉन्काइटिस की समस्या के चलते तीन दिन तक अस्पताल में भर्ती रहना पड़ा था। 23 फ़रवरी को वैटिकन से एक बयान आया.उसमें कहा गया कि पोप की हालत गंभीर बनी हुई है और ब्लड टेस्ट में किडनी फेलियर के लक्षण मिले हैं। ईसा मसीह के बाद कैथलिक ईसाइयों के सबसे बड़े पद को पोप कहा जाता है। पोप लफ़्ज़ का मतलब होता है पापा यानी पिता। वेटिकन सिटी से ही पोप का राजकाज चलता है। ईसा मसीह के 12 शिष्य थे। उनमें से एक सेंट पीटर को, रोम का बिशप बनाया गया। छठी शताब्दी तक पापा शब्द पर सिर्फ़ रोम के बिशप का हक़ नहीं था। कुछ और भी सम्मानित पादरी इसे इस्तेमाल करते थे। छठी शताब्दी में रोम के बिशप से ही ये शब्द जोड़ दिया गया। इसके बाद इस शहर के बिशप को बाक़ी सबसे ऊपर माना गया। सेंट पीटर के बाद से ही पद हैंडओवर होता रहा। साल 2013 में पोप फ्रांसिस को ये पद मिला था। पोप के निधन के बाद सवाल उठने लगे हैं कि अगला पोप कौन होगा और उसका चुनाव कैसे होगा। 11वीं सदी से पहले तक इसके लिए पादरी और उपासक.दोनों के पॉपुलर ओपिनियन को तरज़ीह दी जाती थी। जाहिर है इससे मतभेद भी पैदा होते थे। पॉेप के बरक्स एक एंटीपोप भी हुआ करता था, यानी एक ऐसा शख़्स जो पोप की सीट पर दावा करता हो। फिर 11वीं सदी में पोप निकोलस द्वितीय ने एक डिक्री जारी की। इसके तहत चुनाव का प्रॉसेस तैयार हुआ। कालांतर में बहुत से नियम जोड़े-घटाए गए।  

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