संस्कृति
दीपावली का पांच दिवसीय त्योहार: दीपदान करने का शास्त्र सम्मत विधान
दीपावली का पांच दिवसीय त्योहार: दीपदान करने का शास्त्र सम्मत विधान
सीएन, हरिद्वार। दीपावली भले ही पांच दिवसीय उत्सवों की शृंखला हो लेकिन दीपदान का दौर एकादशी से ही शुरू हो जाता है। एकादशी पर भगवान कृष्ण के समक्ष दीप प्रज्वलित कर दीपोत्सव का दौर शुरू किया जाता है, जो दीपावली के 2 दिन बाद भाई दूज तक चलता है। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार दीपावली पर दीपदान करने का शास्त्र सम्मत विधान है। दीपदान का अर्थ है, दीपक को जलाकर उचित स्थान पर या उचित पात्र के समक्ष रखना। दीपावली का पांच दिवसीय त्योहार को लेकर दीपदान का समय एकादशी से ही शुरू हो जाता है। एकादशी के दिन भगवान माधव के सामने सरसों के तेल का दीपक जलाने से इसकी शुरुआत होती है। अगले दिन द्वादशी को भी पांच दीपक घर में जला सकते हैं। उनमें एक घी का और चार सरसों के तेल के दीपक होने आवश्यक है। धनतेरस के दिन 13 दीपक जलाना शास्त्र सम्मत है। ऐसा करने से 13 तरह की दीक्षा, आवश्यकता और समस्या का समाधान करने में सफलता मिलती है। साथ ही आर्थिक तंगी से छुटकारा मिलता है और अच्छे स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है। इसके बाद नरक चतुर्दशी जिसे छोटी दीपावली के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन 14 दीपक जलाना आवश्यक है। इनमें एक दीपक यम का होता है। इससे अकाल मृत्यु से सुरक्षा मिलती है। वहीं दीपावली के दिन सामर्थ्य हो तो 51 दीपक या 108 दीपक घर के बाहर आवश्यक रूप से जलाएं। लक्ष्मी पूजन करते समय एक सरसों के तेल का और एक घी का दीपक होना आवश्यक है। अन्यथा 9 के अंक को भी श्रेष्ठ और पूर्णता का अंक माना गया है। इसी तरह गोवर्धन पूजा के दिन 5, 7, 11 यानी विषम संख्या में दीपक जलाना शुभ माना जाता है। वहीं दीपोत्सव के आखिरी दिन भाई दूज पर चार बत्तियों वाला दीपक जलाने का नियम है। कहते हैं ऐसा करने से कल्याण और समृद्धि की प्राप्ति होती है। दीपदान करने के लिए पांच स्थान उपयुक्त माने गए हैं। विशेष रूप से मकान का मुख्य द्वार उसके दोनों तरफ दीपक जलाएं। घर के मंदिर में दीपक जलाएं। तुलसी के पौधे के नीचे दीपक जलाएं और घर के आसपास यदि कोई मंदिर है, तो वहां दीपदान करने से जीवन में आया अंधकार को दूर करने में सफल होते हैं। पितरों की संतुष्टि और देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए भी दीपदान किया जाता है। दीपदान करने से आसपास का वातावरण और शुद्ध होता है और मन में उपजे अंधकार को दूर करने में भी सफलता मिलती है। उन्होंने बताया कि चतुर्दशी और दीपावली के दिन यदि घर के आस.पड़ोस में जाकर भी एक-एक दीपक द्वार पर रखकर आते हैं, तो उससे जुड़ाव भी पैदा होता है। इस तरह दीपावली के त्योहार पर दीपदान का महत्व आध्यात्मिक के साथ.साथ भौतिकता की दृष्टि भी श्रेष्ठ है।