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संस्कृति

मानव के रिश्ते को प्रकृति के साथ समर्पित है लोकपर्व हरेला

प्रो. ललित तिवारी, नैनीताल। भारतीय संस्कृति विविधता से परिपूर्ण है प्रकृति का संरक्षण प्राथमिकता से सभी  भागों में समाहित है । वही हिमालय राज्य उत्तराखंड  प्रकृति प्रेम के साथ संरक्षण एवं सतत विकास का संदेश देता  है। उत्तराखंड का लोक पर्व हरेले की आशीष तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार-माह तुम्हारे जीवन में आता रहे। धरती जैसा विस्तार और आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो। सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले। वंश-परिवार दूब की तरह पनपे। हिमालय में हिम और गंगा में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो के साथ मानव के रिश्ते  को प्रकृति के  साथ समर्पित लोकपर्व हरेला 17 जुलाई  को मनाया जाएगा।  उत्तराखंड में हरेला त्योहार सुख स्मृद्धि, वृद्धि और हरियाली के संरक्षण प्रतीक के रूप में मनाया जाता है। यह लोक पर्व को अच्छी फसल के सूचकांक के रूप में भी बड़े धूमधाम के साथ मनाने की परंपरा है। हरेला पर्व कर्क संक्रांति को श्रावण मास के पहले  दिन मनाया जाता है। हरेले के  ठीक 10 दिन पहले हरेला बोया गया लेकिन कुछ लोग 11 दिन का हरेला  भी बोते हैं। वैसे तो हरेला पर्व वर्ष में तीन बार मनाया जाता है। पहला – चैत्र मास, नवरात्र , दूसरा – सावन मास और तीसरा – आश्विन मास नवरात्र  में। वर्षा ऋतु  के  सावन हरेला का महत्व अधिक है  क्योंकि यह पर्व प्रकृति से जुड़ा हुआ है। उत्तराखंड में हरेला पर्व से सावन मास की शुरुआत मानी जाती है।  सावन भगवान शिव का प्रिय मास है। हरेला पर्व के समय शिव परिवार की पूजा अर्चना की जाती है और प्रकृति संरक्षण के लिए  धन्यवाद किया जाता है। इस पर्व को शिव पार्वती के विवाह के रूप में भी मान्यता है। माना जाता  है कि हरेला जितना बड़ा होगा, कृषि में उतना ही फायदा देखने को मिलेगा। वैसे तो हरेला को हर घर में बोया जाता है लेकिन कई गांव में सामूहिक रूप से स्थानीय ग्राम देवता के मंदिर में भी हरेला बोया जाता है। हरेला बोने के लिए हरेला त्योहार से दो  सप्ताह पूर्व से तैयारियां शुरू हो जाती हैं। साफ जगह से मिट्टी निकाल कर सुखाई जाती है और उसे छानकर रख लिया जाता है। हरेला में 7 या 5 किस्म के अनाज का मिलाकर बोया जाता है। इसमें धान, मक्की, उड़द, गहत, तिल और भट्ट शामिल होते हैं। इसे मंदिर के कोने में रखा जाता है। इस दिन पूरी , पुए  , बड़े  खीर आदि पकवान बनाए जाते हैं। हेरेले की पूर्व संध्या पर डीकरे पूजन तथा स्थानीय फलों के साथ  हरेले की भी पूजा होती है। कटे हुए हरेले में से कुछ भाग छत पर रख दिया जाता है। घर में छोटों को बड़े लोग हरेले के आशीष गीत के साथ हरेला लगाते हैं। गांव में या रिश्तेदारी में नवजात बच्चों को हरेला भेजा जाता है। इस दिन हरेला की शुभकामनाएं देकर बुजुर्ग बच्चों को आशीर्वाद देते हैं। इस दिन लोग पौधे लगाते हैं। पौधा लगाने का मतलब है कि वो प्रकृति संरक्षित रहे  तथा उनका लाभ मिले। प्रकृति हमे प्राण वायु से लेकर हमारे जीवन चक्र को संतुलित रूप में संचालित करने लिए , हमारी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से मदद करती है। उसी मदद का आभार प्रकृति की रक्षा और पूजा के रूप में प्रकट करने का पर्व है हरेला। हरेले के दिन पेड़ लगाकर प्रकृति के सवर्धन में अपना योगदान देकर प्रकृति को सतत रहने की कामना की जाती है।

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