संस्कृति
नवरात्र : देवी दुर्गा की आराधना में गरबा नृत्य और डांडिया नृत्य का विशेष स्थान
नवरात्र : देवी दुर्गा की आराधना में गरबा नृत्य और डांडिया नृत्य का विशेष स्थान
सीएन, अहमदाबाद। डांडिया रास नृत्य देवी दुर्गा के सम्मान में प्रदर्शन किया गया है जो भक्ति गरबा नृत्य, के रूप में जन्म लिया है। इस नृत्य को वास्तव में देवी दुर्गा और महिषासुर, पराक्रमी राक्षस राजा के बीच एक नकली लड़ाई का मंचन है। इस नृत्य भी तलवार नृत्य उपनाम दिया गया है। नृत्य की छड़ें देवी दुर्गा की तलवार का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन नृत्यों की उत्पत्ति भगवान कृष्ण के जीवन का पता लगाया जा सकता है। आज रास न केवल गुजरात में नवरात्रि का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, लेकिन साथ ही अन्य फसल से संबंधित त्योहारों और फसलों के लिए ही फैली हुई है।गरबा और डांडिया दोनों ही गुजराती संस्कृति का हिस्सा है। ये दोनों ही आमतौर पर से जुड़े हैं, जिसमें एक तरफ लोग मां अंबे के आने की खुशी मनाते हैं तो दूसरी तरफ बुराई पर अच्छाई की जीत का। पहली नजर में गरबा और डांडिया एक जैसे लग सकते हैं जबकि इन दोनों की शैलियों, लय और अवसरों में काफी अंतर है। ये दोनों ही दो अलग.अलग तरीके की भावनाओं को कहती हैं और दोनों के साथ दो अलग.अलग तरीके की भावनाए जुड़ी होती हैं। डांडिया असल में देवी दुर्गा और महिषासुर के बीच युद्ध का प्रतीक है। इस डांस में कहानी ये है कि डांडिया की रंगीन छड़िया देवी की तलवार का प्रतिनिधित्व करती हैं। जो लोग सही है डांडिया करना चाहते हैं वो आंखों के एक्सप्रेशन के साथ इसे करते हैं जिसमें देवी के रुप को आप समझ सकते हैं और पूरे युद्ध की कल्पना कर सकते हैं। इसके अलावा डांडिया शाम को देवी की आरती के बाद की जाती है और प्रतिभागियों की एक समान संख्या की जरुरत होती है। गरबा एक भक्तिपूर्ण अपील है और मां के आगमन की खुशी है। ये भजनों की मधुर धुनों के साथ की जाती है। गरबा मां अंबे की आरती से पहले की जाती है। इसमें भक्त देवी के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने के लिए एक साथ आते हैं। इसमें हाथ और पैर एक लयबद्ध संगीत के रुप में ताली बजाते हुए गोलाकार गति से चलते हैं। गरबा डांस जीवन की गोलाकार गति और जीवन चक्र का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें देवी दुर्गा अजेय रहती हैं।