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संस्कृति

चल घूमी ओंला गेल्या ऊंचा टकनौरा, तख  ध्याणियां कु थो सेलकु त्योहारा

चल घूमी ओंला गेल्या ऊंचा टकनौरा, तख  ध्याणियां कु थो सेलकु त्योहारा
सीएन, उत्तरकाशी।
सितंबर महीने के आते ही जब पहाड़ों पर ठंड अपनी दस्तक देनी शुरू कर देती है तब उत्तरकाशी जिले के सीमांत गांव मुखवा, हर्षिल, रैथल, बारसू, सुक्की यानी की उपला टकनोर में सेलकू मेला मनाया जाता है। सेल्कू मेला दो दिन दिन व रात मनाया जाता है। हर साल 16 और 17 सितंबर को भाद्र पद की आखिरी रात को सेलकू मेला धूमधाम से मनाया जाता है। ये मेला अपने आप में बेहद ही खास है क्योंकि इसमें शामिल होने के लिए गांव की ध्याणियां मायके आती हैं। सेलकू का अर्थ है सोएगा कौन चल घूमी ओंला गेल्या ऊंचा टकनौरा, तख ध्यानियों कु थो सेलकु त्योहारा। ये लोकगीत उत्तरकाशी के सीमांत गांवों में बेहद ही प्रसिद्ध है। आपको बता दें कि ये गीत सेलकू मेले पर ही बना हुआ है। गंगा घाटी के गावों में इन दिनों ये गीत गूंज रहा है। मेले में हिमालय के राजा सोमेश्वर देवता की पूजा की जाती है। गांव के लोग ऊंचे हिमालय क्षेत्र में जाकर बुग्यालों से ब्रहम कमल, जयाण, केदार पाती सहित कई प्रकार के फूल देवता को चढ़ाने के लिए लाते हैं। चौक में इन फूलों से देवता का स्थान सजाया जाता है रात को गांव के सभी ग्रामीण मशाल लेकर दीपावली मनाते हैं। इस मेले के उपलक्ष्य में हर घर में मेहमानों के लिए विशेष पकवान बनाते जाते हैं। जिसमें देवड़ा भी बनता है जिसे घी के साथ मेहमानों को खिलाया जाता है। अगले दिन देवता की पूजा होती है और रासो, तांन्दी लगायी जाती है। गांव की विवाहित बेटियां जिन्हें की ध्याणियां कहा जाता है इस दिन अपने मायके आकर भगवान सोमेश्वर को भेंट चढ़ाती है। साथ ही साथ ग्रामीण अपनी नकदी फसल देवता को भेंट करते हैं। आखिर में देवता कुल्हाड़ी पर चलकर आर्शीवाद देते हैं। इस दौरान देवता ग्रामीणों की समस्याओं का समाधान भी करते हैं। आपको बता दें कि उत्तरकाशी के सेलकू मेले का इतिहास तिब्बत व्यापार से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोगों के मुताबिक काफी सालों पहले यहां से तिब्बत के साथ व्यापार होता था। लेकिन भारत और चीन के युद्ध के बाद इसे बन्द कर दिया गया। कहा जाता है कि जब यहां के लोग तिब्बत व्यापार करने जाते थे तो वह दीपावली के काफी समय बाद लौटते थे। इसलिए उन्हीं के स्वागत में इसे दीपावली के रूप में भी मनाया जाता है। बता दें कि सोमेश्वर देवता पर यहां के लोगों की बड़ी आस्था है। पहले यहां के अधिकांश लोगों का मुख्य व्यवसाय भेड़ पालन हुआ करता था। ज्यादातर लोग भेड़ों के साथ जंगलों में रहते थे। माना जाता है कि वहां उनकी और उनकी भेड़ों की रक्षा सोमेश्वर देवता करते हैं। उसी के धन्यवाद करने के लिए ग्रामीण गांव लौटने पर उनकी पूजा अर्चना करते हैं।

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