संस्कृति
ककड़ी खाने का असल तरीका पहाड़ियों के पास ही हुआ बल………
ककड़ी खाने का असल तरीका पहाड़ियों के पास ही हुआ बल………
प्रो. मृगेश पाण्डे, हल्द्वानी। अब बड़ी ककड़ी के रायते के तो कहने ही क्यां हरी ककड़ी की चोरी भी माफ़ ठेरीं पर तभी तलक जब तक बुड बाड़ों की नज़र चूकी रहे। नन्तर ककड़ी तो गई सो गई ऐसी ऐसी गालियां खाने को मिलें कि पुस्त दर पुस्त का सराद हो और वो भी ऐसा कि बड़े बड़े मसाण तर जाएंं। ककड़ी को खाने से पहले इसकी मुंडी चाकू से कट्ट काट ककड़ी की कटी मुंडी में आयात.वर्ग सा चाकू खरोंच लूण डाल, काटे गए ऊपरी हिस्से से खूब रगड़ देते तो सफ़ेद झाग निकलतां झाग वाली मुंडी बदमाशी में किसी यार के माथे पे चिपका भी जातीं। हरी छोटी ककड़ी तो देखते ही उदरस्त हो जाती। वैसे रायते के लिए पीली पड़ गई या तप कर भूरी पड़ गई ककड़ी गजब होती। इसे काट कोर कर गूदा हटा मोटे कपडे से निचोड़ सारा पानी निथार लेते। अब ठेकी में जमे दही में कोरा निथरा भाग मिलाते। साथ में काली राई व खुस्याणी पीस कर मिलाते। थोड़ा नमक भी पड़ता। जितना सानो फेंटो उतना स्वाद रायता बनता। बस दही पनियल न हो नहीं तो रायता फैलने व पतपत होने की झसक बनी रहती। ककड़ी के पानी को आटे में गूँथ चोखी रोटी बनती। पीली भूरी ककड़ी का पानी हल्का दूधिया लसदार होता। ये पेट दर्द में भी काम आता। ककड़ी के अलावा मूली का भी रायता बनता जिसकी तासीर गनेन होती। पके केले में गुड़ या शक्कर मिला मीठा रायता तैयार होता। बेथवे को उबाल कर जो रायता तैयार होता वो पेट की सारी आदि .व्याधि हर लेता। ऐसी ही तासीर लौकी के रायते की भी होती।