संस्कृति
शास्त्रों में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती जलाने का उल्लेख नही, फिर भी जला रहे हैं लोग
सीएन, हरिद्वार। हम अक्सर शुभ (जैसे हवन अथवा पूजा-पाठ आदि) और अशुभ (दाह संस्कारादि) कामों के लिए विभिन्न प्रकार की लकड़ियों को जलाने में प्रयोग करते है, लेकिन क्या आपने कभी किसी काम के दौरान बांस की लकड़ी जलती देखी है। भारतीय संस्कृति, परंपरा और धार्मिक महत्व के अनुसार, ‘हमारे शास्त्रों में बांस की लकड़ी को जलाना वर्जित माना गया है। यहां तक कि हम अर्थी के लिए बांस की लकड़ी का उपयोग तो करते है, लेकिन उसे चिता में जलाते नहीं।’ आर्य (हिन्दू) धर्मानुसार बांस जलाने से पितृ दोष लगता है वहीं जन्म के समय जो नाल माता और शिशु को जोड़ के रखती है, उसे भी बांस के वृक्षो के बीच में गाड़ते है ताकि वंश सदैव बढ़ता रहे। सांइस कहता है बांस में लेड व हेवी मेटल प्रचुर मात्रा में पाई जाती है। लेड जलने पर लेड ऑक्साइड बनाता है जो कि एक खतरनाक नीरो टॉक्सिक है। हेवी मेटल भी जलने पर ऑक्साइड्स बनाते हैं। लेकिन जिस बांस की लकड़ी को जलाना शास्त्रों में वर्जित है यहां तक कि चिता में भी नही जला सकते, उस बांस की लकड़ी को हम लोग रोज़ अगरबत्ती में जलाते हैं। अगरबत्ती के जलने से उत्पन्न हुई सुगन्ध के प्रसार के लिए फेथलेट नाम के विशिष्ट केमिकल का प्रयोग किया जाता है। यह एक फेथलिक एसिड का ईस्टर होता है जो कि श्वांस के साथ शरीर में प्रवेश करता है, इस प्रकार अगरबत्ती की तथा कथित सुगन्ध न्यूरोटॉक्सिक एवम हेप्टोटोक्सिक को भी स्वांस के साथ शरीर में पहुंचाती है। इसकी लेशमात्र उपस्थिति कैंसर अथवा मष्तिष्क आघात का कारण बन सकती है। हेप्टो टॉक्सिक की थोड़ी सी मात्रा लीवर को नष्ट करने के लिए पर्याप्त है। शास्त्रों में पूजन विधान में कही भी अगरबत्ती का उल्लेख नही मिलता सब जगह धूप ही लिखा है। अगरबत्ती का प्रयोग भारतवर्ष में इस्लाम के आगमन के साथ ही शुरू हुआ है। मुस्लिम लोग अगरबत्ती मज़ारों में जलाते है।