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उत्तराखंड :  आज और कल बोया जाएगा हरेला, 16 जुलाई को इसे शिरोधार्य किया जाएगा

उत्तराखंड :  आज और कल बोया जाएगा हरेला, 16 जुलाई को इसे शिरोधार्य किया जाएगा
सीएन, नैनीताल।
शनिवार को विधि-विधान से हरेला बोया जाएगा, हरियाली और समृद्धि का प्रतीक प्रसिद्ध हरेला पर्व की तैयारियां शुरू हो गई हैं। इसके लिए लोगों ने पांच प्रकार के अनाज और टोकरी सहित अन्य सामग्री की खरीदारी की। इससे बाजार में रौनक रही। पर्वतीय अंचल में हरेला कहीं 10 दिन तो कहीं 11 दिन पूर्व बोया जाता है। ऐसे में आज और कल इसकी बुआई होगी। गेहूं, धान, जौ आदि पांच या सात प्रकार के अनाज को मिलाकर टोकरियों में बोया जाएगा। 15 जुलाई को विधि.विधान से डिकरों का पूजन के साथ ही हरेले की गुड़ाई की जाएगी और 16 जुलाई को इसे शिरोधार्य किया जाएगा। कुमाऊं में हरेले से ही श्रावण मास और वर्षा ऋतु का आरंभ माना जाता है। हरेले के तिनकों को इष्ट देव को अर्पित कर अच्छे धन-धान्य, दुधारू जानवरों की रक्षा और परिवार व मित्रों की कुशलता की कामना की जाती है। हरेले की पहली शाम डेकर पूजन की परंपरा भी निभाई जाती है। पांच, सात या नौ अनाजों को मिलाकर हरेले से नौ दिन पहले दो बर्तनों में उसे बोया जाता है। जिसे मंदिर के कक्ष में रखा जाता है। इस दौरान हरेले को जरूरत के अनुरूप पानी दिया जाता है। दो से तीन दिन में हरेला अंकुरित होने लगता है। सूर्य की सीधी रोशन से दूर होने के हरेला यानी अनाज की पत्तियों का रंग पीला होता है। हरेले की मुलायम पंखुड़ियां रिश्तों में धमुरता, प्रगाढ़ता प्रदान करती हैं। परिवार को बुजुर्ग सदस्य हरेला काटता है और सबसे पहले गोलज्यू, देवी भगवती, गंगानाथ, ऐड़ीए हरज्यूए सैमए भूमिया आदि देवों को अर्पित किया जाता है। इसके बाद परिवार की बुजुर्ग महिला व दूसरे वरिष्ठजन परिजनों को हरेला पूजते हुए आशीर्वचन देते हैं। हरेले से पहली शाम डेकर यानी श्री हरकाली पूजन होता है। घर के आंगन से शुद्ध मिट्टी लेकर शिव, पार्वती, गणेश, कार्तिकेय आदि की छोटी मूर्तियां तैयार की जाती हैं। उन्हें रंगने के साथ बाकायदा श्रृंगार किया जाता है। हरेले के सामने शिव.पार्वती का पूजन कर धन.धान्य की कामना की जाती है। हरकाली पूजन में पुवे-प्रसाद, फल आदि का भोग लगाया जाता है। हरेले की गुड़ाई की जाती है। हरेला पूजन के समय आशीष देने की परंपरा है। इसके बोल काफी समृद्धता और व्यापकता लिए हुए हैं। परिवारों के बुजुर्गों से इसे सुनने वाले छोटे बच्चे कई दिनों तक इन्हें गुनगुनाते रहते हैं।
यो दिन.मास.बार भेटनै रये,
धरती जस आगव, आकाश जस चाकव होये
सियक जस तराण, स्यावे जसि बुद्धि हो
दूब जस पंगुरिये
हिमालय में ह्यो, गंगा ज्यू में पाणी रौन तक बचि रये
सिल पिसि भात खाये, जांठि टेकि झाड़

यानि तुम जीते रहो और जागरूक बने रहो, हरेले का यह दिन-बार-माह तुम्हारे जीवन में आता रहे। धरती जैसा विस्तार और आकाश की तरह उच्चता प्राप्त हो। सिंह जैसी ताकत और सियार जैसी बुद्धि मिले। वंश.परिवार दूब की तरह पनपे। हिमालय में हिम और गंगा में पानी बहने तक इस संसार में तुम बने रहो।
हरेला पर्व वर्ष में तीन बार आता है
हरेला एक हिंदू त्यौहार है जो मूल रूप से उत्तराखण्ड राज्य के कुमाऊँ क्षेत्र में मनाया जाता है। हरेला पर्व वैसे तो वर्ष में तीन बार आता है. 1-चैत्र माह में  प्रथम दिन बोया जाता है तथा नवमी को काटा जाता है। 2.-श्रावण माह में सावन लगने से नौ दिन पहले आषाढ़ में बोया जाता है और दस दिन बाद श्रावण के प्रथम दिन काटा जाता है। 3-आश्विन माह में  आश्विन माह में नवरात्र के पहले दिन बोया जाता है और दशहरा के दिन काटा जाता है। चैत्र व आश्विन माह में बोया जाने वाला हरेला मौसम के बदलाव के सूचक है। चैत्र माह में बोया-काटा जाने वाला हरेला गर्मी के आने की सूचना देता है, तो आश्विन माह की नवरात्रि में बोया जाने वाला हरेला सर्दी के आने की सूचना देता है। लेकिन श्रावण माह में मनाये जाने वाला हरेला सामाजिक रूप से अपना विशेष महत्व रखता तथा समूचे कुमाऊं में अति महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक माना जाता है। जिस कारण इस अन्चल में यह त्यौहार अधिक धूमधाम के साथ मनाया जाता है। जैसाकि हम सभी को विदित है कि श्रावण माह भगवान भोलेशंकर का प्रिय माह हैए इसलिए हरेले के इस पर्व को कही कही हर-काली के नाम से भी जाना जाता है। क्योंकि श्रावण माह शंकर भगवान जी को विशेष प्रिय है।

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