नैनीताल
लोक सभा चुनाव 2024 : दलों के मुद्दों में क्या खो जायेंगे रोजगार व स्थानीय मुद्दे
पर्वतीय क्षेत्रों में रोजगार, पलायन, कृषि की समस्याओं का आज तक नही हुआ निदान
-जंगली जानवरों से कृषि उत्पादन प्रभावित, बेरोजगारी ने बढ़ाई पलायन की दर
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीतल। आज राज्य बने 23 साल हो गये। इन सालों में 2004 से लेकर अब तक राज्य में तीन लोकसभा चुनाव सम्पन्न हो गये। पांचवें लोकसभा चुनाव आसन्न है। राज्य बनने के बाद हुए लोक सभा व विधान सभा चुनावों में युवाओं को रोजगार देने का मुद्दा तो राष्ट्रीय दलों के घोषणापत्र में रहा लेकिन वह राष्ट्रीय मुद्दों में कहीं छिप से गये। इस बार फिर लोकसभा चुनाव होने जा रहे है। राष्ट्रवाद व राष्ट्रीय मुद्दों पर तो बात हो रही है लेकिन रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दों पर अब तक दलों की क्या एजेंडा है वह साफ नहीं है। हालांकि अभी चुनाव आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा भी नही की है और न ही दलों के घोषणा पत्र जारी नहीं हुए है। देखना है कि रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दों पर उनके घोषणा पत्र क्या कहते है। लेकिन इतना तय है कि दलों के अब तक के रूख से रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दे फिर स्थानीय स्तर पर गौंण हो जायेंगे। उत्तराखंड के परिप्रेक्ष्य में बात की जाय तो यहां हरिद्वार, उधमसिंह नगर व देहरादून को छोड़ नैनीताल के पहाड़ी इलाके सहित 10 जिले पूरी तरह पर्वतीय है। यहां रोजगार, पलायन, कृषि बड़ी समस्या के रूप में उभरी है। राज्य बनने के बाद आज 23 साल में भी इन समस्याओं का समाधान नही हो पाया। हालत तो यह रही कि इन समस्याओं का समाधान तो नही हुआ यह समस्या और अधिक बढ़ गई। पर्वतीय क्षेत्रों में मौसम की बेरूखी व जंगली जानवरों के कारण कृषि उत्पादन पूरी तरह प्रभावित हो चुका है। बेरोजगारी ने पलायन की दर बढ़ा दी। आज हालत यह है कि पड़ोसी राज्य हिमाचल में कृषि सुरक्षा की गारंटी सरकार ने ली है। अनाज, फल व सब्जी उगाने में वह अव्वल है। उत्तराखंड में कृषि सुरक्षा के लिए केवल कागजों में नीतियां बनाई गई है। जमीनी हकीकत यह है कि पहाड़ों में लोगों ने कृषि कार्य करना ही छोड़ दिया है। इसका सीधा परिणाम हुआ कि राज्य के कई गांवों में तेजी से पलायन हुआ। राज्य बनने के बाद उत्तराखंड इस मामले में पड़ोसी राज्य हिमाचल से बेहद फिसड्डी साबित हुआ है। यह हमारे राजनैतिक दलों व उनके कर्ताधर्ताओं की नाकामी ही दर्शाते है।
इस बार भी जनता को रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दों पर फिर भटकायेंगे दल
नैनीताल। अब चुनाव की बेला आने वाली है तो यह दल फिर जनता को रोजगार, पलायन, कृषि के मुद्दों पर फिर भटकायेंगे। यहां यह बताना जरूरी है कि नौकरी उत्तराखंड के लोगों की पहली प्राथमिकता रही है। क्यों कि कृषि व निजी क्षेत्र में रोजगार के अवसर कम होने के कारण यहां सरकारी व अर्ध सरकारी नौकरी पाना युवाओं का सपना है। लेकिन राज्य बनने के बाद नौकरी के अवसर नही के बराबर हो चुके है। विडंबना है कि जब-जब चुनाव आए राजनीतिक दलों ने इस मुद्दे को भावनात्मक हथियार की तरह इस्तेमाल किया। इसके विपरीत 19 सालों में भाजपा व कांग्रेस की राज्य व केंद्र में सरकार आई लेकिन रोजगार के अवसर नहीं खुले। हालत यह है कि आज राज्य के 13 जिलों में 9.26 लाख बेरोजगार पंजीकृत है। हालत तो यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में अपंजीकृत बेरोजगार मजदूरी के लिए शहरों में भटक रहे है या फिर प्रदेश से बाहर पलायन कर चुके हैं।