नैनीताल
जब हिन्दी फिल्मों में पहाड़ी लोकगीतों की धुनों का होता था इस्तेमाल
जब हिन्दी फिल्मों में पहाड़ी लोकगीतों की धुनों का होता था इस्तेमाल
सीएन, नैनीताल। एक समय ऐसा भी था जब हिन्दी फिल्मों में पहाड़ी लोकगीतों की धुनों का इस्तेमाल किया जाता था। आज की पीढ़ी को यह बात एक तरह की गप्प लगेगी। वैसे मोबाइल में दुनिया खोजने वाली इस पीढ़ी को तो बुजुर्ग पहाड़ियों के वर्मा पैदल आने.जाने की हकीकत भी गप्प ही लगती है। यह सच है कि एक समय ऐसा भी था पहाड़ के बहुत सारे लोग रोजगार के लिए वर्मा यानी आज के म्यामांर जाते थे। कुछ पहाड़ी तो ऐसे भी थे जिन्होंने अपने कर्मबल से वर्मा में बड़ा कारोबार खड़ा किया था। दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बहुत सारे पहाड़ी वर्मा में अपना जमा.जमाया कारोबार छोड़कर घर लौट आये। पहाड़ के कई घरों में आज भी वर्मा के किस्से बड़े चाव से सुनाने वाले बुजुर्ग मिल जाते हैं।
खैर, जिस तरह वर्मा के किस्से हकीकत हैं उसी तरह हिन्दी फिल्मों में पहाड़ी लोकधुनों का इस्तेमाल भी एक हकीकत है। ऐसा नहीं है कि छोटी.मोटी हिन्दी फिल्मों में पहाड़ी लोकधुनों का इस्तेमाल हुआ। पहाड़ी लोकधुनों का इस्तेमाल बड़े बैनर की लोकप्रिय फिल्मों में हुआ। बड़े बैनर बनी इन फिल्मों का संगीत खूब लोकप्रिय हुआ। मसलन लोकप्रिय फिल्म मधुमती के दो गीत पहाड़ी लोकधुन पर आधारित हैं। दीवानी लौंडा द्वाराहाट और ओ दरी हिमाला दरी गीत की धुन पर मधुमती फिल्म के दो गीत रचे गये। इन दोनों गीतों की धुन संगीतकार सलिल चौधरी पहाड़ से ही लेकर गये थे। दरसल संगीतकार सलिल चौधरी और लोक कलाकार मोहन उप्रेती मित्र हुआ करते थे। सलिल चौधरी पाने मित्र मोहन उप्रेती से ही इन दोनों गीतों की धुन लेकर गये। फिल्म मधुमती के लिये दीवानी लौंडा द्वाराहाट और ओ दरी हिमाला दरी गीत की धुन पर गीत दैय्या री दैय्या चढ़ गयो पापी बिछुआ और जुल्मी संग आंख लड़ी हैं। दीवानी लौंडा द्वाराहाट की धुन पर रचा गया गीत दैय्या री दैय्या चढ़ गयो पापी बिछुआ और ओ दरी हिमाला दरी गीत की धुन पर रचा गया जुल्मी संग आंख लड़ी। यह तो पचास के दशक के आखिर की एक फिल्म है। इसके बाद भी कई ऐसे मौके आये जब पहाड़ की लोकधुन पर हिन्दी फिल्मों के गीत रचे गयेण् यह बात अलग है कि इनका श्रेय कभी पहाड़ियों को नहीं मिलाण्
काफल ट्री से साभार
