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पर्यावरण

इन दिनों पतझड़ से बेनूर हुआ नैनीताल माल रोड का अफगानी चिनार

इन दिनों पतझड़ से बेनूर हुआ नैनीताल माल रोड का अफगानी चिनार
झील के बाद माल रोड में लगे वृक्ष पर्यटकों का होता है मुख्य आकर्षण का केन्द्र
पड़ोसी देश अफगानिस्तान से कश्मीर फिर नैनीताल पहुंचा खूबसूरत वृक्ष
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
हिल स्टेशन नैनीताल में प्रवेश करते ही जब पर्यटक नैनी झील को देखता है तो वह समझ भी नहीं पाता कि पहाड़ की चोटी में ऐसी सुन्दर झील भी हो सकती है। जब वह माल रोड में प्रवेश करता है तो एक झबरेले सुन्दर पेड़ को देख मंत्रमुग्ध हो जाता है। यह सुन्दर पेड़ अफगानी चिनार है। नैनीताल के माल रोड सहित राजभवन क्षेत्र व सूखाताल क्षेत्र में लगे यह विशालकाय पेड़ पतझड़ के कारण इन दिनों बेनूर हो गये हैं। इन पेड़ों का नैनीताल में पाये जाने का भी दिलचस्प इतिहास है। नैनीताल में अब यहां वन विभाग की नर्सरियों से एक साल से 25 साल तक के पेड़ लगाये गये है। लेकिन यहां 150 वर्ष से अधिक उम्र के वृक्ष अफगानिस्तान मूल के हंै। मुगल शासक जहांगीर की पत्नी नूरजहां ने सबसे पहले अफगान से लाकर कश्मीर में इसके पौधे रोपे फिर अंग्रेज इसे नैनीताल व भारत के हिल स्टेशनों में लाये। आज यह वृक्ष नैनीताल की शान बने है। नैनीताल में लगाये गये चिनार के पुराने वृक्षों की संख्या नगण्य है। जबकि नये वृक्ष अभी बहुत छोटी अवस्था में है। इतिहासकारों के मुताबिक प्रकृति प्रेमी जहांगीर ने अपने शासनकाल में कश्मीर में कई बगीचों की स्थापना की थी। इसी दौरान मुगल शासक की पत्नी नूरजहां ने अफगानिस्तान से चिनार के पौंधों को मंगाकर कश्मीर में रोपे। कश्मीर में चिनार बहुतायत पाया जाता है। चिनार मूल रूप से यूनान, बालकन, ईरान आदि देशों का वृक्ष है। अंग्रेजों ने भारत में शासन किया तो उन्होंने 1890 के दौरान कश्मीर से चिनार लाकर नैनीताल, शिमला व अन्य हिल स्टेशनों में रोपे। ऐवन्यू ट्री के नाम से मशहूर चिनार झबरेले होने के साथ ही यह छायादार व अत्यधिक सुन्दर भी होते है। दरअसल चिनार के पत्तों की खासियत है कि वे मौसम के हिसाब से अपना रंग बदलते हैं। गर्मियों में चिनार के पत्ते गहरे हरे रंग के होते हैं। जबकि पतझड़ के मौसम में इसके पत्तों का रंग पहले रक्त की तरह लाल, गहरा पीला और फिर पीले रंग में बदल जाता है। अपनी खूबसूरती के कारण यह नैनीताल आने वाले पर्यटकों के आकषर्ण का केन्द्र होते है। इन वृक्षों को नदी किनारों, बर्फबारी वाले स्थानों में सरसब्ज होते हुए देखा गया है। यह चैड़ी पत्ती वाले वनों में भी पनप सकता है। इसका काष्ठ फर्नीचर बनाने के उपयोग में लाया जाता है। कुमाऊं मंडल में इसके विशाल वृक्ष नैनीताल में पाया गया है। चिनार की सुन्दरता उसके रंग बदलते पत्तियों को लेकर भी है। चिनार में नवम्बर से दिसम्बर तक पतझड़ होता है। इस दौरान इसकी पत्तियां गिर जाती हैं। माल रोड में श्रृंखलाबद्ध लगे इन वृक्षों में जब पतझड़ होता है तो माल रोड व चिनार के पेड़ बेनूर दिखाई देते है। फरवरी से मार्च तक इसमें पत्तियां आनी शुरू हो जाती है। अप्रैल के बाद तो यह वृक्ष पत्तियों से लकदक हो उठता है। इसकी खूबसूरती देखते ही बनती है। तिकोने आकार की पत्तियां कई रंग बदलती है। हरी, धानी, गहरी हरी व बैंगनी रंग बदलते रहते है। गर्मियों में इसकी छांव में बैठने का आनंद ही कुछ और है।
चिनार का कश्‍मीर से 700 साल पुराना अनोखा रिश्‍ता
इतिहास के मुताबिक़ चिनार के पेड़ों और कश्मीर का वास्ता बहुत पुराना है। अगर आप एक की बात करते है तो दूसरे का ख़्याल आपको अपने आप आ जाता है। दरअसल चिनार दशकों से जम्मू-कश्मीर की बदलती क़िस्मत या फिर कहे यहां की सियासत का गवाह रहा है। चुपचाप घाटी में झील के किनारे झेलम के तट पर और गुपकार रोड के आसपास सदियों से यहां क्या-क्या हो रहा है वो सब देखता रहा है। वैसे तो चिनार का रिश्ता ग्रीस से है लेकिन कश्मीर तक इसे फ़ारसी लाये। उसके बाद मुग़ल शासकों ने इसे हर जगह लगाया। इतिहास के मुताबिक़ मुगल शासकों ने सबसे ज़्यादा चिनार नसीम बाग जो हजरतबल के पास है वहां लगाये। उसके आसपास कश्मीर यूनिवर्सिटी भी है। नौजवान लोग इनके आसपास घूमते आराम करते और फोटो खींचते दिख जाएंगे। हाल में हुए सर्वे के मुताबिक सबसे ज्यादा चिनार बिजभार, बड़गाम, कोकरनाग और अनंतनाग में देखने को मिलते हैं। कहते है कि 1948 तक डोगरा शासन में यह पेड़ सरकार की संपत्ति थी और इसे काटना अपराध था। 2009 में फिर से पेड़ काटने पर रोक लगाई गई और इसे राज्य की संपत्ति बताया गया जिसका पंजीकरण होना जरूरी किया गया। तब से इस कानून का सख्ती से पालन किया जा रहा है।
जहांगीर ने अपने शासनकाल में कश्मीर में कई बगीचों की स्थापना की थी। इसी दौरान मुगल शासक की पत्नी नूरजहां ने अफगानिस्तान से चिनार के पौंधों को मंगाकर कश्मीर में रोपे। मूल रूप से यह वृक्ष ग्रीस देश का माना जाता है। कश्मीर में चिनार बहुतायत पाया जाता है। जब अंग्रेजों ने भारत में शासन किया तो उन्होंने 1890 के दौरान कश्मीर से चिनार लाकर नैनीताल, शिमला व अन्य हिल स्टेशनों में रोपे। ऐवन्यू ट्री के नाम से मशहूर चिनार झबरीले होने के साथ ही यह छायादार व अत्यधिक सुन्दर भी होते है। अकबरनामा में चिनार का वृक्ष कश्मीर में होने का जिक्र है। लेकिन नूरजहां द्वारा चिनार के वृक्ष अफगानिस्तान से लाकर कश्मीर में रोपे जाने के प्रमाण भी है। प्रो. अजय रावत, इतिहासविद् नैनीताल।

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