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पर्यावरण

समय-समय पर वर्षा होने से फिलहाल आग से सुरक्षित पहाड़ के वन

समय-समय पर वर्षा होने से फिलहाल आग से सुरक्षित पहाड़ के वन
2016 में पर्वतीय क्षेत्र के 4470 हैक्टेयर वनों में भीषण आग से हुआ था भारी नुकसान
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
समय-समय पर वर्षा होने के कारण नैनीताल के चीड़ वनों में फिलहाल नमी बनी हुई है। इससे अभी तक नैनीताल वन प्रभाग के अधिकारियों ने राहत की सांस ली है। वन विभाग के अधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस वर्ष अब तक नैनीताल वन प्रभाग में केवल आग की महज चार घटनाएं हो चुकी है। इससे 3.5 हेक्टेयर वनों को नुकसान हुआ है। वनों में आग बुझाने के लिए हाई कोर्ट के आदेशों के तहत प्रारम्भिक कार्य पूर्व में ही सम्पन्न करा दिये गये थे। जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है साथ ही कन्ट्रोल रूम भी स्थापित किये गये हैं। वनों पर सेटेलाइट से नजर रखी जा रही है। मालूम हो कि 2016 में पर्वतीय क्षेत्र के 4470 हैक्टेयर वनों में भीषण आग से भारी नुकसान हो गया था। इसे हाई कोर्ट ने संज्ञान लेकर गंभीर रूख अपनाया था। इस बार हांलाकि अन्य जनपदों से आग की घटनाओं की सूचना मिल रही है। लेकिन बीते वर्ष की अपेक्षा आग की अधिक विभिषिका नही है। बीते वर्ष प्रदेश में वर्षा व पहाड़ों में कम वर्षा व बर्फवारी होने से निचले हिमालय स्थित चीड़ के जंगलों में फरवरी से ही तपिस शुरू हो गई थी। इस बार शासन हाई कोर्ट के आदेशों के बाद सर्तकता बरत रहा है। उसने समय से पूर्व ही वनों में आग बुझाने के लिए हाई कोर्ट के आदेशों के तहत प्रारम्भिक कार्य शुरू कर दिये। मिली रिपोर्टो के मुताबिक प्रदेश के 23 हजार हैक्टेयर जंगलों को आग के दायरे में आते है। लेकिन इस बार समय-समय पर पहाड़ों में हो रही वर्षा के कारण राहत बरकरार है। रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चमोली व पौड़ी जिलों में इस बार आग की घटनाओं की सूचना है लेकिन यह पिछले वर्ष की अपेक्षा न्यून है। पहाड़ों के चीड़ जंगलों में गर्मियों में आग लगना आम बात है। लेकिन सूखा व सरकारी मशीनरी की उदासीनता के कारण यह आग भीषण रूप रख लेती है। जंगलों में नमी नही होने के कारण आग और अधिक भयानक होती है। पहाड़ों में चीड़ के जंगलों में भारी पतझड़ होने के बाद आग की घटनायंे शुरू होती है। लेकिन इस बार वन अपफसरों ने हाई कोर्ट के खौफ पहले ही आग रोकने की तैयारी कर ली। अब उन पर मौसम मेहरबान बना हुआ है। अगर मौसम ने आगे साथ दिया और महकमा अलर्ट रहा तो वन इस बार बच सकते है।
वन अफसरों में इन्द्रदेव से राहत पर हाई कोर्ट से खौफ
नैनीताल।
समय-समय पर हो रही वर्षा के कारण इस बार जहां वन अफसरों को इन्द्रदेव से राहत मिल रही हैं वहीं नैनीताल हाई कोर्ट का खौफ भी बना हुआ है। मालूम हो कि वर्ष 2016 में उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भीषण आग का मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट में पहुंच गया था। इस मामले हाई कोर्ट ने गम्भीर रूख आख्तियार कर लिया था। इसके साथ ही कड़े निर्देश भी जारी कर दिये। कोर्ट ने शासन को जहां एसडीआरएफ, एनडीआरएफ फोर्स तैनात करने के निर्देश दिये थे। वहीं 24 घंटे आग नहीं बुझने पर डीएफओ, 48 घंटे में वन संरक्षक व 72 घंटे जंगल की आग नहीं बुझने पर प्रमुख वन संरक्षक को सस्पेंड करने तक के कड़े आदेश जारी किये थे। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस पर स्टे दिया था। लेकिन अफसरों को अन्य आग को रोकने संबंधित आदेशों का पालन करना होगा।
चीड़ वन जंगलों में आग की विभिषिका मानवजनित
उत्तराखण्ड में मुख्यतः चीड़ वन ही जंगलों में आग की विभिषिका हेतु उत्तरदायी है। स्थानीय निवासी चारागाहों के नियोजन एवं वन विभाग चीड़ वनों के नियोजन हेतु नियन्त्रित आग प्राचीन समय से ही लगाते आये हैं। जहां एक ओर स्थानीय निवासियों को आग लगाने के बाद वर्षा ऋतु में मुलायम घास की अच्छी पैदावार प्राप्त होती है, वहीं वन विभाग गर्मियों में वनों में आग की विभिषिका को कम करने हेतु नियन्त्रित फुकान की तकनीक को अपनाता रहा है। हाल के वर्षों में वन विभाग द्वारा मोटर मार्गो के दोनों ओर चीड़ पत्तियों को एकत्र करके नियन्त्रित फुकान भी किया जाने लगा है। गढ़वाल विश्वविद्यालय में 1985.86 के दौरान किये गये अध्ययन से ज्ञात हुआ कि उत्तराखंड़ में 63 प्रतिशत वनों की आग की घटनायें जान.बूझकर लगाई गई एवं शेष 37 प्रतिशत दुर्घटनावश थी। आकाशीय बिजली गिरने से वनों में अग्नि लगने की घटना नहीं पाई गई। चीड़ वनों में आग की पुनरावृत्ति 2 से 5 वर्षों में होती है एवं उत्तराखण्ड के 11 प्रतिशत वनों में हर वर्ष आग लगती है।
बांज वनों का धीरे धीरे सिकुड़ना बेहद चिन्ता का विषय
चीड़ के वृक्षों की विशेषताओं में पशुओं की चराई के डर से मुक्तिए उर्वरकता विहीन शुष्क मिट्टी, अल्प वर्षा वाले क्षेत्रों एवं चट्टानी जगहों में इसके तेजी से उगने व पुर्नजनन की अदभुत क्षमता शामिल हैण् इसके विपरीत बाॅज स्थानीय निवासियों हेतु एक बहुउपयोगी वृक्ष हैए जिससे वर्ष भर उत्तम चारा, उच्च कोटी की जलावनी लकड़ी, मृदा एवं जल संरक्षण जैसे हिमालयी जीवन की आधारभूत आवष्यकताओं की पूर्ति होती हैण् लेकिन बांज वृक्ष में उपरोक्त वह अन्य गुण नहीं है जो चीड़ में पाये जाते है। उत्तराखंड में जल संरक्षण की दृष्टि से महत्वपूर्ण बांज वनों का धीरे धीरे सिकुड़ना बेहद चिन्ता का विषय है क्योंकि इन वनों से न केवल यहां का जन.जीवन व जलवायु जुड़ी है बल्कि यहां से निकलने वाली सदाबहार नदियां गर्मियों में पानी की अत्याधिक कमी व वर्षा ऋतु में बाढ़ की आवृति बढ़ रही है।

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