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आखिर मणिपुर की हिंसा को हिंदू बनाम ईसाई क्यों नहीं मानता आरएसएस
आखिर मणिपुर की हिंसा को हिंदू बनाम ईसाई क्यों नहीं मानता आरएसएस
सीएन, नई दिल्ली। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने मणिपुर हिंसा को हिंदुओं और ईसाइयों के बीच संघर्ष के तौर पर दिखाए जाने को लेकर आपत्ति जताई है। उसने कहा है कि यह हिंदू-ईसाई के बीच संघर्ष नहीं है। कुछ पार्टियों ने इसे एक साजिश के हिस्से के रूप में ऐसे ही दिखाने की कोशिश की है। आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने स्वीकार किया कि संघर्ष ने एक ऐसा घाव बना दिया है जिसे भरने में कई साल लग जाएंगे। वह बोले कि कुकी ईसाई समुदाय के हैं। वहीं, ज्यादातर मैतेई हिंदू। लेकिन, उनके बीच टकराव का उनकी धार्मिक पहचान से कोई लेना-देना नहीं है। संघ पदाधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर ये बातें कहीं। कुछ संगठनों ने दावा किया है कि गिरिजाघरों को नुकसान पहुंचाने के कारण यह संघर्ष शुरू हुआ। ऐसा कहने वालों में विदेश के कुछ प्रमुख संगठन भी शामिल हैं। उन्होंने इसे धार्मिक संघर्ष बताया है। संघ का बयान उसी की पृष्ठभूमि में आया है। पदाधिकारी ने कहा कि कुकी और मैतेई का हिंसा का कोई इतिहास नहीं है। दोनों समुदायों के सदस्यों के बीच विवाह आम बात है। संघ पदाधिकारी ने वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा में शाही ईदगाह स्थलों पर हिंदुओं के दावे का भी समर्थन किया। वह बोले, ‘उन्हें हिंदुओं को सौंप दिया जाना चाहिए। वास्तव में दोनों के निर्विवाद हिंदू चरित्र को देखते हुए पहली बार में कोई विवाद नहीं होना चाहिए था। एक विवाद गढ़ा गया है।’ उनका बयान उन दो स्थानों पर नियंत्रण को लेकर बढ़ती कानूनी लड़ाई की पृष्ठभूमि में आया है।
समान नागरिक संहिता की मांग उचित
संघ पदाधिकारी ने समान नागरिक संहिता की मांग को उचित ठहराया। कहा कि संविधान निर्माताओं ने इसे लागू करने को अपनी आकांक्षाओं में शामिल किया था। सुप्रीम कोर्ट की ओर से पारित आदेशों की ओर इशारा करते हुए उन्होंने कहा कि इस संबंध में देरी पर खेद व्यक्त किया गया था। उन्होंने कहा कि नागरिक कानून वैसे ही होने चाहिए, जैसे हमारे पास समान दंडात्मक कानून हैं। नभाटा से साभार