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अटल बिहारी वाजपेयी की है आज पुण्यतिथि : भारतीय राजनीति के थे भीष्म पितामह

अटल बिहारी वाजपेयी की है आज पुण्यतिथि : भारतीय राजनीति के थे भीष्म पितामह
सीएन, नैनीताल।
पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज पुण्यतिथि है। अटल बिहारी वाजपेयी भारत के दसवें प्रधानमंत्री थे। उन्होंने प्रधानमंत्री का पद तीन बार संभाला है वे पहले 13 दिन के लिए 16 मई 1996 से 1 जून 1996 तक। फिर लगातार 2 सेशन 8 महीने के लिए 19 मार्च 1998 से 13 अक्टूबर 1999 और फिर वापस 13 अक्टूबर 22 मई 2004 तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। वे हिन्दी कवि, पत्रकार व एक प्रखर वक्ता थे। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापकों में एक थे और 1968 से 1973 तक उसके अध्यक्ष भी रहे। उन्होंने लम्बे समय तक राष्ट्रधर्म, पाञ्चजन्य पत्र और वीर अर्जुन आदि राष्ट्रीय भावना से ओत.प्रोत अनेक पत्र.पत्रिकाओं का संपादन भी किया। वह चार दशकों से भारतीय संसद के सदस्य थे, लोकसभा, निचले सदन, दस बार, और दो बार राज्यसभा, ऊपरी सदन में चुने गए थे। उन्होंने लखनऊ के लिए संसद सदस्य के रूप में कार्य किया, 2009 तक उत्तर प्रदेश जब स्वास्थ्य संबंधी चिंताओं के कारण सक्रिय राजनीति से सेवानिवृत्त हुए। अपना जीवन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक के रूप में आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेकर प्रारम्भ करने वाले वाजपेयी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार के पहले प्रधानमंत्री थे जिन्होंने गैर काँग्रेसी प्रधानमन्त्री पद के 5 वर्ष बिना किसी समस्या के पूरे किए। आजीवन अविवाहित रहने का संकल्प लेने के कारण इन्हें भीष्म पितामह भी कहा जाता है। उन्होंने 24 दलों के गठबंधन से सरकार बनाई थी जिसमें 81 मंत्री थे। 2005 से वे राजनीति से संन्यास ले चुके थे और नई दिल्ली में 6. कृष्णामेनन मार्ग स्थित सरकारी आवास में रहते थे। 16 अगस्त 2018 को लम्बी बीमारी के बाद अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान दिल्ली में श्री वाजपेयी का निधन हो गया। वे जीवन भर भारतीय राजनीति में सक्रिय रहे‍।
पूरा जीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया
भारत रत्‍न अटल बिहारी वाजपेयी ने पूरा जीवन अविवाहित रहने का निर्णय लिया था और अंतिम समय तक इसका निर्वहन करते रहे। अब मन में सवाल आता है कि अपनी वाकपटुता से विपक्ष को भी कायल बना लेने वाले अटल बिहारी वाजपेयी ने आखिर शादी क्यों नहीं की। आजीवन कुंवारे रहने का फैसला क्यों कर लिया। तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी वाजपेयी अपनी हाजिर जवाबी के लिए जाने जाते थे। अटल जी के बारे में कहा जाता है कि बेशक वह कुंवारे थे लेकिन प्रेम करने से बच नहीं पाए। अटल जी की जिंदगी में भी एक महिला थी जिसका नाम राजकुमारी कौल था। राजकुमारी कौल और अटल बिहारी वाजपेयी अच्छे दोस्त थे। समय के साथ दोनों की दोस्ती प्यार में बदल गई। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने अपनी किताब में भी इस बात का जिक्र भी किया है। साल 1940 में ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में अटल बिहारी वाजपेयी और राजकुमारी कौल की मित्रता हुई थी। वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर ने लिखा है कि अटल जी ने अपने प्यार का इजहार करने के लिए राजकुमारी कौल को एक प्रेम पत्र लिखा था लेकिन राजकुमारी कौल ने उनके इस पत्र का जवाब नहीं दिया। अटल जी ने जवाब के इंतजार में शादी ही नहीं की। बाद में अटल बिहारी वाजपेयी राजनीति में आ गए और राजकुमारी कौल के पिता ने उनकी शादी प्रोफेसर ब्रिज नारायण कौल से करा दी। मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अटल बिहारी के परिजन बताया करते थे कि पूर्व प्रधानमंत्री में बचपन से ही देश सेवा करने का एक अलग सा जुनून था वे पूरे देश को अपना परिवार समझते थे और पूरे देश को अपना घर। उनकी शादी को लेकर कहा जाता है कि अटल जी देश सेवा के कार्यों में इस कदर फंस गए कि उन्हें शादी करने का मौका ही नहीं मिला। एक साक्षात्कार में अटल जी ने खुद कहा था कि देश और देश के करोड़ों लोगों का जो परिवार है उनकी जिम्मेदारियों निभाते हुए इस कदर उलझा कि कभी शादी करने का मुहूर्त ही नहीं निकला।
अटल बिहारी वाजपेयी के अपने और पराए थे मुरीद
अटल बिहारी वाजपेयी वो शख्सियत थे जिनकी तरबीयत आरएसएस की पाठशाला और उससे भी पहले आर्य समाज जैसे संगठनों में हुई थी। उग्र राष्ट्रवाद की बेझिझक नुमाइश की अपनी आदत को वाजपेयी ने कभी नहीं छोड़ा। हालांकि अटल जैसे.जैसे दिल्ली और भारतीय संसद की राजनीति में मंझते गए वैसे.वैसे उन्होंने अपनी उग्र राष्ट्रवादी छवि को ढंकने.दबने दिया। जितना कोई सियासी शख्सियत संसद पर असर डालती है, संसद उससे कहीं ज़्यादा असरदार रोल किसी राजनेता का किरदार गढ़ने में अदा करती है। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पहले ग़ैर.कांग्रेसी प्रधानमंत्री थे, जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था। आज जो लुटियंस ज़ोन वाली दिल्ली सियासी गाली बन गई है, वाजपेयी उसी की उपज थे। उन्होंने एक सांसद के तौर पर 1957 से लेकर 2004 तक लुटियंस ज़ोन वाला सियासी जीवन ही जिया। हां इस दौरान वो 1962 और 1984 में दो बार चुनाव हारे भी थे। लेकिन तब भी वाजपेयी, राज्यसभा के रास्ते संसद पहुंच गए थे। अटल बिहारी वाजपेयी की छवि, उनकी योग्यता व बेबाक विचारों को लेकर उनके अपने और पराए हमेशा मुरीद रहे।

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