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क्या मुख्य चुनाव आयुक्त के अधिकार छीन रही सरकार, तो आ रहा है कानून

क्या मुख्य चुनाव आयुक्त के अधिकार छीन रही सरकार, तो कानून आ रहा है
सीएन, नईदिल्ली।
संसद का विशेष सत्र अगले हफ्ते से शुरू होने जा रहा है। इससे पहले इसे लेकर कई विवाद खड़े हो चुके हैं। देश का नाम बदलने को लेकर हो या इस विशेष सत्र की ज़रूरत को लेकर या फिर एक देश एक चुनाव को लेकर। खैर, इससे इतर विशेष सत्र में कई विधेयकों पर चर्चा होगी। इसमें से एक मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति, सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस विधेयक, भी है। इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयोग और प्रशासनिक तबके में इसे लेकर बेचैनी बनी हुई है। अटकलें हैं कि इसके ज़रिए सरकार चुनाव आयुक्तों की सेवा शर्तों को कम करना चाहती है, जिससे उनके अधिकारों के खत्म होने का खतरा है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति, सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस विधेयक, 2023 को राज्यसभा में 10 अगस्त को मानसून सत्र के दौरान पेश किया गया था। संसद के विशेष सत्र में इस पर 18 सितंबर को चर्चा होने वाली है। इस विधेयक में मुख्य चुनाव आयुक्त और दो चुनाव आयुक्तों के वेतन, भत्ते और सेवा शर्तों को संशोधित करने का प्रस्ताव है। इसके ज़रिए उनका पद कैबिनेट सचिव के बराबर हो जाएगा। तत्कालीन समय में उनका पद सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर है। विधेयक पास होने पर चुनाव आयुक्तों के वेतन में कोई खास अंतर नहीं आएगा। सुप्रीम कोर्ट के जज और कैबिनेट सचिवों का मूल वेतन लगभग बराबर ही है। हालांकि सुप्रीम कोर्ट के जजों को रिटायरमेंट के बाद भी सरकारी लाभ मिलते हैं। इनमें ताउम्र ड्राइवर और घरेलू मदद के लिए कर्मचारी शामिल हैं। लेकिन बेचैनी इस बात की है कि चुनाव आयुक्तों को नौकरशाही में मिलाने से उनके अधिकार कम हो जाएंगे। रिपोर्ट में एक सूत्र के हवाले से बताया गया कि कैबिनेट सचिव के बराबर होने का साफ मतलब है कि आपका कद राज्य मंत्री से भी नीचे है। ऐसे में चुनाव के दौरान किसी केंद्रीय मंत्री के उल्लंघन करने पर आयुक्त उन पर अनुशासनात्क कार्रवाई कैसे कर पाएंगे। सूत्र ने आगे बताया कि फिलहाल चुनाव आयुक्त किसी सरकारी अधिकारी को किसी काम से बुलाते हैं तो उनके आदेश को सुप्रीम कोर्ट के जज के बराबर माना जाता है। लेकिन कैबिनेट सचिव के बराबर होने पर उनके आदेश को कैसे देखा जाएगा। ये भी आशंका है कि अगर ये विधेयक पास हो गया तो न सिर्फ चुनाव आयुक्तों के अधिकार खत्म होंगे बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उनके सम्मान पर भी असर पड़ेगा। कई देशों में चुनाव आयुक्त या तो सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज हैं या इन जजों के समकक्ष होते हैं।पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाय कुरैशी कहते हैं कि आधे से ज़्यादा देशों में चुनाव आयुक्त जज होते हैं। हम चुनावों में विश्व गुरू हैं। पिछले 10 सालों में 108 देशों ने अपने चुनाव आयुक्तों को हमारे यहां भेजा है। ताकि वे हमसे सीख ले सकें। हम इस तरह उनके पद की गरिमा को कम करके क्या हसिल कर रहे हैं। उन्होंने आगे कहा कि चुनाव आयुक्त और जजों के समकक्ष होने की बात संविधान में निहित है। मुख्य चुनाव आयुक्त को केवल महाभियोग के जरिए हटाया जा सकता है। एक जज ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि इस विधेयक के ज़रिए चुनाव आयोग को नौकरशाही के बराबर किया जा रहा है। ये चुनाव आयोग के अधिकारों को कमज़ोर करेगा। हमें ये भी ध्यान रखना होगा कि नेताओं को नौकरशाही के जरिए अनुशासन में नहीं रखा जा सकता। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त नियुक्ति सेवा की शर्तें और टर्म ऑफ ऑफिस विधेयक, 2023 तीन चुनाव आयुक्तों के चयन के लिए बनाई जाने वाली समिति के गठन से संबंधित है। इस समिति में प्रधानमंत्री, विपक्ष के नेता और एक केंद्रीय मंत्री शामिल होंगे। समिति में भारत के चीफ जस्टिस को शामिल नहीं किया जाएगा। जबकि मार्च 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इस समिति में प्रधानमंत्री, चीफ जस्टिस और विपक्ष के नेता को शामिल करने का सुझाव दिया था। 

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