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वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर सरकार के सामने हैं बड़ी चुनौतियां, पास होना ही काफी नहीं
वन नेशन-वन इलेक्शन को लेकर सरकार के सामने हैं बड़ी चुनौतियां, पास होना ही काफी नहीं
सीएन, नईदिल्ली। एक देश एक चुनाव की सिफारिश को मोदी सरकार की कैबिनेट ने स्वीकार कर लिया है। बता दें कि इसे लेकर विपक्षी दलों का कहना है कि एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है। सरकार का कहना है कि कई राजनीतिक दल पहले से ही इस मुद्दे पर सहमत हैं। अपनी एक देश एक चुनाव योजना पर आगे बढ़ते हुए सरकार ने देशव्यापी आम सहमति बनाने की कवायद के बाद चरणबद्ध तरीके से लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और स्थानीय निकायों के लिए एक साथ चुनाव कराने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लिया। गृह मंत्री अमित शाह ने कैबिनेट के फैसले की सराहना करते हुए कहा कि यह देश में ऐतिहासिक चुनाव सुधार की दिशा में एक बड़ा कदम होगा। विभिन्न विपक्षी दलों का हालांकि कहना है कि एक साथ चुनाव कराना व्यावहारिक नहीं है। सरकार का कहना है कि कई राजनीतिक दल पहले से ही इस मुद्दे पर सहमत हैं। उन्होंने कहा कि देश की जनता से इस मुद्दे पर मिल रहे व्यापक समर्थन के कारण वह दल भी रुख में बदलाव का दबाव महसूस कर सकते हैं जो अब तक इसके खिलाफ हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रस्ताव को केंद्रीय मंत्रिमंडल की मिली मंजूरी की जानकारी को लेकर कहा कि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों को आगे बढ़ाने के लिए एक क्रियान्वयन समूह का गठन किया जाएगा और अगले कुछ महीनों में देश भर के विभिन्न मंचों पर विस्तृत चर्चा की जाएगी। वैष्णव ने कहा अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने की कोशिश करेंगे। हमारी सरकार उन मुद्दों पर आम सहमति बनाने में विश्वास करती है जो लंबे समय में लोकतंत्र और देश को प्रभावित करते हैं। यह एक ऐसा विषय है जो हमारे देश को मजबूत करेगा।श् विपक्षी दलों के रुख से जुड़े एक सवाल का जवाब देते हुए मंत्री ने कहा विपक्ष को आंतरिक दबाव एक देश एक चुनाव के बारे में महसूस हो सकता है क्योंकि परामर्श प्रक्रिया के दौरान प्रतिक्रिया देने वाले 80 प्रतिशत से अधिक उत्तरदाताओं ने विशेषकर युवाओं ने अपना सकारात्मक समर्थन दिया है। पत्रकारों द्वारा यह पूछे जाने पर कि सिफारिशें कब लागू की जा सकेगी और क्या संसद के आगामी शीतकालीन सत्र में कोई विधेयक लाया जाएगा वैष्णव ने सीधा जवाब देने से परहेज किया लेकिन कहा कि शाह ने कहा है कि सरकार अपने मौजूदा कार्यकाल में इसे लागू करेगी। उन्होंने कहा कि विचार.विमर्श पूरा होने के बाद कार्यान्वयन चरणों में किया जाएगा और सरकार का प्रयास अगले कुछ महीनों में आम सहमति बनाने का होगा। उन्होंने कहा कि एक बार परामर्श प्रक्रिया पूरी हो जाने के बाद सरकार एक विधेयक का मसौदा तैयार करेगी उसे मंत्रिमंडल के समक्ष रखेगी और तत्पश्चात एक साथ चुनाव कराने के लिए उसे संसद में ले जाएगी। बाद में सरकारी सूत्रों ने बताया कि संसद के समक्ष एक विधेयक या विधेयकों का एक समूह लाया जाएगा। एक देश एक चुनाव पर गठित उच्च स्तरीय समिति ने लोकसभा चुनावों की घोषणा से पहले मार्च में रिपोर्ट सौंपी थी। समिति ने एक देश एक चुनाव को दो चरणों में लागू करने की सिफारिश की.. पहले चरण में लोकसभा और राज्य विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव कराने और उसके बाद दूसरे चरण में आम चुनावों के 100 दिनों के भीतर स्थानीय निकाय चुनाव। समिति ने भारत के निर्वाचन आयोग द्वारा राज्य निर्वाचन प्राधिकारियों से विचार.विमर्श कर एक साझा मतदाता सूची और मतदाता पहचान पत्र बनाने की भी सिफारिश की। अभी लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराने की जिम्मेदारी भारत के निर्वाचन आयोग की है जबकि नगर निगमों और पंचायतों के लिए स्थानीय निकाय चुनाव राज्य निर्वाचन आयोग कराते हैं। समिति ने 18 संवैधानिक संशोधनों की सिफारिश की जिनमें से अधिकांश को राज्य विधानसभाओं द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता नहीं होगी। हालांकि इसके लिए कुछ संविधान संशोधन विधेयकों की आवश्यकता होगी जिन्हें संसद द्वारा पारित करने की जरूरत होगी। एक मतदाता सूची और एक मतदाता पहचान पत्र के संबंध में कुछ प्रस्तावित संशोधनों के लिए कम से कम आधे राज्यों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होगी। इसके अलावा, विधि आयोग भी एक साथ चुनाव कराने पर अपनी रिपोर्ट जल्द ही पेश कर सकता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रबल समर्थक रहे हैं। सूत्रों ने कहा कि विधि आयोग सरकार के तीन स्तरों लोकसभा, राज्य विधानसभाओं और नगर पालिकाओं तथा पंचायतों जैसे स्थानीय निकायों के लिए 2029 से एक साथ चुनाव कराने और त्रिशंकु सदन जैसे मामलों में एकता सरकार बनाने के प्रावधान की सिफारिश कर सकता है। चुनाव सुधारों के तहत एक साथ चुनाव कराने का मुद्दा भाजपा के चुनाव घोषणापत्र का हिस्सा रहा है। देश में 1951 से 1967 के बीच एक साथ चुनाव हुए थे लेकिन उसके बाद मध्यावधि चुनाव सहित विभिन्न कारणों से चुनाव अलग.अलग समय पर होने लगे। सभी चुनाव एक साथ कराने के लिए काफी प्रयास करने होंगे जिसमें कुछ चुनावों को पहले कराना तथा कुछ को विलंबित करना शामिल है। इस वर्ष मई.जून में लोकसभा चुनाव हुए जबकि ओडिशा, आंध्र प्रदेश, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे राज्यों में भी संसदीय चुनाव के साथ ही विधानसभा चुनाव हुए। जम्मू.कश्मीर और हरियाणा में विधानसभा चुनाव प्रक्रिया अभी चल रही है, जबकि महादेश और झारखंड में भी इस वर्ष के अंत में चुनाव होने हैं। दिल्ली और बिहार उन राज्यों में शामिल हैं जहां 2025 में चुनाव होने हैं। असम, केरल, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और पुडुचेरी की मौजूदा विधानसभाओं का कार्यकाल 2026 में समाप्त होगा जबकि गोवा, गुजरात, मणिपुर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड की विधानसभाओं का कार्यकाल 2027 में समाप्त होगा। हिमाचल प्रदेश, मेघालय, नागालैंड, त्रिपुरा और तेलंगाना में राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2028 में समाप्त होगा। वर्तमान लोकसभा और इस वर्ष एक साथ चुनाव में शामिल राज्य विधानसभाओं का कार्यकाल 2029 में समाप्त होगा। 1999 में तत्कालीन विधि आयोग ने अपनी 170 वीं रिपोर्ट में प्रत्येक पांच वर्ष में लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक ही चुनाव कराने का प्रस्ताव रखा था। एक संसदीय समिति ने 2015 में अपनी 79 वीं रिपोर्ट में दो चरणों में एक साथ चुनाव कराने का सुझाव दिया था।