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आज है पंडित गोविंद बल्लभ पंत की पुण्यतिथि : एक कुशल अधिवक्ता, मंझे हुए राजनीतिज्ञ, सुलझे हुए इंसान

आज है पंडित गोविंद बल्लभ पंत की पुण्यतिथि : एक कुशल अधिवक्ता, मंझे हुए राजनीतिज्ञ, सुलझे हुए इंसान
सीएन, नैनीताल।
आज के आधुनिक उत्तर प्रदेश के जनक और देश के दूसरे गृह मंत्री पंडित गोविंद बल्लभ पंत की पुण्यतिथि है। उनका देहावसान आज ही के दिन 7 मार्च 1961 को हुआ। पंत जी की गिनती भारत के अग्रणी स्वतंत्रता सेनानियों में होती है। वो एक कुशल अधिवक्ता, मंझे हुए राजनीतिज्ञ, सुलझे हुए इंसान और देश के हितों को सर्वोपरि रखने वाले व्यक्ति थे। आजाद भारत में उत्तर प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री होना हमेशा ही खुफियापंथी की ओर इशारा करेगा। क्योंकि यहां की राजनीति हमेशा से ही घाघ रही है। आजादी के वक्त भी यूपी में कई धड़े थे। बनारस के नेता यूपी की राजनीति में छाए हुए थे। ऐसे में पहाड़ों में जन्मे गोविंद बल्लभ पंत गोविंद बल्लभ पंत का पहला मुख्यमंत्री बनना अपने आप में सरप्राइजिंग था। गोविंद बल्लभ पंत अल्मोड़ा में जन्मे थे। पर महाराष्ट्रियन मूल के थे। मां का नाम गोविंदी बाई था। उनके नाम से ही नाम मिला था। पापा सरकारी नौकरी में थे। उनके ट्रांसफर होते रहते थे तो नाना के पास पले, बचपन में बहुत मोटे थे, कोई खेल नहीं खेलते थे। एक ही जगह बैठे रहते। घर वाले इसी वजह से इनको थपुआ कहते थे। पर पढ़ाई में होशियार थे। एक बार की बात है। छोटे थे उस वक्त मास्टर ने क्लास में पूछा कि 30 गज के कपड़े को रोज एक मीटर कर के काटा जाए तो यह कितने दिन में कट जाएगा। सबने कहा 30 दिन। पंत ने कहा 29। स्मार्टनेस की बात है। बता दिये। इसमें कौन सा दौड़ना था। गोविंद बल्लभ पंत भारत के दूसरे गृह मंत्री तथा उत्तर प्रदेश के पहले मुख्यमंत्री एवं स्वतंत्रता सेनानी थे। उनका जन्म 10 सितंबरए 1887 को अल्मोड़ा जिले के खूंट गांव में हुआ था। वे मूलत महाराष्ट्र के रहने वाले थे। उनकी मां का नाम गोविंदी बाई थाए उनके नाम से ही पंत को अपना नाम मिला था। पिता की सरकारी नौकरी और प्रति वर्ष तबादले की वजह से गोविंद बल्लभ पंत  का पालन.पोषण उनके नाना बद्रीदत्त जोशी के घर हुआ। उनके व्यक्तित्व और सियासी विचारों पर उनके नाना का काफी प्रभाव था। गोविंद बल्लभ पंत 1905 में वे अल्मोड़ा से इलाहाबाद आ गए। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से कानून की डिग्री प्राप्त की और काशीपुर में वकालत शुरू कर दी। इनके बारे में कहा जाता था कि पंत केवल सच्चे केस ही लेते थे और झूठ बोलने पर केस छोड़ देते थे। उन्होंने काकोरी कांड में रामप्रसाद बिस्मिल, अशफाकउल्ला खान और काकोरी मामले में शामिल अन्य क्रांतिकारियों का केस भी लड़ा था। उनके निबंध भारतीय दर्शन के प्रतिबिंब है। उन्होंने राष्ट्रीय एकता के लिए अपनी कलम उठाई। प्रबुद्ध वर्ग के मार्गदर्शक पंत जी ने तमाम मंचों से मानवतावादी निष्कर्षों को प्रसारित किया। राष्ट्रीय चेतना के प्रबल समर्थक पंत जी ने गरीबों की पीड़ा बांटी और आर्थिक विषमता मिटाने के लिए अथक प्रयास किए। वर्ष 1937 में पंत जी संयुक्त प्रांत के प्रथम पीएम बने और 1946 में उत्तर प्रदेश के पहले सीएम।10 जनवरीए 1955 को उन्होंने भारत के गृह मंत्रालय का कार्यभार संभाला। सन 1957 में गणतन्त्र दिवस पर महान देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ताए तर्क के धनी एवं उदारमना पन्त जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि भारतरत्न से नवाज़ा गया। भारत रत्न सम्मान उनके ही काल में आरम्भ किया गया। सन् 1957 में गणतंत्र दिवस पर महान् देशभक्त, कुशल प्रशासक, सफल वक्ता, तर्क का धनी एवं उदारमना पन्त जी को भारत की सर्वोच्च उपाधि भारत रत्न से विभूषित किया गया। आज उनकी याद में उनके जन्म स्थान पर एक स्मारक का निर्माण किया गया है। पंडित पन्त को उत्तराखंड के लोग गोठी पोंढ़ ज्यू कह कर भी पुकारते हैं क्योंकि पन्त जी का जन्म अपने ननिहाल के गोठ यानी जो स्थान मवेशियों के लिए बनाया जाता है वहां हुआ था।
हालातों ने तीन विवाह करने को मजबूर किया था पंत को
उनकी पहली पत्नी गंगा देवी थी। 1909 में पंतजी के पहले पुत्र की बीमारी से मृत्यु हो गयी और कुछ समय बाद पत्नी गंगादेवी की भी मृत्यु हो गयी। उस समय उनकी आयु 23 वर्ष की थी। वह गम्भीर व उदासीन रहने लगे तथा समस्त समय क़ानून व राजनीति को देने लगे। परिवार के दबाव पर 1912 में पंत जी का दूसरा विवाह अल्मोड़ा में हुआ। उसके बाद पंतजी काशीपुर आये। पंत जी काशीपुर में सबसे पहले नजकरी में नमक वालों की कोठी में एक साल तक रहे। 1913 में पंतजी काशीपुर के मौहल्ला खालसा में 3.4 वर्ष तक रहे। अभी नये मकान में आये एक वर्ष भी नहीं हुआ था कि उनके पिता मनोरथ पंत का देहान्त हो गया। इस बीच एक पुत्र की प्राप्ति हुई पर उसकी भी कुछ महीनों बाद मृत्यु हो गयी। बच्चे के बाद पत्नी भी 1914 में स्वर्ग सिधार गई। 1916 में पंत जी श्राजकुमार चौबे की बैठक में चले गये। चौबे जी पंत जी के अनन्य मित्र थे। उनके द्वारा दबाव डालने पर पुनर्विवाह के लिए राजी होना पडा तथा काशीपुर के ही श्री तारादत्त पांडे की पुत्री कलादेवी से विवाह हुआ। उस समय पन्त जी की आयु 30 वर्ष की थी। कला देवी से ही उनके पुत्र कृष्ण चन्द्र पंत का जन्म हुआ, जो भारत के रक्षा मंत्री बने। उनकी पत्नी इला पंत नैनीताल से भाजपा सांसद भी रही।

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