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भारतीय सेना में क्या अग्निवीर शहीदों को नहीं मिलता कोई लाभ

भारतीय सेना में क्या अग्निवीर शहीदों को नहीं मिलता कोई लाभ
सीएन, नईदिल्ली।
दुनिया का सबसे ऊंचा सैनिक क्षेत्र है सियाचिन। इसी सियाचिन में सरकार की अग्निपथ योजना के तहत भर्ती महाराष्ट्र के नौजवान गवाते अक्षय लक्ष्मण ने सर्वोच्च बलिदान दे दिया है। अक्षय लक्ष्मण के निधन के बाद सोशल मीडिया पर हंगामा मच गया है। अग्निपथ योजना की जमकर आलोचना हो रही है। चाहे राजनेता हों या सेना से रिटायर लोग, सबका दावा है कि अग्निपथ योजना के तहत तैनात जवानों के निधन या शहादत के बाद कुछ नहीं मिलेगा। भारतीय सेना ने जानकारी दी है कि ड्यूटी के दौरान शहीद हुए अग्निवीर को कितनी रकम मिलेगी। सेना के मुताबिक, गवाते अक्षय लक्ष्मण के परिवार को गैर.अंशदायी बीमा के रूप में 48 लाख रुपए रुपए मिलेंगे। सेना का कहना है कि इसके साथ ही जवान के परिवार को 44 लाख रुपए की अनुग्रह राशि भी मिलेगी। सेना के अनुसार, शहीद अक्षय के परिवार को और रकम भी मिलेगी। यह रकम होगी सेवानिधि में जमा उनका अंशदान और उतनी ही जमा सरकारी रकम। सेना के मुताबिक, अग्निवीर की तनख्वाह का 30 फीसद सेवा निधि में जमा होता है। इतनी ही रकम सरकार की ओर से भी सेवा निधि में जाती है। इस पूरी रकम पर ऊंची दर से ब्याज मिलता है। सेना का कहना है कि शहीद हुए गवाते अक्षय लक्ष्णम की सेवा निधि में अब तक जमा रकम और उतने ही मिले सरकारी अंशदान की पूरी रकम भी उनके परिवार को मिलेगी, ब्याज समेत। अग्निवीरों की नियुक्ति चार साल के लिए होती है। जिस तरह सेवा की अवधि में आम सैनिक की शहादत के बाद उसके रिटायरमेंट की अवधि तक पूरा वेतन उसके परिवार या नॉमिनी को मिलता है, उसी तरह अक्षय के परिवार को अग्निवीर की बाकी सेवा अवधि की पूरी तनख्वाह भी मिलेगी। सेना को यह सारी जानकारी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के ट्वीट के बाद देनी पड़ी है। सियाचिन में गवाते अक्षय लक्ष्मण के निधन के बाद राहुल गांधी ने अग्निवीर योजना की आलोचना की। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा कि एक युवा देश के लिए शहीद हो गया, सेवा के समय न ग्रैच्युटी, न अन्य सैन्य सुविधाएं, और शहादत में परिवार को पेंशन तक नहीं। अग्निपथ, भारत के वीरों के अपमान की योजना है! राहुल गांधी ही नहीं, लगभग पूरा विपक्ष इस योजना का विरोधी रहा है। सरकार यह योजना जून 2022 में लेकर आई थी। सेना में जाने के इच्छुक साहसी युवाओं के लिए यह योजना एक तरह से लॉन्चिंग पैड है। दुनिया के कुछ देशों, मसलन इजरायल में अनिवार्य सैनिक सेवा है। कुछ लोगों का मानना है कि एक तरह से अग्निवीर योजना उसका ही सुधरा रूप है। इसमें चार साल के लिए युवाओं की नियुक्ति होती है। चार साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद एक चौथाई अग्निवीरों के लिए सेना में स्थायी नियुक्ति हासिल करने की व्यवस्था है। वैसे केंद्रीय अर्ध सैनिक बलों, राज्यों की पुलिस और दूसरे कई विभागों ने अपनी नौकरियों में अग्निवीरों के लिए आरक्षण तय किया है। सरकारी योजना के तहत अग्निवीरों को चार साल के लिए तैनाती मिलती है। इस योजना के तहत अग्निवीरों को तीस हजार रुपये का शुरुआती वेतन दिया जाता है। इसमें सालाना वृद्धि भी होनी है, जो चौथे साल तक बढ़कर 40 हजार रुपये तक हो जाएगी। इनके लिए सेवा निधि योजना भी चलाई जा रही है, जिसका जिक्र सेना अपने जवाब में कर चुकी है। इस योजना के तहत अग्निवीर के वेतन का 30 फीसद हिस्सा सरकार के पास सेविंग फंड के रूप में रहेगा। उतनी ही रकम सरकार भी मिला रही है। अनुमान है कि चार साल की सेवा के बाद जिन अग्निवीरों को सेना में स्थायी कमीशन नहीं मिल पाएगा, उन्हें इस मद में मिलने वाली रकम 10 लाख से 12 लाख रुपये होगी, जिस पर कोई टैक्स नहीं लगेगा। अग्निवीर योजना आने के बाद विपक्ष ही नहीं, सेना में स्थायी कमीशन के लिए तैयारी कर रहे नौजवान भी इसके विरोध में उतर आए थे। तब से अग्निवीर का जब भी मामला आता है, विरोधी दल और सैनिक बनने की चाहत रखने वाला एक तबका इसके विरोध में उतर आता है। विरोध के लिए बार.बार सवाल उठाया जाता है कि अग्निवीरों को कैजुअल्टी में कोई फायदा नहीं मिलता, जैसे आम सैनिकों को मिलता है। गवाते अक्षय के पहले कश्मीर घाटी में एक और अग्निवीर की मौत हो चुकी है। कुछ ही दिनों पहले पंजाब के अमृतपाल का निधन हुआ था। तब भी सवाल उठा कि न तो शहीद सैनिकों की तरह उन्हें आखिरी सम्मान मिला, न ही उनके शव को सम्मान के साथ उनके गांव लाया गया। सोशल मीडिया पर इसकी खूब आलोचना हुई। तब भी सेना को सामने आना पड़ा था। तब सेना ने अमृतपाल के निधन को लेकर सफाई दी थी। दरअसल अमृतपाल की मौत उनकी ही राइफल की गोली से हो गई थी। यह भी कहा गया कि वह तनाव में थे और उन्होंने आत्महत्या की थी। खुदकुशी करने वाले को सेना कभी ग्लैमराइज नहीं करती। यही वजह है कि अमृतपाल को पारंपरिक सैनिक सम्मान नहीं दिया गया। अग्निवीर योजना की जब भी आलोचना होती है, तब उन्हें मिलने वाली सुविधाओं की तुलना आम सैनिकों को मिलने वाली सहूलियतों से जरूर की जाती है। ऐसे में यह जान लेना जरूरी है कि नियमित सैनिकों के बलिदान के बाद उनके परिवारों को कौन सी सहूलियतें मिलती हैं। नियमित या स्थायी सैनिक की शहादत की हालत में सैनिक के परिवार को नौकरी में उसके बिताए वर्षों के हिसाब से ग्रैच्युटी, फंड और बची हुई छुट्टियों के एवज में पैसा दिया जाता है। इसके साथ ही आर्मी वाइव्स वेलफेयर एसोसिएशन की तरफ से शहीद के परिजन को 10 हज़ार रुपये दिए जाते हैं। अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले जवान की आखिरी तनख्वाह के बराबर ही पेंशन परिवार को मिलती रहती है। इसके साथ ही आर्मी सेंट्रल वेलफेयर फंड की तरफ से 30 हज़ार रुपये मिलते हैं। शहीद जवान के परिजन को केंद्र सरकार 10 लाख रुपये की सहायता देती है। शहीद सैनिकों के परिजनों के लिए गैस एजेंसी और पेट्रोल पंप के आवंटन में आठ फीसदी का आरक्षण भी है। इतना ही नहीं, शहीद के परिवार को आर्मी ग्रुप इंश्योरेंस से 25 लाख रुपये भी मिलते हैं। शहीदों के बच्चों और पत्नी के लिए सरकारी संस्थानों के दाखिले और कई नौकरियों में आरक्षण भी होता है। मेडिकल और इंजीनियरिंग के दाखिले में भी शहीदों के बच्चों के लिए आरक्षण है। इसके साथ ही शहीद की पत्नी और बच्चों के बालिग होने तक रेल और हवाई यात्रा में छूट दी जाती है। अगर सैनिक की शहादत जम्मू.कश्मीर राज्य में होती है तो शहीद के परिवार को जम्मू.कश्मीर राज्य की ओर से अलग से 2 लाख रुपये मिलते हैं। कुल मिलाकर यह रकम बहुत हो जाती है। शायद यही वजह है कि सामान्य और स्थायी सैनिकों को मिलने वाली सुविधाओं से अग्निवीरों को मिलने वाली सुविधाओं की तुलना होती है। यह रकम स्थायी सैनिकों की शहादत की स्थिति में मिलने वाली रकम से कम है, इसलिए अग्निवीर विरोधियों को मौका मिल जाता है। भले ही भारत का सैनिक बजट लगातार बढ़ता गया हो, लेकिन यह भी सच है कि सैनिकों को दी जाने वाली पेंशन और वेतन के मद में कुल सैनिक बजट का करीब आधा खर्च हो रहा है। वेतन और पेंशन में बजट की इतनी हिस्सेदारी दुनिया की ताकतवर अमेरिका, रूस और ब्रिटेन आदि की सेनाओं की भी नहीं है। अग्निवीर योजना इसीलिए लाई गई, लेकिन भारत पर बढ़ते आर्थिक बोझ को कोई समझना नहीं चाहता।

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