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क्यों 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में चुना गया, 30 जून 1948 को होना था आजाद

क्यों 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में चुना गया, 30 जून 1948 को होना था आजाद
सीएन, नैनीताल।
भारत में हर वर्ष 15 अगस्त के दिन को का स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है। यह भारत का राष्ट्रीय त्यौहार है। सन् 1947 में भारत ने इसी दिन लगभग 200 साल बाद ब्रिटिश हुकूमत से आजादी प्राप्त की थी। इसी दिन ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त की थी। प्रतिवर्ष इस दिन भारत के प्रधानमंत्री लाल किले की प्राचीर से देश को सम्बोधित करते हैं। 15 अगस्त 1947 के दिन भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली में लाल किले के लाहौरी गेट के ऊपर भारतीय राष्ट्रीय ध्वज फहराया  भारत की आजादी के दिन 15 अगस्त को देश भर में उत्साह और देशभक्ति का माहौल होता है। लोग इस दिन अपनी आजादी का जश्न मनाते हैं और स्वतंत्रता सेनानियों को श्रद्धांजलि देते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि 15 अगस्त को ही क्यों चुना गया। भारत की आजादी के इतिहास के एक जरूरी पहलू को उजागर करती है। ब्रिटिश शासन के मूल योजना के अनुसार भारत को 30 जून 1948 को आजाद होना था। लेकिन, नेहरू और जिन्ना के बीच पाकिस्तान के बंटवारे को लेकर पैदा हुए तनाव और सांप्रदायिक दंगों के बढ़ते खतरे ने इस योजना को बदल दिया। जिन्ना के पाकिस्तान को भारत से अलग करने की मांग के कारण लोगों में सांप्रदायिक झगड़े की संभावना काफी हद तक बढ़ने लगी थी जिसके चलते भारत को 15 अगस्त 1947 को ही आजादी देने का फैसला लिया गया था। लॉर्ड माउंटबेटन ने 4 जुलाई को 1947 को ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स में इंडियन इंडिपेंडेंस बिल प्रस्तुत किया जिसे ब्रिटिश संसद में मंजूरी दी गई और बाद में 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की गई। यह दिन भारत के आखिरी वायसराय लॉर्ड माउंटबेटन के लिए बेहद खास था। दरअसल 15 अगस्त 1945 को द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान जापानी आर्मी ने ब्रिटिश सरकार के सामने घुटने टेक दिए थे। जापान के आत्मसमर्पण के कारण 15 अगस्त उनके लिए एक खास दिन था। यहीं कारण था कि माउंटबेटन ने 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के रूप में चुना। महात्मा गांधी ने आजादी के जश्न में इसलिए भाग नहीं लिया क्योंकि देश में सांप्रदायिक हिंसा व्यापक रूप से फैली हुई थी। वे इस हिंसा से बहुत दुखी थे और मानते थे कि आजादी का जश्न मनाने से पहले देश में शांति स्थापित होना जरूरी है। इसके अलावा गांधी जी भारत के विभाजन के कड़े विरोधी थे। वे चाहते थे कि हिंदू और मुसलमान एक साथ रहें। विभाजन के कारण हुई हिंसा ने उन्हें बहुत आहत किया था। दूसरे विश्व युद्ध के बाद ब्रिटिश साम्राज्य कमजोर पड़ गया था। भारत में भी स्वतंत्रता संग्राम जोरों पर था। महात्मा गांधी के नेतृत्व में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अहिंसक तरीके से ब्रिटिश शासन के खिलाफ लड़ाई लड़ी। ब्रिटिश सरकार को भारत को स्वतंत्रता देने के लिए मजबूर होना पड़ा।

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