उत्तराखण्ड
चार धाम में यात्रियों की संख्या बढी तो व्यवस्था की पोल खुली
यात्री इतने बेपरवाह कि केदारनाथ क्षे़त्र में जैविक व अजैविक लगे कूड़े के ढेर
सीएन, देहरादून। उत्तराखंड में पिछले दो यात्रा सीजन कोरोना संक्रमण की भेंट चढे। इस बार माहौल बेहतर होने के बाद चारधाम में यात्री उमड़ पड़े हैं। धामी सरकार ने कोरोना के सारे प्रतिबंध हटाकर यात्रियों को प्रोत्साहित किया। अब यात्रियों की बढती संख्या के आगे सरकार के इंतजाम नाकाफी हो गए हैं। कुछ मायनों में चुनौतियों से निबटने की सरकार की कार्यशैली ‘आग लगने पर कुआं खोदने‘ की दिखाई देती है। यात्रा सीजन से पहले सरकार दावे कर रही थी कि उत्तराखंड यात्रा काल को सुखद व सुरक्षित बनाने के लिए एकदम तैयार है। उत्साह में आकर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि यात्रियों की बड़ी संख्या की कोई समस्या नहीं है। पयर्टन मंत्री सतपाल महाराज यात्रियों की बढती संख्या को लेकर गदगद हैं। पंडे, पुजारी और व्यवसायी खुश हैं। अतिथि देवो भवः को मार्गदर्शक सिद्धान्त की तरह प्रचार कर रही सरकार की व्यवस्था को लेकर जमीनी हालत कुछ और ही तस्वीर पेश करती है। ऋषिकेश में पंजीकरण के लिए यात्रियों की लाइन लगी हुई है। उन्हें दो-दो, तीन-तीन दिनों तक इंतजार करना पड़ा है। बद्री और केदार धाम के साथ-साथ यमुनोत्री-गंगोत्री में यात्रियों की भीड़ बढने से यात्रियों को बीच के स्टेशनों पर अनावश्यक रुकना पड़ रहा है। आवास-भोजन की कीमत देखने वाला कोई नहीं है। जुगाड़ के भरोसे चलने रहने वाले कई यात्री पंजीकरण की तिथि से पन्द्रह बीस दिन पहले ही धामों की ओर जा रहे हैं। इन्हें लेकर पुलिस परेशान है। सरकार की बदइंतजामी की पोल केदारनाथ में अच्छी तरह खुली है। करीब-करीब हर दिन केदारधाम में किसी यात्री की मौत की खबर हृदय विदारक है। 28 मई तक केदारनाथ यात्रा में कुल 48 यात्रियों की मौत हुई है। अक्सर अचानक तबीयत बिगड़ने पर ये मौतें हो रही हैं। जाहिर है कि कई यात्रीगण अपने स्वास्थ्य के जोखिम की कीमत पर भी कम प्राणवायु और अधिक ठंड वाले इन स्थानों पर जाने में गुरेज नहीं कर रहे। परन्तु तत्काल इमरजेंसी चिकित्सा मिलने पर मौत के जोखिम को कम अवश्य किया जा सकता है। इस मोर्चे पर भी सरकार का इंतजाम लेटलतीफी भरा और मांग से काफी कम है। केदारनाथ तक पहुंचने के लिए हजारों तीर्थ यात्रियों को पैदल पथ पार कराने में सच्चे साथी साबित होते रहे 60 से भी अधिक घोड़े-खच्चरों की मौत भी एक हद तक इनके स्वामियों के लालच के साथ सरकार की लापरवाही और बदइंतजामी का नतीजा है। कठिन परिश्रम करते इन पशुओं को भोजन, पानी, आराम, दवा की व्यवस्था में भारी कोताही है। प्राकृतिक तौर पर अति संवेदनशील और वर्ष 2013 में हजारों जिदंगियों को लीलने वाली भीषण आपदा का प्रहार देख चुकी केदारनाथ नगरी में मनुष्यों का रेलम-पेला लगा हुआ है। सरकार के दावे के अनुसार तीन सप्ताह की यात्रा में ही केदारनाथ में साढे तीन लाख से ज्यादा लोग बाबा के दर्शन कर चुके हैं। यात्रीगण इतने बेपरवाह कि केदारनाथ क्षे़त्र में जैविक व अजैविक कूड़े के ढेर लगे हैं। नगर पालिका और जिला प्रशासन न तो यात्रियों के कूड़ा फेंकने पर नियंत्रण कर पा रहे है और नाही खुद कूड़े का निपटारा करने में सक्षम दिख रहे हैं।