उत्तराखण्ड
वट सावित्री का पर्व पर्यावरण के सतत विकास के क्रम में संरक्षण का संदेश
ललित तिवारी, नैनीताल। वट सावित्री का पर्व जहां महिलाओं के अखंड सौभाग्य और पति की लंबी उम्र की कहानी से जुड़ा है, वही इसमें पर्यावरण को सतत विकास के क्रम में संरक्षण का संदेश भी देता है। इस दिन महिलाएं वट वृक्ष का पूजन कर अपने पति की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं। महिलाएं वट वृक्ष को जल अर्पित करती हैं। साथ ही हल्दी लगे कच्चे सूत से लपेटते हुए वृक्ष की परिक्रमा करती हैं। अध्यात्म में कहा गया है कि वटवृक्ष की जड़ में ब्रह्मा, तने में विष्णु और पत्तों पर शिव का वास होता है। इसलिए परंपरानुसार वट वृक्ष की पूजा से कल्याण होता है।
समाज वट वृक्ष का आदर धार्मिक तथा पर्यावरण संरक्षित रखने के लिए करता है। वट वृक्ष आकार में बेहद विशाल तथा ये पेड़ पूरे साल राहगीरों को छाया प्रदान करने में सक्षम होते हैं। इसीलिए सड़कों के किनारे पीपल और बरगद जैसे पेड़ लगाए गए थे। धार्मिक मान्यता वाले इस
वृक्ष की औसत उम्र ५०० से १००० साल मानी जाती है। यह पेड़ छाया, तथा पक्षियों और जंतुओं को आश्रय प्रदान करता है। वट वृक्ष के आसपास प्रदूषण का स्तर स्वत: कम हो जाता है।
भारतीय संस्कृति में प्रकृति को ईश्वर और ईश्वर को प्रकृति के तौर पर चित्रित किया गया। हिदू पद्धति में सूर्य, चंद्र, धरती, नौ ग्रह, नदी, पर्वत के साथ ही वायु, अग्नि, जल की भी पूजा होती है। इसी तरह पीपल, बरगद, बेल, आम, नीम, आंवला, अशोक, लाल चंदन, केला, शमी और तुलसी जैसे पेड़-पौधों की भी उपासना की जाती हैं। पर्यावरण संरक्षण का यह दीर्घकालिक और प्रभावी प्रबंध कई प्रेरणा देता है
पुराण कहते है कि ‘वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न संभव:’, अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है। मत्स्य पुराण में लिखा है – ‘दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:। दशहृद: सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:। अर्थ एक वृक्ष की तुलना मनुष्य के 10 पुत्रों से की गई है।अन्न, जल और वायु हमारे जीवन के आधार हैं । सामान्य मनुष्य प्रतिदिन औसतन १ किलो अन्न और २ लीटर जल लेता है परंतु इनके साथ वह करीब १०,००० लीटर (१२ से १३.५ किलो) वायु भी लेता है । इसलिए स्वास्थ्य की सुरक्षा हेतु शुद्ध वायु अत्यंत आवश्यक है ।
पीपल का वृक्ष दमानाशक, हृदयपोषक, ऋण-आयनों का खजाना, रोगनाशक, आह्लाद व मानसिक प्रसन्नता का खजाना तथा रोगप्रतिकारक शक्ति बढानेवाला है । बुद्धि बड़ाने वाला तथा हताश-निराश लोगों को भी पीपल के स्पर्श एवं उसकी छाया में बैठने से अमिट स्वास्थ्य-लाभ व पुण्य-लाभ होता है । पीपल के साथ पर्यावरण की शुद्धि के लिए आँवला, तुलसी, वटवृक्ष व नीम के वृक्ष लगाने चाहिए । ये वृक्ष शुद्ध वायु के द्वारा प्राणिमात्र को एक प्रकार का उत्तम भोजन प्रदान करते हैं ।
पीपल धुएँ तथा धूलि के दोषों को वातावरण से सोखकर पर्यावरण की रक्षा करनेवाला एक महत्त्वपूर्ण वृक्ष है । यह बीस घंटे ऑक्सीजन उत्सर्जित करता है । इसके नित्य स्पर्श से रोग-प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि, मनःशुद्धि, आलस्य में कमी, ग्रह पीड़ा का शमन, शरीर के आभामंडल की शुद्धि और विचारधारा में धनात्मक परिवर्तन कराता है । बालकों के लिए पीपल का स्पर्श बुद्धिवर्धक है । पीपल जिसका बानस्पतिक नाम फाइकस बेंगलेंसिस कुल मोरेसी है यह भारतीय उपमहाद्वीप का रहने वाला तथा भगवान बुद्ध तथा जैन गुरु से संबंधित एवम अन्य वृक्षों की अपेक्षा ३० प्रतिसत अधिक ऑक्सीजन देता है जिसको जल देने से पुण्य मिलता है यह सनी ग्रह दोष निवारक तथा पत्तियां भी औषधि युक्त होती है।पौधे लगाना प्राणि मात्र की सबसे बड़ी सेवा है