उत्तराखण्ड
श्रीदेव सुमन की पुण्यतिथि पर विशेष : उत्तराखंड के लिए, अपनी पहाड़ी संस्कृति के लिए त्यागे प्राण
टिहरी जेल में श्रीदेव सुमन जी के साथ नारकीय व्यवहार किया गया, इनके ऊपर झूठा मुकदमा चलाया
सीएन, नैनीताल। श्रीदेव सुमन उत्तराखंड के उन गिने-चुने स्वतंत्रता सेनानियों में से थे जो देश की आजादी ही नही बल्कि गढ़वाल की टिहरी रियासत के संर्घष जुल्मों के खिलाफ भी संघर्ष कर रहे थे। श्रीदेव सुमन ने 3 मई 1944 को टिहरी जेल में ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। 84 दिन बाद तड़पते तड़पते और रियासत के जुल्मों से लड़ते हुए इन्होंने 25 जुलाई 1944 को अपने देश के लिए, अपने राज्य उत्तराखंड के लिए, अपनी पहाड़ी संस्कृति के लिए अपने प्राण त्याग दिए। ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। तड़पते तड़पते और रियासत के जुल्मों से लड़ते हुए इन्होंने 25 जुलाई 1944 को अपने देश के लिए, अपने राज्य उत्तराखंड के लिए, अपनी पहाड़ी संस्कृति के लिए अपने प्राण त्याग दिए। श्रीदेव सुमन जी का जन्म टिहरी गढ़वाल के जौल नामक ग्राम में 25 मई 1916 को हुवा था। इनके पिता हरिराम बडोनी अपने क्षेत्र के लोकप्रिय वैध थे। माता तारा देवी एक कुशल गृहणी थी। श्रीदेव सुमन का बचपन का नाम श्रीदत्त बडोनी था। सन 1919 में हैजे का प्रकोप फैलने पर श्री हरिराम बडोनी मरीजों सेवा करते, स्वयं हैजे का शिकार हो गए और 36 साल की उम्र में ही चल बसे। मगर इनकी माता ने अपने बच्चों का लालन पालन किया। इनकी आरम्भिक शिक्षा अपने पैतृक गांव व चम्बाखाल में हुई। 1931 में इन्होंने टिहरी से हिंदी मिडिल की परीक्षा उत्तीर्ण की। 1931 में ये देहरादून गए और वहाँ के नेशनल स्कूल में अध्यापन कार्य शुरू कर दिया और साथ साथ मे पढ़ाई भी करते रहते थे। पंजाब विश्वविद्यालय से इन्होंने रत्न, भूषण, प्रभाकर परीक्षाओं को उत्तीर्ण किया। इसके साथ साथ, विशारद और साहित्य रत्न की परीक्षा भी उत्तीर्ण जी थी। श्रीदेव सुमन ने 1937 में सुमन सौरभ नाम से अपनी कविताएं प्रकाशित कराई। इन्होंने अखबार हिन्दू और समाचार पत्र धर्मराज्य में भी कार्य किया। इन्होंने इलाहाबाद में राष्ट्र मत नामक अखबार में सहकारी संपादक के रूप में कार्य किया। इस प्रकार श्रीदेव सुमन साहित्य के क्षेत्र में निरंतर आगे बढ़ने लगे। जनता की सेवा के उद्देश्य से इन्होंने 1937 में गढ़देश सेवा संघ की स्थापना की। यह आगे चलकर हिमालय सेवा संघ के नाम से प्रसिद्ध हुवा। 1938 में श्रीदेव सुमन गढ़वाल की यात्रा पर गए। उन्होंने श्रीनगर में राजनैतिक सम्मेलन में भी शामिल हुए। इस सम्मेलन में नेहरू जी भी आये थे, और इन्होंने गढ़वाल की खराब स्थिति के बारे में नेहरू जी को भी अवगत कराया। इसी राजनैतिक सम्मेलन से इन्होंने गढ़वाल की एकता का नारा मजबूत किया। श्रीदेव सुमन ने जगह जगह यात्रा करके जंन जागरण फैलाना शुरू कर दिया। 23 जनवरी 1939 की देहरादून में टिहरी राज्य प्रजा मंडल की स्थापना की गई , और श्रीदेव सुमन जी संयोजक मंत्री चुने गए। हिमालय सेवा संघ द्वारा पर्वतीय राज्यों जाग्रति और चेतना लाने का काम किया। लैंड्सडाउन से प्रकाशित होने वाली पत्रिका, कर्मभूमि से इन्होंने सहसंपादक के रूप में कई जन जागृति के लेख लिखे। इसके बाद इन्होंने हिमांचल नामक पुस्तक छपवाकर टिहरी रियासत में बटवाई, जिससे ये रियासत के नजर में आ गए। रियासत ने इन्हें कई प्रकार के प्रलोभन भी दिए। मगर इनके विचार नही बदले। 1942 अगस्त में जब भारत छोड़ो आंदोलन शुरू हुआ, तब इनको 29 अगस्त 1942 को देवप्रयाग में गिरफ्तार कर, 10 दिन तक मुनिकीरेती जेल भेज दिया । बाद में 06 सिंतबर 1942 को देहरादून जेल भेज दिया, वहाँ से इनको आगरा जेल में शिप्ट किया गया। 15 माह जेल में रहने के बाद 19 नवंबर 1943 को ये रिहा हुए। इसी बीच टिहरी रियासत ने टिहरी की जनता के ऊपर जुल्मों की सारी हदें पार की थी। श्रीदेव सुमन टिहरी की जनता के अधिकारों के लिए अपनी आवाज बुलंद करने लगे। इन्होंने जनता और रियासत के बीच सम्मान जनक संधि का प्रस्ताव भी दरवार को भेजा। लेकिन रियासत ने अस्वीकार कर दिया। 9 दिसंबर 1943 को श्रीदेव सुमन को चम्बाखाल में गिरफ्तार करके, 30 दिसम्बर को टिहरी जेल भिजवा दिया गया। टिहरी जेल में श्रीदेव सुमन जी के साथ, नारकीय व्यवहार किया गया, इनके ऊपर झूठा मुकदमा चला कर 31जनवरी 1944 को, इन्हें 2 साल का कारावास और 200 रुपया दंड देकर इन्हें अपराधी बना दिया गया। इसके बाद भी इनके साथ नारकीय व्यवहार होते रहे। अंत मे श्रीदेव सुमन ने 3 मई 1944 को ऐतिहासिक आमरण अनशन शुरू कर दिया। जेल प्रशासन ने इनका मनोबल डिगाने के लिए, कई मानसिक और शारिरिक अत्यचार किये , लेकिन ये अपनी अनशन पर डिगे रहे। जेल में इनके अनशन की खबर से जनता परेशान हो गई, लेकिन रियासत ने अफवाह फैला दी की श्रीदेव सुमन जी ने अपना अनशन समाप्त कर दिया है और राजा के जन्मदिन पर इनको रिहा कर दिया जाएगा। यह खबर इनको को भी मिल गई, उन्होंने कहा कि वे प्रजामंडल को रेजिस्ट्रेड किये बिना मैं अपना अनशन खत्म नही करूँगा। अनशन से इनकी हालत बिगड़ गई और जेलप्रशाशन ने अफवाह फैला दी कि इनको न्यूमोनिया हो गया। इसके बाद इनको कुनेन के इंजेक्शन लगाए गए। कुनेन के इंजेक्शन के साइड इफेक्ट से इनके शरीर मे खुश्की फैल गई, जिसकी वजह से ये पानी के लिए तड़पने लगे, श्रीदेव सुमन पानी पानी चिल्लाते रहे, लेकिन किसी ने इनको पानी नही दिया। अंततः तड़पते तड़पते और रियासत के जुल्मों से लड़ते हुए इन्होंने 25 जुलाई 1944 को अपने देश के लिए, अपने राज्य उत्तराखंड के लिए अपनी पहाड़ी संस्कृति के लिए अपने प्राण त्याग दिए। श्रीदेव सुमन की शहादत की खबर से जनता में एकदम उबाल आ गया, जनता ने रियासत के खिलाफ खुल कर विद्रोह शुरू कर दिया। जनता के इस आंदोलन के बाद टिहरी रियासत को प्रजामंडल को वैधानिक करना पड़ा। मई 1947 में टिहरी प्रजामंडल का पहला अधिवेशन हुवा। जनता ने 1948 में टिहरी, देवप्रयाग और कीर्तिनगर पर अपना अधिकार कर लिया और अंततः 01 अगस्त 1949 को टिहरी गढ़वाल राज्य, भारत गणराज्य में विलीन हो गया। हमें गर्व हैं श्रीदेव सुमन और उनकी शहादत पर, मात्र 29 वर्ष की छोटी सी उम्र में श्रीदेव सुमन अपने राज्य, अपने पहाड़ी समाज, अपने टिहरी गढ़वाल और अपने देश के लिए ऐसा कार्य कर गए, जिससे उनका नाम इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में सदा सदा के लिए अमर हो गया।