उत्तराखण्ड
तिब्बत स्थित पवित्र कैलाश मानसरोवर यात्रा पर लगा ब्रेक
कोरोना व सीमा विवाद के कारण इस साल भी दर्शन नहीं कर पाएंगे शिवभक्त
सीएन, देहरादून। शिवभक्तों के लिए बुरी खबर है। लगातार तीसरे साल कैलाश मानसरोवर यात्रा पर ब्रेक लगा दिया गया है। शिव भक्त इस साल भी शिव धाम के दर्शन नहीं कर पाएंगे। चीन से चल रहें सीमा विवाद और कोरोना के कहर के कारण इस साल भी कैलाश मानसरोवर यात्रा नहीं हो सकेगी। उम्मीद की जा रही थी इस बार भक्त भोले बाबा के दर्शन करने पहुंच सकेंगे। लेकिन केएमवीएन के अफसरों का कहना है कि इस बार भी यात्रा नहीं होगी। मीडिया रिपोर्टस के अनुसार विदेश मंत्रालय मानसरोवर यात्रा करवाता है। लेकिन इस साल अभी तक विदेश मंत्रालय से केएमवीएन को कोई दिशा निर्देश नहीं मिले है। जबकि यात्रा के लिए जनवरी से तैयारियां शुरू हो जाती थी। अप्रैल शुरू होने के बाद भी कोई आदेश न मिलने पर मानसरोवर यात्रा रद्द करने की बात कहीं गई है। इसके बावजूद यात्रा से जुड़े कारोबारियों को उम्मीद थी कि जल्द आदेश होंगे। लेकिन अब केएमवीएन के अफसरों का कहना है कि इस बार भी यात्रा नहीं होगी। गौरतलब है कि पिथौरागढ़ जिले में चीन सीमा से सटे लिपूलेख दर्रे को पार कर हर साल जून से मानसरोवर यात्रा होती रही है। वर्ष 2020 और 2021 में कोरोना के कहर से यात्रा का संचालन नहीं हो सका। इस बार भारत में कोरोना का असर कम होने पर यात्रियों को उम्मीद थी कि उन्हें पवित्र शिवधाम जाने का अवसर मिलेगा। लेकिन ऐसा नहीं हो सका है।गौरतलब है कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव आज भी कैलाश पर्वत पर अपने परिवार के साथ निवास करते हैं। उनके साथ कई देवी-देवताओं और ऋषि-मुनियों का भी ये निवास स्थान है। यहां कोई आम इंसान नहीं जा सकता है। कैलाश पर्वत पर चढ़ने के लिए खास सिद्धि की जरूरत होती है। ऐसा इंसान जिसने कभी पाप नहीं किया हो वो ही इस पर्वत पर जिंदा चढ़ सकता है। कई पर्वतारोहियों ने कैलाश पर्वत पर चढ़ने की कोशिश की लेकिन वे नाकाम रहे। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक कैलाश पर्वत पर अलौकिक शक्ति का वास है। यहां पुण्य आत्माएं रहती हैं। मानसरोवर यात्रा रुकने से बॉर्डर के गांव में पसरा सन्नाटा इसे स्वर्ग का द्वार भी कहा जाता है।
मानसरोवर यात्रा रुकने से बॉर्डर के गांव में पसरा सन्नाटा
कोरोना संक्रमण के चलते इस साल भी मानसरोवर यात्रा नहीं होनी है. यात्रा के इतिहास में ये पहला मौका है, जब दो देशों के बीच होने वाली धार्मिक यात्रा लगातार दो सालों तक बंद रही.अब तीसरे साल भी यात्रा नही हो सकेगी। यात्रा बंद होने से जहां श्रद्धालु निराश हैं, वहीं बॉर्डर के ग्रामीणों का रोजगार भी प्रभावित हो गया है.
एकबार फिर आर्थिक संकट का सामना
कैलाश पर्वत और मानसरोवर झील के दर्शन के लिए हर साल हजारों यात्री पिथौरागढ़ होते हुए चीन पहुंचते थे. इस दौरान पूरे 4 महीने बॉर्डर के इलाके आबाद रहते थे. इन श्रद्धालुओं की यात्रा की वजह से जहां हजारों लोगों का पेट पलता था, वहीं पोनी-पोटर्स का सीजनल रोजगार भी इसी पर निर्भर था. लेकिन दो सालों से चीन से सटे गांवों में पूरी तरह सन्नाटा है. बीते दो साल की तरह इस साल भी मानसरोवर यात्रा आयोजित होने के कोई आसार नहीं हैं. ऐसे में तय है कि हजारों लोगों के सामने एकबार फिर आर्थिक संकट होगा.
यात्रा को लेकर अभी तक कोई निर्देश नहीं
भारत-चीन युद्ध से पहले मानसरोवर यात्रा स्वतंत्र रूप से संचालित होती थी. लेकिन 1962 के बाद इस पर पूरी तरह रोक लग गई. दोनों मुल्कों की कोशिशों के बाद 1981 से यह यात्रा फिर शुरू तो हुई, लेकिन स्वरूप पूरी तरह बदल गया. चीन से जारी सीमा विवाद और कोरोना इस यात्रा की राह में रोड़ा बने. इस साल भी कोरोना संकट के कारण यात्रा आयोजित नहीं हो पा रही है. आयोजकों का कहना है कि यात्रा को लेकर केन्द्र और राज्य सरकार से कोई निर्देश अभी तक प्राप्त नहीं हुआ है.
कुमाऊं मंडल विकास निगम को भी नुकसान
यात्रा नहीं होने से बॉर्डर की रौनक तो गायब है ही, साथ ही कुमाऊं मंडल विकास निगम को भी भारी चपत लगी है. यात्रा का आयोजन कर केएमवीएन हर साल 5 करोड़ की इनकम करता था. लेकिन कोरोना के संकट ने सबकुछ बदल डाला. दो सालों में उसं 10 करोड़ का नुकसान अब तीसरे साल 15 करोड़ का नुकसान हो चुका है।
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