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हाई कोर्ट में खड़ी होकर जज साहिबा ने की सुनवाई, वकील भी हैरान

हाई कोर्ट में खड़ी होकर जज साहिबा ने की सुनवाई, वकील भी हैरान
सीएन, नई दिल्ली।
हेल्थ एक्सपर्ट कहते हैं कि 8 से 9 घंटे तक लगातार कुर्सी पर बैठकर काम करना सेहत के लिए नुकसानदायक होता है। सोचिए जज तो 14 से 16 घंटे तक कुर्सी पर बैठकर कोर्ट की कार्यवाही पूरी करते हैं, उनके आगे अपनी सेहत को ठीक रखने की कितनी बड़ी चुनौती होती होगी। दरअसल दिल्ली हाईकोर्ट की एक जज ने गुरुवार को खड़े होकर कोर्ट की कार्रवाई पूरी की, जिसके बाद से ही जजों की कुर्सी पर लंबी सिटिंग का मुद्दा चर्चा में है। वाकया जस्टिस प्रतिभा एम. सिंह से जुड़ा है, जिन्होंने गुरुवार को कार्यवाही की शुरुआत में कुछ मामलों को तो कुर्सी पर बैठकर सुना। फिर वो खड़ी हो गईं और उन्होंने इस तरह करीब 12:30 बजे इसी तरह मामलों की सुनवाई की। यह देखकर वकील भी उनके सम्मान में खड़े होने लगे। इस पर जस्टिस सिंह ने वकीलों से बैठने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि लंबे समय तक बैठे रहने से मामलों को सुनना मुश्किल हो जाता, खड़े रहकर ऐसा करना ज्यादा आरामदायक रहता है। लंच ब्रेक के बाद भी जस्टिस सिंह ने दोपहर साढ़े तीन बजे से शाम लगभग साढ़े चार बजे फिर से इसी तरह से सुनवाई की। इसे सहज बनाने के लिए जज ने थोड़ी ऊंची कंप्यूटर डेस्क का भी इस्तेमाल किया। जस्टिस सिंह के सामने इस दिन कुल 49 मामले सुनवाई के लिए लगे थे। दरअसल जज काम के दौरान 14-16 घंटे बैठे रहते हैं और यह उनके स्वास्थ्य के लिए काफी खतरनाक साबित होता है। डॉक्टर भी कुर्सी पर बैठकर काम करने वाले लोगों को हर एक घंटे पर खड़े होकर आराम करने की सलाह देते हैं। इसी सलाह के तहत जज ने भी खड़े होकर मामलों की सुनवाई करने का विकल्प चुना। जस्टिस सिंह ने खड़े रहकर काम करने को अधिक आरामदेह माना। लंच से पहले और उसके बाद करीब दो घंटे तक अदालती कार्यवाही पूरी की। आमतौर पर कोर्ट रूम में जज अपनी कुर्सी पर बैठकर सामने टेबल पर रखे कंप्यूटर और दस्तावेजों की मदद से कार्यवाही पूरी करते हैं। जस्टिस सिंह ने गुरुवार को कुछ मामलों को तो बैठकर सुना, मगर करीब साढ़े बारह बजे वे खड़ी हो गई, तब वहां मौजूद वकील और वादी समेत अन्य लोग चौंक गए और वे भी खड़े हो गए। मगर जस्टिस सिंह ने उन्हें बैठे रहने को कहा और बताया कि पूरा दिन बैठना मुश्किल हो जाता है। कोर्ट में मौजूद अधिवक्ताओं के मुताबिक यह पहली बार हुआ कि जब किसी जज ने शारीरिक तकलीफ के बावजूद अदालती कार्यवाही में हिस्सा लिया और खड़े रहकर सुनवाई की।

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