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उत्तराखण्ड

श्रावणी माह में भक्त पहुंच रहे शिव पूजा को गुफा महादेव


गुफा महादेव में लिंग में अनवरत बहती जल धारा करती है जलाभिषेक
श्रावणी सोमवार को मंदिर में लगता है शिव भक्तों का जमावड़ा
चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल।
श्रावण मास में हिमालय क्षेत्र के शिवधामों की महत्ता बढ़ जाती है। मान्यता है कि हिमालय क्षेत्र के पर्वतों में शिव साक्षात विराजते है। उत्तराखंड के गढ़वाल व कुमाऊं में शिव लिंगों की पूजा की जाती है। नैनीताल के एक मात्र मान्यता प्राप्त गुफा महादेव मंदिर को शिवभक्त गुफाओं में स्थित शिव की तरह मान्यता देते है। इन दिनों गुफा महादेव मंदिर में शिव पूजा को भक्तजन पहुंच रहे है। श्रावण के सोमवार को यहां शहर के ही नही बल्कि आसपास के गांवों के लोग भी काफी संख्या में पूजा अर्चना के लिए पहुंचते है। त्रिऋषि सरोवर के नाम से पुराणों में अंकित नैनीताल में स्थित प्राचीन गुफा महादेव मंदिर भी अपनी खास विशेषता के लिए जाना जाता है। इस मंदिर की गुफा में स्थित शिव लिंग में अनवरत बहती जल धारा जलाभिषेक करती है। इस प्राकृतिक रूप को देख श्रद्धालु आकंठ आत्मविभोर हो उठते है। इस दौरान श्रद्धालु महादेव में लीन होकर पूजा करते है। श्रावण मास में यहां भक्तों का तांता लग जाता है।
प्रथम बार 1892 में स्व. कृष्णा साह ने की मंदिर में पूजा
नैनीताल।
गुफा महादेव मंदिर का अस्तित्व आदिकाल से रहा होगा। मौजूदा इतिहास के मुताबिक नैनीताल वीरभट्टी मार्ग में स्थित कृष्णापुर स्टेट के मालिक स्व. कृष्णा साह को 1892  में स्वप्न में भान हुआ कि उनकी स्टेट के निकट शिव अदृश्य होकर ध्यान मग्न है। उन्हें यह भी आभास हुआ कि शिव सैकड़ों वर्षो से तपस्या कर रहे है। स्वप्न में बताये गये स्थान में जब उन्होंने खुदाई की तो लगभग 12 फीट गहरी गुफा में तीन शिवलिंग देखे गए। जिनके ऊपर जलधारा अनावरत जलाभिषेक कर रही है। इसके बाद कृष्णा साह ने यहां मंदिर की सथापना की। लिंगो में अनवरत जलाभिषेक का प्राकृतिक दृश्य आज भी दृष्टिगोचर होता है। इस मंदिर के दर्शन को पूरे साल भक्तों की भीड़ लगी रहती है लेकिन श्रावण मास को यहां भक्तों का तांता लगा रहता है। गुफा इतनी सकरी है कि गर्भ गृह में पूजा के लिए एक बार एक ही भक्त जा सकता है।
साधना को विशिष्ट रूप से प्रसिद्ध रहा है गुफा महादेव
नैनीताल।
कश्मीर के अमरनाथ गुफा की तरह नैनीताल का गुफा महादेव मंदिर साधना के लिए भी विशिष्ट रूप से प्रसिद्ध रहा है। यहां शिव को महायोगी व मतयनाथ के रूप में भी पूजा जाता है। सन् 1934-35 में नेपाल जनकपुरी से आये ब्रहमचारी महाराज ने साधना की थी। उसके बाद उनके शिष्य हीरानंद ने भी इस मंदिर में साधना की थी। इनका धनौरा मुरादाबाद में भव्य मंदिर है। इसके अलावा मोहनगिरी महाराज, गिरी महाराज ने भी इसी स्थान पर साधना की थी। आज भी यहां कई साधु साधना के लिए पहुंचते हैं।

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