उत्तराखण्ड
बहस : हैदराबाद और भाग्यनगर का क्या रिश्ता है
सीएन, हैदराबाद। तेलंगाना में हैदराबाद बनाम भाग्यनगर की बहस एक बार फिर गर्म हो गई है। पूर्व केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद के मुताबिक, ‘हैदराबाद में हाल में हुई बीजेपी की नैशनल एग्जियूटिव में पीएम ने कहा कि भाग्यनगर में ही सरदार वल्लभ भाई पटेल ने ‘एक भारत’ शब्दावली का इस्तेमाल किया था। सरदार पटेल ने एक भारत की नींव रखी थी और अब इसे मजबूत करने की जिम्मेदारी बीजेपी की है।‘ इस बयान के बाद बीजेपी और संघ परिवार के लोग एक बार फिर जोरशोर से कहने लगे हैं कि हैदराबाद का नाम दरअसल भाग्यनगर था। विरोधियों की राय हालांकि अलग है। कुलमिलाकर हैदराबाद के नाम को लेकर कोई एकराय नहीं है। अलग-अलग नजरिए जुड़े हैं इसके साथ। नवभारत गोल्ड की एक्सप्लेंड सीरीज में आइए एक नजर डालते हैं इस पूरी तस्वीर पर।
भागमती से क्या रिश्ता है?हैदराबाद या भाग्यनगर को लेकर हो रही बहस में सबसे मजेदार किस्सा भागमती से जुड़ा हुआ है। बताते हैं कि कुतुबशाही वंश का सुल्तान कुली कुतुब शाह एक बार सैर को निकला था और उसी दौरान उसकी नजर बला की खूबसूरत भागमती पर पड़ गई। पिता की मौत के बाद कुली कुतुब शाह जब सुल्तान बना तो उसने भागमती से शादी कर ली और उसके गांव को एक नए शहर की शक्ल दे दी। उसका नाम रखा गया भागनगर। इसी किस्से में जरा हटके एक और बात जोड़ी जाती है। कहा जाता है कि शादी के बाद भागमती ने इस्लाम कबूल कर लिया था। उसका नया नाम रखा गया हैदर बेगम और उसी के नाम पर शहर का नाम पड़ा हैदराबाद। हालांकि अधिकतर इतिहासकार इस किस्से को सच नहीं मानते।
भागनगर या बागनगर?
हैदराबाद बनाम भाग्यनगर के विवाद से जुड़ा एक और किस्सा है। कहते हैं कि गोलकुंडा के अमीर पुराने शहर में गंदगी से इतने परेशान हो गए थे कि उन्होंने नया ठिकाना तलाशना शुरू किया। आखिरकार उन्होंने मूसी नदी के किनारे अपने लिए आलीशान घर बनवाए और उस इलाके को बेहतरीन बाग-बागीचों से सजाया। उस दौर में उस इलाके को बागनगर कहा जाने लगा। और जब सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने नया शहर बनाने के बारे में सोचा तो उसने बागनगर को चुना और उसका नाम रख दिया हैदराबाद यानी हैदर का शहर। हैदर शिया मुसलमानों के पहले इमाम अली का ही एक नाम है। यह जो किस्सा है, इसे काफी इतिहासकार सही मानते हैं।
देवी भाग्यलक्ष्मी का क्यों होता है जिक्र?
हैदराबाद बनाम भाग्यनगर विवाद में किस्से यहीं तक नहीं हैं। इसका एक और सिरा खुलता है। यह जाकर जुड़ता है देवी भाग्यलक्ष्मी से। भाग्यलक्ष्मी मंदिर पुराने हैदराबाद शहर में ऐतिहासिक चारमीनार की दक्षिण पूर्वी मीनार के पास है। वह मीनार दरअसल मंदिर की पिछली दीवार जैसी है। चारमीनार को मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने 1591 में बनवाना शुरू किया था। बताया जाता है कि अपने राज्य में प्लेग महामारी का अंत होने की खुशी में सुल्तान ने चारमीनार बनवाई। हालांकि सिकंदराबाद के बीजेपी सांसद जी किशन रेड्डी का कहना है कि मंदिर वहां पर चारमीनार के पहले से है। वहीं, कुछ लोगों का कहना है कि चारमीनार को आसपास से गुजरने वाली गाड़ियों की टक्कर से बचाने के लिए एक छोटा सा पिलर बनाया गया था, लेकिन 1960 के दशक में किसी ने उसे केसरिया रंग में रंग दिया और कुछ लोग वहां आरती करने लगे। और जब एक बार एक सरकारी बस की टक्कर से वह पिलर कुछ टूट गया तो रातोरात वहां बांस का एक ढांचा बना दिया गया और वहां देवी प्रतिमा स्थापित कर दी गई। चारमीनार इलाके के कई लोग मंदिर में रोज पूजा करते हैं। खासतौर से दिवाली के मौके पर वहां काफी श्रद्धालु जुटते हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि इस मंदिर में पूजा करने से उनका भाग्य बदल जाएगा। हिंदू संगठनों का दावा है कि देवी के नाम पर ही भाग्यनगर नाम पड़ा था, लेकिन कुतुबशाही वंश के सुल्तान जब अपनी राजधानी गोलकुंडा से यहां ले आए तो उन्होंने भाग्यनगर का नाम बदलकर हैदराबाद कर दिया।
कैसे गरमाया मुद्दा?
दरअसल 1940 के दशक तक यह काफी हद तक साफ होने लगा था कि भारत पर गोरों का राज ज्यादा देर नहीं चलने वाला। ऐसे में निजाम ने नई चाल चली। वह हैदराबाद को इस्लामी राज्य घोषित करने और इसे भारत से अलग करने के लिए जोर लगाने लगा। लेकिन उसके इलाके में अक्सरियत हिंदुओं की थी और राज करने वाले मुसलमान थोड़े ही थे। निजाम की हरकतों से खेमेबंदी बढ़ने लगी। उसी दौरान इस दलील ने जोर पकड़ा कि हैदराबाद को देवी भाग्यलक्ष्मी के नाम पर भाग्यनगर के नाम से जाना जाता था। खैर, अंग्रेजों के दलालों की तमाम कोशिशों के बावजूद सभी धर्मों के लोगों में एकता बनी रही, देश आजाद हुआ, निजाम का राज भी खत्म हुआ और हैदराबाद बनाम भाग्यनगर का मुद्दा भी ठंडा पड़ गया। लेकिन पुराना हैदराबाद शहर सांप्रदायिक रूप से संवेदनशील बना रहा। नवंबर 1979 में जब मक्का में चरमपंथियों ने ग्रैंड मॉस्क पर कब्जा कर लिया तो हैदराबाद शहर में ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलीमीन यानी एआईएमआईएम ने बंद की अपील की। दिवाली करीब थी तो कुछ हिंदू दुकानदारों ने कहा कि उन्हें दुकानें खोलने दिया जाए। इसके चलते टकराव हो गया। भाग्यलक्ष्मी मंदिर में भी तोड़फोड़ की गई। कुछ साल बाद 1983 में मंदिर को लेकर फिर तनातनी हुई। इस बार मंदिर और आलविन मस्जिद, दोनों पर गुंडों ने हमला किया। फिर 2012 में एक बार टकराव हुआ, जब खबर फैली कि मंदिर प्रबंधन नई शीट लगाकर बांस के ढांचे को बड़ा बना रहा है। मामला अदालत में गया और आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट ने वहां किसी भी तरह के निर्माण पर रोक लगा दी।
बीजेपी क्यों लगा रही जोर?
हाल-फिलहाल की बात करें तो हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर करने का मुद्दा उठाने वालों में सबसे प्रमुख नाम यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ का है। साल 2020 में ग्रेटर हैदराबाद म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का इलेक्शन हो रहा था। प्रचार अभियान के दौरान योगी ने कहा था, ‘कुछ लोग मुझसे पूछ रहे थे कि हैदराबाद का नाम फिर से भाग्यनगर किया जा सकता है या नहीं। मैंने उनसे कहा कि यूपी में बीजेपी की सरकार बनने के बाद हमने फैजाबाद को अयोध्या कर दिया और इलाहाबाद को प्रयाग कर दिया। तो फिर हैदराबाद का नाम फिर से भाग्यनगर क्यों नहीं किया जा सकता?’ योगी भाग्यलक्ष्मी मंदिर भी गए थे। उसी साल गृह मंत्री अमित शाह ने भी भाग्यलक्ष्मी मंदिर में पूजा की थी। कई दूसरे बीजेपी नेताओं के अलावा आरएसएस चीफ मोहन भागवत भी वहां गए थे। हैदराबाद बनाम भाग्यनगर का मुद्दा बीजेपी की चुनावी रणनीति के लिहाज से फिट है क्योंकि उसका जोर उन शहरों के नाम बदलने पर रहा है, जिनके इस्लामिक नाम हों। साथ ही, यह मुद्दा गरमाने से तेलंगाना में कार्यकर्ताओं में जोश भरने में भी बीजेपी को सहूलियत होगी।