धर्मक्षेत्र
नवरा़त्र : शारदा नदी के पास स्थित पूर्णागिरी मंदिर चमत्कारों के लिए भी जाना जाता है खासा
नवरा़त्र : शारदा नदी के पास स्थित पूर्णागिरी मंदिर चमत्कारों के लिए भी जाना जाता है खासा
सीएन, चंपावत। उत्तराखंड के चंपावत जिले में समुद्र स्तर से ऊपर 3000 फीट की ऊंचाई पर टनकपुर से 20 किलोमीटर दूर पिथौरागढ़ से 171 किलोमीटर दूर और चंपावत से 92 किमी दूर स्थित है। पूर्णागिरी मंदिर में पूरे देश के सभी भागों के भक्तों द्वारा यात्रा की जाती है। जो यहां बड़ी संख्या में विशेष रूप से मार्च-अप्रैल माह में चैत्र व शारदीय नवरात्रि के दौरान आते हैं। इन दिनों इस मंदिर में भक्तों की भीड़ जुटी है। पूर्णागिरी को पुण्य गिरि के नाम से भी जाना जाता है। मंदिर शारदा नदी के पास स्थित है। पूर्णागिरी मंदिर अपने चमत्कारों के लिए भी खासा जाना जाता है। 1632 में गुजरात के एक व्यापारी चंद्र तिवारी ने चंपावत के राजा ज्ञानचंद के साथ शरण ली थी। उनके सपनों में मां पुण्यगिरि दिखाई दी थीए जिसमें उन्होंने एक मंदिर का निर्माण करने के लिए कहा था। तब से आज तक मंदिर में जोरों शोरों के साथ पूजा पाठ की जाती है और भक्तों की भी काफी संख्या में देखने को मिलती है। चैत्र नवरात्रि यहां मनाया जाने वाला सबसे बड़ा त्योहार है। यहां एक मेला भी आयोजित किया जाता है, जहां भारत के अनगिनत भक्त मेले में शामिल होते हैं। इस मंदिर को झूठे का मंदिर भी कहते हैं। पूर्णागिरी मंदिर से लौटते समय झूठे का मंदिर की भी पूजा की जाती है। ऐसा कहा जाता है कि एक व्यापारी ने मां पूर्णागिरी से वादा किया था कि अगर उसकी पुत्र की इच्छा पूरी हुई तो वह एक सोने की वेदी का निर्माण करेगा। उनकी इच्छा देवी ने प्रदान की थी। लालच आते ही व्यापारी पगला गया और उसने सोने की परत चढाने के साथ तांबे की एक वेदी बना डाली। ऐसा भी कहा जाता है कि जब मजदूर मंदिर को ले जा रहे थे तो उन्होंने कुछ देर आराम करने के लिए मंदिर को जमीन पर रख दिया। उन्होंने कितना मंदिर को उठाने की कोशिश की, लेकिन मंदिर उठ न सका। व्यापारी को मां द्वारा की जाने वाली ये वजह समझ आ गई और उसने मांफी मांगने के बाद वेदी के साथ मंदिर बनवा डाला। इतिहास के अनुसार माँ पूर्णागिरि मंदिर उन 51 शक्तिपीठ में से एक शक्तिपीठ माना जाता है इस स्थान पर मां सती की नाभि गिरी थी। पूर्णागिरि मंदिर को महाकाली पीठ भी माना जाता है। पूर्णागिरि मंदिर में 500 सीढ़ियाँ का रास्ता है। ऊपर से नेपाल सीमा की झलक दिखता है। इस स्थान पर एक दिन में जाया जा सकता है क्योंकि ट्रेक में लगभग 3-4 घंटे लगते हैं और मंदिर से लौटने में 1-2 घंटे लगते हैं। मल्लिका गिरि, कालिका गिरी और हमला चोटियों से पूर्णागिरि मंदिर घिरा हुआ है। पूर्णागिरि मंदिर के लिए निकलते समय भक्त भैरों बाबा के दर्शन करना अनिवार्य मानते हैं। यह भैरों बाबा ही हैं जो आगे बढ़ने की सहमति देते हैं। मंदिर पूरे सप्ताह खुला रहता है और भक्त सर्दियों में सुबह 5.00 बजे से शाम 5.00 बजे तक और गर्मियों में सुबह 5.00 बजे से शाम 7.00 बजे तक दर्शन कर सकते हैं। पूर्णागिरि मंदिर में चैत्र नवरात्रि, शारदीय नवरात्रि, विषुवत संक्रांति और कुमाऊं प्रमुख त्योहार हैं। पूर्णागिरि मंदिर में मार्च.अप्रैल माह में चैत्र नवरात्रि के दौरान पूर्णागिरि मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रद्धालु माँ पूर्णागिरि दर्शन के लिए आते हैं। पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखंड के चंपावत जिले में टनकपुर की पहाड़ी पर स्थित है। यह उत्तराखंड में टनकपुर से 17 किमी दूर है। आप इस जगह पर ट्रेन या सड़क मार्ग से जा सकते हैं। टनकपुर जंक्शन से ट्रेन में उस स्थान तक पहुँचने के लिए कैब ले सकते हैं।
