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गीतांजलि श्री बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखिका बनी

टॉम्ब ऑफ सैंड’ उस दुनिया के लिए एक शोकगीत जिसमें हम करते हैं निवास
सीएन, नईदिल्ली।
दिल्ली की एक लेखिका गीतांजलि श्री अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाली पहली भारतीय लेखिका बन गई हैं। डेजी रॉकवेल ने इस किताब ‘टॉम्ब ऑफ सैंड’ को ट्रांसलेट किया है। यह विश्व की उन 13 पुस्तकों में शामिल थी, जिसे अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार के लिए लिस्ट में शामिल किया गया था। बंगाली लेखक अरुणव सिन्हा ने ट्वीट किया और लिखा, ‘यसस! अनुवादक डेज़ी रॉकवेल और लेखक गीतांजलि श्री ने ‘सैंड का मकबरा’ (मूल में ‘रिट समाधि’) के लिए अंतर्राष्ट्रीय बुकर जीता। एक हिंदी उपन्यास, एक भारतीय उपन्यास, एक दक्षिण एशियाई उपन्यास के लिए पहली जीत.. बधाई!’ गीतांजलि श्री ने इस पुरस्कार को लेकर अपनी खुशी जाहिर की और उन्होंने कहा, ‘मैंने कभी बुकर का सपना नहीं देखा था, मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं ऐसा कर सकती हूं। कितनी बड़ी बात है, मैं चकित, खुश, सम्मानित और विनम्र हूं महसूस कर रही हूं। इस पुरस्कार के मिलने से एक अलग तरह की संतुष्टि है। ‘रेत समाधि/’टॉम्ब ऑफ सैंड’ उस दुनिया के लिए एक शोकगीत है जिसमें हम निवास करते हैं। बुकर निश्चित रूप से इसे कई और लोगों तक पहुंचाएगा.’ साथ ही उन्होंने ये भी कहा कि ‘मेरे और इस किताब के पीछे हिंदी और अन्य दक्षिण एशियाई भाषाओं में एक समृद्ध और साहित्यिक परंपरा है। इन भाषाओं के कुछ बेहतरीन लेखकों को जानने के लिए विश्व साहित्य अधिक समृद्ध होगा. इस तरह की बातचीत से जीवन की शब्दावली बढ़ेगी।’गीतांजलि श्री ने हिंदी उपन्यास के लिए पहला अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता। उनके 2000 के उपन्यास माई को 2001 में क्रॉसवर्ड बुक अवार्ड के लिए चुना गया। ता दें, 50,000 पाउंड के इस पुरस्कार के लिए चुने जाने वाली ये पहली हिंदी भाषा की किताब थी। यह किताब हिंदी भाषा में पहला ‘फिक्शन’ है, जो इस इस बड़े साहित्यिक पुरस्कार की दौड़ में शामिल था। बुकर प्राइज ने एक ट्वीट में बताया कि ‘गीतांजलि श्री और डेजी रॉकवेल ने अंतर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीता है। मालूम हो कि गीतांजलि श्री (जन्म 12 जून 1957) हिन्दी की जानी मानी कथाकार और उपन्यासकार हैं। उत्तर-प्रदेश के मैनपुरी नगर में जन्मी गीतांजलि की प्रारंभिक शिक्षा उत्तर प्रदेश के विभिन्न शहरों में हुई। बाद में उन्होंने दिल्ली के लेडी श्रीराम कॉलेज से स्नातक और जवाहरलाल नेहरू विश्‍वविद्यालय से इतिहास में एमए किया। महाराज सयाजी राव विवि, वडोदरा से प्रेमचंद और उत्तर भारत के औपनिवेशिक शिक्षित वर्ग विषय पर शोध की उपाधि प्राप्त की। कुछ दिनों तक जामिया मिल्लिया इस्लामिया विवि में अध्यापन के बाद सूरत के सेंटर फॉर सोशल स्टडीज में पोस्ट-डॉ टरल रिसर्च के लिए गईं। वहीं रहते हुए उन्होंने कहानियाँ लिखनी शुरू कीं।

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