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5 दिसंबर को मनाया जाता है विश्व मृदा दिवस : मृदा दिवस का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा

5 दिसंबर को मनाया जाता है विश्व मृदा दिवस : मृदा दिवस का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा
सीएन, नैनीताल।
दिसंबर 2013 को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 68 वीं सामान्य सभा की बैठक में पारित संकल्प के द्वारा 5 दिसंबर को विश्व मृदा दिवस मनाने का संकल्प लिया गया था। विश्व मृदा दिवस का उद्देश्य खाद्य सुरक्षा, कृषि के साथ.साथ जलवायु परिवर्तन के शमन, गरीबी उन्मूलन और सतत विकास के लिए मिट्टी के महत्व के बारे में दुनिया भर में जागरूकता बढ़ाना है। अगस्त 2023 में अमेरिकी और ऑस्ट्रेलियाई शोधकर्त्ताओं द्वारा किये गए एक अध्ययन तथा प्रस्तुत की गई तकनीकी रिपोर्ट में मृदा में मौजूद सूक्ष्म पोषक तत्वों के स्तर एवं भारत में व्यक्तियों के पोषण संबंधी देखभाल के बीच संबंध को दर्शाया गया है। यह खाद्य सुरक्षा, गरीबी उन्मूलन और अन्य मुद्दों के समाधान हेतु सतत मृदा प्रबंधन एवं पुनर्वास के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के प्रति थाईलैंड के दिवंगत राजा भूमिबोल अदुल्यादेज की आजीवन वचनबद्धता तथा उनके जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान संघ ने वर्ष 2002 में इस दिवस की सिफारिश की थी। खाद्य एवं कृषि संगठन मृदा संरक्षण पर वैश्विक भागीदारी के ढांचे के भीतर थाईलैंड साम्राज्य के नेतृत्व में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने वाले एक मंच के रूप में औपचारिक स्थापना का समर्थन करता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 5 दिसंबर 2014 को पहले आधिकारिक विश्व मृदा दिवस के रूप में नामित किया था। मृदा की संरचना का फसलों में ज़िंक और लौह जैसे आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों के स्तर पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। पौधे इन पोषक तत्त्वों को मृदा से अवशोषित करते हैं तथा मृदा में उनकी उपलब्धता भोजन में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा को प्रभावित करती है। मृदा में ज़िंक का निम्न स्तर बच्चों में बौनेपन और कम वजन की स्थितियों की उच्च दर से जुड़ा हुआ है। ज़िंक शारीरिक विकास और प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मृदा में लौह तत्त्व की उपलब्धता एनीमिया की व्यापकता से संबंधित है। आयरन हीमोग्लोबिन उत्पादन के लिये महत्त्वपूर्ण है जो शरीर में ऑक्सीजन संवहन के लिये आवश्यक है। उन क्षेत्रों में जहाँ मृदा में पर्याप्त ज़िंक, लौह और अन्य आवश्यक सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी होती है, ऐसी मृदा में उगाई जाने वाली फसलों का उपभोग करने वाली आबादी में सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की कमी की संभावना अधिक होती है। ज़िंक की कमी वाली मृदा पर फसलों में ज़िंक के प्रयोग से धानए गेहूँ, मक्का और जई की उपज केवल नाइट्रोजन, फॉस्फोरस तथा पोटैशियम उर्वरक के प्रयोग की तुलना में 75 प्रतिशत अधिक बढ़ जाती है। ज़िंक-समृद्ध उर्वरक के प्रयोग के बाद तीन से चार वर्षों तक मृदा में ज़िंक का स्तर बढ़ सकता है, जिसका अर्थ है कि यह एक प्रभावी दीर्घकालिक हस्तक्षेप हो सकता है, जिसमें अन्य समाधानों की तुलना में कम अल्पकालिक रखरखाव की आवश्यकता होती है। भारत की मृदा लंबे समय से नाइट्रोजन और फॉस्फोरस की व्यापक कमी का सामना कर रही है। 1990 के दशक में पोटैशियम की कमी अधिक देखी गई और 2000 के दशक में सल्फर की कमी एक बड़ी समस्या बनकर उभरी। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तहत मृदा और पौधों में सूक्ष्म एवं माध्यमिक पोषक तत्वों व प्रदूषक तत्वों पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना इससे जुड़े वैज्ञानिकों द्वारा 28 राज्यों से 0.2 मिलियन मृदा के नमूनों के विश्लेषण को दर्शाती है।

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