धर्मक्षेत्र
छठ महापर्व 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा, सबसे पहले किसने रखा छठ का व्रत, क्या है कहानी
छठ महापर्व 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा, सबसे पहले किसने रखा छठ का व्रत, क्या है कहानी
सीएन, नैनीताल। हर साल कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि से लेकर सप्तमी तिथि तक छठ पूजा का त्योहार मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान भगवान सूर्य देव की पूजा.अर्चना और अर्घ्य देने का विधान है। इस व्रत को विवाहित महिलाएं विधिपूर्वक करती हैं। साथ ही पुरुष भी जीवन में आने वाले संकटों को दूर करने के लिए भगवान सूर्य देव की उपासना करते हैं। धार्मिक मान्यता है कि इस व्रत को करने से सूर्य देव का आशीर्वाद मिलता है। जीवन खुशहाल होता है। इस साल छठ महापर्व 7 नवंबर 2024 को मनाया जाएगा। जैसे ही दीपावली का शोर थमता है, वैसे ही जोरो शोरो से छठ पूजा की तैयारियां शुरू हो जाती हैं। खास तौर पर ये त्योहार यूपी और बिहार में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो छठ पूजा यूपी, बिहार में बड़े ही धूमधाम से मनाई जाती है, लेकिन इस महापर्व को सबसे पहले किसने किया था, दरअसल छठ महापर्व को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं। जिसमें एक रामायण और महाभारत से भी जुड़ी है। पुराणों में कई कहानियों का जिक्र है।
छठ महापर्व चार दिन तक चलता है। जिसकी शुरुआत नहाए-खाए के साथ होती है और समापन उगते हुए सूर्य को अर्घ्य देकर होता है। इस व्रत में लगातर 36 घंटे तक निर्जला व्रत रखा जाता है और फिर डूबते और उगते सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठ महापर्व मनाया जाता है। सनातन धर्म में इस पर्व को बहुत ही फलदायी माना गया है। मान्यता है कि छठ पूजा में विधि.विधान से छठी मैया और भगवान सूर्य की उपासना की जाए तो हर मनोकामना पूरी होती है। एक अन्य पौराणिक कथा के मुताबिक, मनु स्वायम्भुव के पुत्र राजा प्रियव्रत को कोई संतान नहीं थी। जिसकी वजह से महर्षि कश्यप ने पुत्रेष्टि यज्ञ करवाया तब महारानी मालिनी को यज्ञाहुति के लिए बनाई गई खीर दी। खीर के प्रभाव से उन्होंने एक मृत पुत्र को जन्म दिया। कथा के मुताबिक, पुत्र को लेकर जब प्रियव्रत श्मशान गए और प्राण त्यागने लगे तो भगवान की मानस कन्या देवसेना प्रकट हुई और उन्हें देवी षष्ठी का व्रत करने को कहा। जिसके बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को पुत्र की इच्छा से देवी षष्ठी का व्रत किया। जिसके बाद उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। ऐसा कहा जाता है कि तभी से पूजा का प्रचलन शुरू हुआ। एक कथा के अनुसार छठ महाव्रत का महाभारत काल से कनेक्शन है। इसकी शुरुआत सबसे पहले सूर्य के पुत्र कर्ण ने की थी। कर्ण सूर्य देव के परम भक्त थे। वह घंटों तक पानी में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य देते थे। कहा जाता है कि सूर्य देव की कृपा से ही कर्ण महान योद्धा बने थे। एक अन्य कथा के अनुसार, महाभारत काल में ही जब पांडव अपना पूरा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ महाव्रत किया था। इस व्रत को करने से द्रौपदी की सभी मनोकामनाएं पूरी हुई और पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया। एक मान्यता ये भी है कि सबसे पहले छठ पूजा का व्रत माता सीता ने किया था। वो भी तब जब 14 सालों के वनवास से भगवान राम.माता सीता और लक्ष्मण वापस अयोध्या लौटे थे तब रावण के वध के पाप से मुक्त होने के लिए उन्होंने ऋषि-मुनियों के आदेश पर राजसूय यज्ञ करने का फैसला लिया। राजसूय यज्ञ के लिए मुद्गल ऋषियों को आमंत्रित किया गया मुद्गल ऋषि ने मां सीता पर गंगाजल छिड़ककर पवित्र किया और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को सूर्यदेव की उपासना करने का आदेश दिया। फिर मां सीता ने उनके आश्रम में रहकर 6 दिनों तक सूर्यदेव की पूजा की।